देश भर में देवी दुर्गा को समर्पित कई मंदिर हैं। इनमें कामाख्या मंदिर (कामाख्या देवी मंदिर) भी शामिल है। कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि जिन स्थानों पर देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे, उन्हें शक्तिपीठ कहा जाता है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस प्रमुख मंदिर का उल्लेख कालिका पुराण में मिलता है। इसे सबसे प्राचीन शक्तिपीठ माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त इस मंदिर में तीन बार दर्शन करता है, वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है। इस लेख में, आइए इस मंदिर के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों पर चर्चा करते हैं।
मंदिर का नाम कैसे पड़ा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, ब्रह्मांड के रक्षक भगवान विष्णु ने अपने चक्र से देवी सती को 51 भागों में विभाजित किया था। कामाख्या मंदिर अब उसी स्थान पर स्थित है जहाँ देवी सती की योनि गिरी थी, इसलिए इस मंदिर में उनकी कोई मूर्ति नहीं है। इसी योनि से देवी कामाख्या का जन्म हुआ था, इसलिए इस मंदिर का नाम कामाख्या पड़ा।
मंदिर की मान्यता क्या है?
धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त अपने जीवनकाल में तीन बार इस मंदिर के दर्शन करता है, उसे सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। यह मंदिर अपनी तंत्र विद्या के लिए जाना जाता है। इस मंदिर में एक तालाब है, जहाँ लोग फूल चढ़ाते हैं और पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह तालाब देवी सती की योनि का एक अंश है। इसी कारण से तालाब को ढका रखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि तालाब से लगातार पानी रिसता रहता है।
कामाख्या मंदिर कैसे पहुँचें?
गुवाहाटी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कामाख्या मंदिर के पास स्थित है। यहाँ से इसकी दूरी 20 किमी है। आप रेल द्वारा भी वहाँ पहुँच सकते हैं। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन मंदिर के पास ही है। यहाँ से आप ऑटो या टैक्सी द्वारा मंदिर पहुँच सकते हैं।
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