अररिया, 23 अगस्त (Udaipur Kiran) ।
फारबिसगंज तेरापंथ भवन में आयोजित पर्युषण महापर्व का चौथा दिन शनिवार को वाणी संयम दिवस के रूप में मनाया गया।वाणी संयम दिवस के कार्यक्रम की शुरुआत महिला मंडल की बहनों के द्वारा पर्युषण पर्व के वाणी संयम दिवस पर आधारित गीतिका से की गई।
मौके पर मुख्य उपासक सुशील बाफना ने कहा कि जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर अपनी साधना काल के बारह वर्षों में प्रायः मौन ही रहे। कैवल्य प्राप्त होने के बाद ही भगवान महावीर स्वामी ने प्रवचन देने आरंभ किए थे। भगवान महावीर ने मौन को अनिवार्य मानते हुए तप का स्थान दिया है।उन्होंने बताया कि आज दुनिया में सबसे ज्यादा समस्याएं इस वाणी के कारण ही हो रही है। जो काम करके नहीं बिगड़ता है वह काम बोलने मात्र से बिगड़ जाता है। शिष्ट समाज को जानने का सबसे बड़ा साधन है-बोलने की कला एवं उसका विवेक। इसके साथ ही मुख्य उपासक ने बताया कि हमें दो अवसरों पर बिल्कुल नहीं बोलना चाहिए एक भोजन के समय और दूसरा आवेश के क्षणों में। मौन वह है जिसमें ना इशारा हो, ना संकेत हो और ना ही हुंकार हो।
सुमेरमल बैद ने धर्म सभा को प्रेरणा देते हुए कहा कि हमें बोलते समय चार महत्वपूर्ण सूत्रों का ध्यान रखना चाहिए मितभाषिता,सत्यभाषिता,मधुरभाषिता एवं समीक्षाभाषिता का ध्यान रखना जरूरी है। प्रत्येक प्राणी के शरीर में मन,वचन और काया की तीन शक्तियों निहित होती है।वाणी में विष और अमृत दोनों होते हैं। मधुर हितकर और सत्य वाणी अमृत के समान होती है।जहाँ साधना का सूत्र वाक संयम है वही संपर्क का सूत्र भाषा का संयम है। मौके पर उपासक द्वय की उपस्थिति में महिला मंडल एवं कन्या मंडल की बैठक भी रखी गई।जिसमें महिलाओं को तत्वज्ञान एवं अन्य संघीय कार्यक्रम की जानकारी दी गई। वहीं कन्या मंडल की बैठक में स्पिरिचुअल एनहेंस प्रोग्राम की जानकारी दी गई।
(Udaipur Kiran) / राहुल कुमार ठाकुर
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