जयपुर, 11 अगस्त (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने सिजोफ्रेनिया नाम की मानसिक बीमारी से पीडित महिला के विवाह से जुड़े मामले में कहा है कि शादी के समय युवती की मानसिक बीमारी को छिपाकर युवक की सहमति ली गई थी। इसके साथ ही अदालत ने मामले में कोटा के पारिवारिक न्यायालय के 28 अगस्त, 2019 के आदेश को रद्द करते हुए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के तहत विवाह को रद्द कर दिया है। जस्टिस इंद्रजीत सिंह और जस्टिस आनंद शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश पति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
याचिका में अधिवक्ता उदयशंकर आचार्य ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता का विवाह कोटा निवासी युवती के साथ साल 2013 में हुआ था। शादी के बाद ससुराल पहुंचने पर युवती ने ससुराल पक्ष के लोगों के सामने अशिष्ट और असामान्य व्यवहार किया। युवती के साथ पीहर से आए सामान में मनोचिकित्सक की एक पर्ची मिली, जिसमें उसकी पत्नी का सिजोफ्रेनिया का इलाज चलने का हवाला था। पत्नी की इस मानसिक बीमारी के कारण उनके बीच संबंध भी स्थापित नहीं हुए। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि विवाह विच्छेद की गुहार की गई। जिसे फैमिली कोर्ट ने 28 अगस्त, 2019 को निरस्त कर दिया। इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। याचिका में कहा गया कि विवाह से पहले पत्नी की बीमारी के तथ्य को याचिकाकर्ता के छिपाया गया था। दूसरी ओर पत्नी की ओर से कहा गया कि पति और ससुरालवालों ने उससे दहेज उत्पीड़न किया। वह गंभीर बीमारी से पीडित नहीं है, सिर्फ विवाह के कुछ दिन पहले मां और बहन की दुर्घटना के कारण डिप्रेशन में थी। इसके अलावा विवाह के समय ससुराल में हुई छोटी की घटना को याचिकाकर्ता ने तूल दिया है। वही शिक्षित महिला है और किसी तरह की मानसिक बीमारी से ग्रस्त नहीं है। ऐसे में याचिका को खारिज किया जाए। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने फैमिली कोर्ट के आदेश को निरस्त कर करते हुए दोनों पक्षों के बीच हुए विवाह को रद्द कर दिया है।
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(Udaipur Kiran)
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