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मुर्शिदाबाद हिंसा: खून की होली की धमकियों में सिसकते हिंदू परिवार, वक्फ कानून के नाम पर बढ़ता कट्टरपंथ

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मुर्शिदाबाद हिंसा: खून की होली की धमकियों में सिसकते हिंदू परिवार, वक्फ कानून के नाम पर बढ़ता कट्टरपंथ

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हालात गंभीर होते जा रहे हैं। एक तरफ लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती दी जा रही है, तो दूसरी ओर हिंदू समुदाय भय के माहौल में जीने को मजबूर है। कट्टरपंथी ताकतें खुलकर धमकी दे रही हैं – बकरीद पर हिंदुओं को काटा जाएगा, महिलाओं के साथ बलात्कार होगा, बेटियों को अगवा किया जाएगा। यह सब उस राज्य में हो रहा है जहां एक महिला मुख्यमंत्री सत्ता में हैं।

बहादुरी नहीं, डर में जिंदा हैं हिंदू परिवार

हिंदू महिलाओं के बयान रोंगटे खड़े कर देते हैं। पूजा पांडे और अन्य पीड़ितों ने बताया कि कैसे कट्टरपंथी झुंड में आए और तलवारें लहराते हुए ‘खून की होली’ खेलने की धमकी दी। महिलाओं के सामने ही बलात्कार की धमकियां दी गईं, और उनके घरों पर हमले हुए। इन हमलों की सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पुलिस मूकदर्शक बनी रही, यहां तक कि पीड़ितों के अनुसार उसने सहायता देने से भी इनकार कर दिया।

बीएसएफ बनी एकमात्र उम्मीद

घटना के बाद बीएसएफ तैनात की गई, जिससे हालात काबू में आए लेकिन डर खत्म नहीं हुआ। दंगाइयों ने खुलेआम कहा – “BSF कितने दिन रहेगी? फिर हम आएंगे, मारेंगे, काटेंगे।” इस माहौल में कई हिंदू परिवार अपने घर छोड़कर पलायन कर चुके हैं। बच्चियों को घरों में कैद कर दिया गया है, और लोग नींद तक नहीं ले पा रहे।

वक्फ कानून की आड़ में हिंसा?

वक्फ (संशोधन) कानून का विरोध देशभर में हो रहा है। लेकिन बंगाल में इसकी आड़ में हिंदुओं के खिलाफ जिस तरह की हिंसा और धमकी दी जा रही है, वह लोकतंत्र और इंसानियत दोनों पर हमला है। सवाल यह है कि क्या यह विरोध शांतिपूर्ण तरीके से नहीं हो सकता? क्या कट्टरपंथियों को किसी ने सड़कों पर उतरने और हत्या की धमकियां देने का अधिकार दे दिया है?

मौन क्यों हैं भड़काऊ भाषण देने वाले नेता?

देश के तमाम नेताओं ने वक्फ कानून के विरोध में भाषण दिए। लेकिन जब मुर्शिदाबाद में हिंदू महिलाओं को बलात्कार की धमकी मिली, बच्चों को अगवा करने की धमकी मिली, तब ये नेता खामोश हो गए।

  • क्या असदुद्दीन ओवैसी पूजा पांडे से माफी मांगेंगे?

  • क्या मदनी और कौसर हयात खान क्षमा मांगेंगे?

  • क्या झारखंड के मंत्री हफीजुल हसन जूही घोष के पति पर हमले की जिम्मेदारी लेंगे?

संभावना नहीं के बराबर है, क्योंकि इन नेताओं की सोच में सिर्फ एक पक्ष है। लोकतंत्र और मानवता इनकी प्राथमिकताओं में कहीं नहीं हैं।

प्रदर्शन के नाम पर सुप्रीम कोर्ट पर दबाव?

ओवैसी ने हैदराबाद में बड़ा प्रदर्शन किया, और अब फुरफुरा शरीफ के पीरजादा के समर्थन से कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में 26 अप्रैल को बड़ी रैली की तैयारी है। सवाल है – जब मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तो फिर ऐसे प्रदर्शनों का उद्देश्य क्या है? क्या यह न्यायपालिका पर अप्रत्यक्ष दबाव डालने की कोशिश नहीं है?

क्या गांधीजी के रास्ते पर हैं ये आंदोलनकारी?

भारत का आजादी आंदोलन अहिंसा की मिसाल रहा है। महात्मा गांधी ने जैसे ही आंदोलन हिंसक होते देखा, उसे वापस ले लिया था। 1922 के चौरी-चौरा कांड में पुलिस पर हमले के बाद उन्होंने असहयोग आंदोलन रोक दिया था। आज वही देश, गांधी के नाम पर राजनीति करने वालों से यह पूछ रहा है – क्या आप गांधी के रास्ते पर चलेंगे या खून की होली को सही ठहराएंगे?

मौन की राजनीति और लोकतंत्र का तमाचा

दुष्यंत कुमार की पंक्तियां आज के मुर्शिदाबाद पर पूरी तरह सटीक बैठती हैं –
“यहां सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं… खुदा जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा।”
क्योंकि आज जब हिंदुओं पर अत्याचार हो रहा है, तो सब मौन हैं। और मौन रहकर हम लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं।

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