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लोकतंत्र कमजोर पड़ रहा, चुनाव आयोग और जांच एजेंसियां दबाव में : अशोक गहलोत

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जयपुर, 4 जुलाई (Udaipur Kiran) । पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने देश में लोकतंत्र की स्थिति को लेकर गहरी चिंता जताई है। जयपुर में मीडिया से बातचीत करते हुए गहलोत ने चुनाव आयोग और देश की प्रमुख जांच एजेंसियों ईडी, इनकम टैक्स और सीबीआई पर सरकार के दबाव में काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने बिहार में निष्पक्ष चुनाव होने पर भी संदेह जताते हुए कहा कि वर्तमान सरकार ने लोकतंत्र की मूल संस्थाओं को कमजोर कर दिया है।

गहलोत ने कहा कि सत्ता पक्ष को यह समझना होगा कि लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका भी उतनी ही जरूरी है। उन्होंने कहा कि अगर विपक्ष की बात नहीं सुनोगे तो देश भी तकलीफ में रहेगा और आप भी। गहलोत का यह बयान उस समय आया है जब चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता पहचान को लेकर नए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जिन पर उन्होंने तीखा सवाल उठाया। गहलोत ने कहा कि चुनाव आयोग ने बिहार में माता-पिता से जन्म प्रमाण पत्र मांगने जैसी जटिल प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिससे आम लोग परेशान हैं। उन्होंने पटना दौरे का हवाला देते हुए बताया कि स्थानीय लोगों में इस नई प्रक्रिया को लेकर भारी आक्रोश है। मेरे ड्राइवर ने मुझसे कहा कि साहब, कहां से लाऊं माता-पिता का जन्म प्रमाण पत्र? यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत है।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों का कार्यभार बेहद महत्वपूर्ण होता है, लेकिन उन्हें भी दबाव में लाकर विपक्षी नेताओं के खिलाफ उपयोग किया जा रहा है। संसद में सरकार ने खुद बताया कि 193 केस दर्ज किए गए, लेकिन केवल दो में ही प्रमाणित सजा हो पाई है। इससे पता चलता है कि यह एजेंसियां किस तरह से विपक्ष को परेशान करने के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं। गहलोत ने कांग्रेस नेताओं के साथ चुनाव आयोग के रवैये को ‘अशोभनीय’ बताया। उन्होंने कहा कि पहले चुनाव आयोग की छवि निष्पक्ष और मर्यादित थी, लेकिन अब उसका आचरण पक्षपातपूर्ण दिखाई देता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि राहुल गांधी को भी महाराष्ट्र को लेकर उठाए सवालों का जवाब नहीं मिला, अंततः उन्हें मीडिया में लेख लिखना पड़ा।

पांच साल बनाम डेढ़ साल के मुख्यमंत्री वाले बयान पर गहलोत ने चुटकी लेते हुए कहा कि बीजेपी और आरएसएस के बुद्धिजीवी खुद इस बात पर हंस रहे होंगे। ये जुमलेबाजी का दौर चल रहा है। डेढ़ साल की सरकार को पांच साल पर तवज्जो देना कहां तक ठीक है? इससे बड़ा मज़ाक क्या हो सकता है?”गहलोत ने कहा कि जब न्यायपालिका, चुनाव आयोग और ब्यूरोक्रेसी जैसे लोकतंत्र के स्तंभ भी दबाव में काम करें, तब लोकतंत्र की बात करना बेमानी हो जाती है। ये स्थिति देशहित में नहीं है, सबको मिलकर सोचना होगा कि देश किस दिशा में जा रहा है।

गहलोत ने अंत में अपील की कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए निष्पक्ष संस्थाएं, स्वतंत्र चुनाव आयोग और निर्भीक न्यायपालिका का होना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि अगर यह नहीं रहा, तो देश को गंभीर संकट का सामना करना पड़ सकता है।

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(Udaipur Kiran) / रोहित

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