तीनों कानूनों की खामियों को दूर करके दोबारा सर्वसम्मति से लागू करना चाहिएहिसार, 29 मई . भारतीय न्याय संहिता, भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता व भारतीय साक्ष्य अधिनियम पर मंथन करने के लिए हरियाणा कांग्रेस लीगल डिपार्टमेंट ने हिसार कोर्ट कॉम्पलेक्स में बैठक आयोजित की. इस बैठक में स्पष्ट किया गया कि तीनों कानूनों में काफी कमियां हैं और इन्हें तार्किक दृष्टि से परखे बिना ही भाजपा सरकार ने लागू कर दिया है. हरियाणा कांग्रेस लीगल डिपार्टमेंट के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट लाल बहादुर खोवाल की अध्यक्षता में गुरुवार काे यह बैठक आयोजित की गई. इसमें रतन पानू जिलाध्यक्ष लीगल डिपार्टमेंट, विकास पूनिया, श्वेता शर्मा प्रदेश सचिव, पवन तुंदवाल प्रदेश सचिव, बजरंग ईंदल एडवोकेट, सत्यवान जांगड़ा एडवोकेट, आशा बहलान एडवोकेट, गौरव टुटेजा एडवोकेट, सीआर वर्मा, एडवोकेट हिमांशु आर्य खोवाल, एडवोकेट शबनम व एडवोकेट मीना तिजारिया सहित कई पदाधिकारी व काफी संख्या में अधिवक्ता मौजूद रहे.बैठक के दौरान एडवोकेट लाल बहादुर खोवाल ने कहा कि इन तीनों कानूनों का खाका किसने तैयार किया और किसने लिखा, इसके बारे में अभी तक किसी को मालूम नहीं है. जनता, एडवोकेट व न्यायपालिका को अंधेरे में रख कर ये नए कानून बनाए गए हैं. इनमें पुलिस को बहुत ज्यादा पावर दी गई है जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा. भाजपा सरकार द्वारा बताया जा रहा था कि सामुदायिक सेवा धारा 23 के तहत दी जाएगी परंतु स्पष्ट दिशा निर्देशों और पूर्व परामर्श की कमी के कारण यह प्रावधान एक वर्ष बाद भी लागू नहीं हो पाया है.एडवोकेट खोवाल ने कहा कि इन कानूनों में भाषा, शब्दावली, दंड प्रक्रिया में पारदर्शिता, साक्ष्य के प्रकार पर विचार और महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से निपटने के तरीकों से संबंधित काफी खामियां हैं. इन कानूनों के संदर्भ में संसद व राज्यसभा में बिना कोई डिबेट किए इन्हें लागू कर दिया गया है. अस्पष्टता के कारण इन कानूनों को समझने व क्रियान्वित करने में पुलिस व वकीलों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. स्त्री या पुरुष किसी के खिलाफ अप्राकृतिक अपराध होने पर धारा 377 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता था जो जघन्य अपराध माना जाता था. इस कानून में अब यह प्रावधान ही खत्म कर दिया गया है. ऐसी स्थिति में अप्राकृतिक अपराध से पीड़ित लोगों को न्याय कैसे मिलेगा.
/ राजेश्वर
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