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कांग्रेस ने स्वीकारा जिन्ना का अलगाववाद, साम्प्रदायिकता और तुष्टिकरण, भारत विभाजन का जिम्मेदार: भाजपा

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गुवाहाटी, 13 अगस्त (Udaipur Kiran) । भाजपा के असम प्रदेश मुख्य प्रवक्ता किशोर उपाध्याय ने कहा कि भारत का 1947 का विभाजन 20वीं सदी की सबसे भयावह भू-राजनीतिक घटनाओं में से एक है, लेकिन इसकी पीड़ा और महत्व को राष्ट्रीय स्मृति में उचित स्थान नहीं मिला। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग के अलगाववाद, साम्प्रदायिकता और तुष्टिकरण की राजनीति को आसानी से स्वीकार कर भारत के विभाजन का मार्ग प्रशस्त किया। इस ऐतिहासिक गलती से कांग्रेस कभी नहीं बच सकती।

उपाध्याय ने कहा कि विभाजन में करीब दो करोड़ लोग विस्थापित हुए और अनुमान के अनुसार 15 से 20 लाख लोगों की मौत हुई। लाखों महिलाओं का अपहरण, बलात्कार, जबरन धर्म परिवर्तन और गुलामी के लिए बेचना जैसी घटनाएं हुईं। पाकिस्तान से लाशों से भरी ट्रेनें भारत पहुंचती थीं, जिनमें मारे गए पुरुष, अंग-भंग महिलाएं और निर्दयता से मारे गए बच्चे होते थे। लाहौर, रावलपिंडी, मुल्तान जैसे शहर हिंदू और सिखों से पूरी तरह खाली हो गए।

उन्होंने कहा कि 1947 में पाकिस्तान की 15-20 प्रतिशत आबादी हिंदू और सिख थी, जो आज घटकर दो प्रतिशत से भी कम रह गई है। वहीं, तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हिंदुओं की आबादी 28 प्रतिशत थी, जो आज केवल आठ प्रतिशत रह गई है। यह गिरावट व्यवस्थित उत्पीड़न, जबरन धर्म परिवर्तन, भेदभाव और हिंसा का परिणाम है।

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि विभाजन के बाद न तो किसी ‘सत्य एवं मेल-मिलाप प्रक्रिया’ को अपनाया गया, न ही पीड़ितों को याद करने, मुआवजा देने या राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने का काम हुआ। कांग्रेस ने आज तक इस ऐतिहासिक भूल के लिए माफी नहीं मांगी। उन्होंने कहा कि ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ का आयोजन पुराने घाव कुरेदने के लिए नहीं, बल्कि उन घावों को स्वीकार कर उनके उपचार की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए आवश्यक है।

उपाध्याय ने यह भी कहा कि विभाजन का आघात केवल उन्हीं तक सीमित नहीं था, जिन्होंने सीमाएं पार कीं, बल्कि यह मानसिक और भावनात्मक बोझ पीढ़ियों तक चला। बहुत-सी परिवारों ने अपने अनुभवों को दर्द या कलंक के डर से साझा नहीं किया। इस चुप्पी ने ‘पोस्ट-मेमोरी’ को जन्म दिया, जिसमें प्रत्यक्ष गवाह न होने के बावजूद लोग अपने पूर्वजों के अनुभवों से मानसिक आघात विरासत में पाते हैं। ऐसे में स्मृति दिवस का आयोजन ऐतिहासिक आत्ममंथन के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक और पीढ़ीगत संवाद के लिए एक मंच प्रदान करता है।

(Udaipur Kiran) / श्रीप्रकाश

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