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पॉक्सो कानून: सहमतिपूर्ण किशोर संबंधों पर केंद्र पुनर्विचार करे – सुप्रीम कोर्ट

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Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से नाबालिगों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों में POCSO एक्ट के तहत आपराधिक कार्यवाही हटाने पर विचार करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए कि ऐसे मामलों में नाबालिगों को सख्त पॉक्सो कानून के तहत जेल जाने से रोका जा सके। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से छात्रों के बीच यौन शिक्षा और प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा के लिए नीति तैयार करने को भी कहा है।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी किया और महिला एवं बाल विकास विभाग को इस मुद्दे का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों का एक पैनल गठित करने को कहा। साथ ही इस संबंध में 25 जुलाई तक रिपोर्ट पेश करने को कहा गया, जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगे की सुनवाई करेगा। कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक फैसले में की गई आपत्तिजनक टिप्पणी की स्वतः संज्ञान से ली गई सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में चल रही है। इस फैसले में न्यायाधीश ने महिला को अपनी शारीरिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की सलाह दी। सुप्रीम कोर्ट ने इस सलाह को आपत्तिजनक बताया।

पॉक्सो एक्ट पर केंद्र सरकार को सलाह देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रोमांटिक रिलेशनशिप में आने वाले युवा जोड़ों के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत आपराधिक कार्रवाई से बचना चाहिए, क्योंकि यह कानून इस तरह से बनाया गया है कि यह नाबालिगों को शोषण से बचा सके। पश्चिम बंगाल में POCSO का एक अजीब मामला सामने आया, एक नाबालिग लड़की ने घर से भागकर एक वयस्क व्यक्ति से शादी कर ली। बाद में नाबालिग के माता-पिता ने उस व्यक्ति के खिलाफ पोक्सो के तहत शिकायत दर्ज कराई, जिसमें अदालत ने उसे 20 साल जेल की सजा सुनाई, हालांकि बाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने उसे बरी कर दिया।

हालांकि, जाते-जाते हाईकोर्ट ने एक टिप्पणी की जो सुप्रीम कोर्ट के ध्यान में आई, फैसला सुनाने वाले जज ने महिला को अपनी शारीरिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की सलाह दी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में महिला को ऐसा नहीं लगता कि उसके साथ कोई अत्याचार हुआ है।

पीड़िता वर्तमान में आरोपी की पत्नी है और अपने पति को छुड़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। महिला इस मामले को अपराध नहीं मान रही है, समाज मान रहा है, न्याय व्यवस्था ने महिला को विफल कर दिया, परिवार ने उसे छोड़ दिया, आरोपी को रिहा करवाने के लिए महिला को काफी संघर्ष करना पड़ा। यह मामला सभी के लिए आंख खोलने वाला है, पीड़िता भावनात्मक रूप से आरोपी से जुड़ी हुई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए आरोपी को बरी कर दिया, जो अब पीड़िता का पति है।

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