मासिक धर्म जिसे आम भाषा में पीरियड्स कहा जाता है, के बारे में हमारे समाज में खुलकर बात करना सही नहीं माना जाता है। कई जगहों पर महिलाओं पर मासिक धर्म को लेकर कई तरह की पाबंदियां लगाई जाती हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में एक ऐसा मंदिर भी है जहां मासिक धर्म को बहुत पवित्र माना जाता है। हम बात कर रहे हैं कामाख्या देवी के मंदिर की। यह मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल पर्वत पर है और 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती का गर्भ और योनि गिरी थी। इस वजह से यहां मातारानी को तीन दिनों तक मासिक धर्म होता है और उन दिनों मंदिर की शक्ति और भी बढ़ जाती है।
नदी का रंग लाल हो जाता है
हर साल जून के महीने में देवी अपने मासिक धर्म चक्र में होती हैं। इस दौरान यहां मौजूद ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल हो जाता है। इस दौरान मंदिर तीन दिनों तक बंद रहता है। लेकिन नदी का लाल पानी भक्तों में प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है।
सफेद कपड़ा भी लाल हो जाता है
कहते हैं कि जब माता रानी को रजस्वला होने वाला होता है, तो मंदिर में एक सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है. तीन दिन बाद जब मंदिर के पट खोले जाते हैं, तो यह कपड़ा लाल रंग का होता है. इस कपड़े को अंबुबाची वस्त्र कहते हैं. इसे प्रसाद के तौर पर भक्तों में भी बांटा जाता है.
यह भी कहा जाता है
हालांकि, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इस समय मंदिर के पुजारी नदी में सिंदूर डालते हैं, जिससे यहां का पानी लाल हो जाता है. पानी के लाल रंग के पीछे क्या सच्चाई है, इसकी पुष्टि हम नहीं करते, लेकिन लोग उस पानी को माता के रजस्वला होने का पानी समझकर पी लेते हैं. ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि जिस चीज को मंदिर में इतना पवित्र माना जाता है, उसे समाज में अपवित्र क्यों माना जाता है.
ये है 51 शक्तिपीठों की कहानी
एक बार देवी सती के पिता दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया. उन्होंने उस यज्ञ में सभी को आमंत्रित किया, लेकिन सती को नहीं बुलाया. भगवान शिव के बार-बार मना करने के बावजूद सती बिना बुलाए अकेले ही यज्ञ में शामिल होने चली गईं। वहां दक्ष ने भगवान शिव का बहुत अपमान किया, जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर सकीं और उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो वे बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने सती के शव को यज्ञ से निकालकर अपने कंधे पर रखा और अपना रौद्र रूप धारण कर तांडव शुरू कर दिया। भगवान शंकर के क्रोध को शांत करने के लिए विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी के शरीर को कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जिन स्थानों पर वे टुकड़े गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि कामाख्या माता के मंदिर में देवी सती का गर्भ और योनि गिरी थी।
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