इंडियन प्रेस चौराहा अब होगा आचार्य द्विवेदी चौक, अरैल में बनेगा साहित्य तीर्थ केन्द्र:महापौर
प्रयागराज,09 मई . हिन्दी के युग—प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य से सांस्कृतिक चेतना को नयी दिशा और दृष्टि प्रदान की. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को गति व दिशा देने में उनके अतुलनीय योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. यह बात शुक्रवार को इंडियन प्रेस चौराहे पर उनकी जयंती पर पंडित देवीदत्त शुक्ल-रमादत्त शुक्ल शोध संस्थान के तत्त्वावधान में आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रयागराज के महापौर गणेश केसरवानी ने कही.
उन्होंने प्रतिमा-स्थल का नामकरण ‘आचार्य द्विवेदी चौक’ करने की घोषणा की, क्योंकि यह प्रतिमा उन महापुरुष की है, जो समग्र हिन्दी-जगत् में ‘आचार्य’ एवं ‘युग-निर्माता’ के रूप में समादृत हैं . इसके साथ ही उन्होंने प्रतिमा-स्थल पर सीढ़ी लगवाने की भी घोषणा की, ताकि माल्यार्पण एवं साफ-सफाई करने में सुविधा हो . महापौर ने प्रतिमा-स्थल के पास ‘आचार्य द्विवेदी चौक’ का पट्ट लगवाने की भी घोषणा की .
महापौर ने कहा कि प्रयागराज के अरैल क्षेत्र में वृहद स्तर पर साहित्य तीर्थ केन्द्र बनने जा रहा है, जो इस तीर्थ नगरी के अप्रतिम साहित्य-अवदान के अनुरूप होगा और नगर का एक नव आकर्षण होगा . इसके लिए लगभग २० करोड़ का प्रस्ताव स्वीकृत हो चुका है. नगर के विभिन्न चौराहों पर स्थापित साहित्यकारों और महापुरुषों की प्रतिमाओं के सौंदर्यी करण की दिशा में भी नगर निगम महत्वपूर्ण कार्य करने जा रहा है.
इस मौके पर पूर्व मंत्री डा० नरेंद्र कुमार सिंह गौर ने कहा कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी के देदीप्यमान नक्षत्र के रूप में समादृत हैं . हिन्दी के विकास और उन्नयन में उनकी ऐतिहासिक भूमिका रही . इसीलिए वे आचार्य के रूप में जाने जाते हैं. प्रयाग से प्रकाशित होनेवाली ‘सरस्वती’ पत्रिका का १९०३ से १९२० तक असाधारण सम्पादन कर उन्होंने इतिहास रचा, जो ‘द्विवेदी-युग’ के नाम से जाना जाता है .
संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख डॉ मुरारजी त्रिपाठी ने कहा कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को गति व दिशा प्रदान करने में भाषा-साहित्य की क्या और कैसी बौद्धिक भूमिका होती है, यह अपने बौद्धिक अवदान से स्पष्टतः सिद्ध किया . स्वाधीनता, स्वदेशी व स्वावलंबन ही उनका मूल मंत्र था. आज के दौर में इसकी सर्वाधिक आवश्यकता है. सन् १९०० में लिखित ‘अयोध्या का विलाप’ शीर्षक उनकी कालजयी कविता अपना विशिष्ट महत्त्व रखती है .
भाजपा काशी क्षेत्र उपाध्यक्ष अवधेशचन्द्र गुप्त ने कहा कि आचार्य द्विवेदी ने अपनी कठोर साहित्यिक साधना से प्रयाग का गौरव बढ़ाया. संयोजक व्रतशील शर्मा ने कहा कि जब १९६२ में आचार्य द्विवेदी की प्रतिमा स्थापित हुई थी, तब वह सार्वजनिक स्थान पर किसी साहित्यकार की स्थापित होनेवाली पहली प्रतिमा थी.
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिकों ने भाग लेकर हिंदी के इस अनन्य सेवक के प्रति श्रद्धा प्रकट की. इस अवसर पर विभूति द्विवेदी, रवीन्द्र मिश्र, अंजनी सिंह, नजम भाई, पंकज त्रिपाठी, अमित सहित अन्य उपस्थित रहे .
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/ रामबहादुर पाल
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