इस्लामाबाद/नई दिल्ली: टमाटर 700 रुपये किलो, बिजली के बिल आसमान पर, गैस सिलेंडर खरीदना आम लोगों के जद से बाहर, आटा करीब 150 रुपये किलो, दाल की कीमत करीब 600 रुपये किलो... पाकिस्तान की ये रेट लिस्ट है। जरा सोचिए, अगर आप दुकान पर जाते हैं और रेट लिस्ट ऐसा देखते हैं तो आपकी क्या हालत होगी। पाकिस्तान में ऐसा ही है। रोजमर्रा की ये सच्चाई है, जिससे पाकिस्तानी हर दिन दो-चार होते हैं। लेकिन जब पाकिस्तान सरकार की जेब खाली है, फिर भी उसके मुंह से बारूद निकल रहे हैं।
जब किसी राज्य की जनता रोटी‑रोजगार और ऊर्जा की किल्लत से जूझ रही हो, तो सेना‑नेताओं की चिल्लाहट और धमकियां असल में घरेलू असंतोष को कम करने का नकाब होती हैं। पाकिस्तान में यह आर्थिक संकट, बदहाल अर्थव्यवस्था, बलूचिस्तान से लेकर खैबर पख्तूनख्वा तक लगातार होने वाले आतंकी हमले, उसे अंदर से बेचैन कर रहा है और बेचैनी का सबसे सरल इलाज भारत से दुश्मनी है। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुआ आतंकी हमला भी पाकिस्तान की इसी पॉलिसी का हिस्सा था। अगर कोई देश अपने घर में टूट रहा हो, तो वह पड़ोसी पर दाग देने की कोशिश करके अपने ही नागरिकों का ध्यान हटा देता है और पाकिस्तान यही कर रहा है।
नवभारत टाइम्स से बात करते हुए भारत के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी, जो भारतीय सेना में डीजी इन्फ्रैंट्री भी रह चुके हैं, उन्होंने असीम मुनीर की परमाणु धमकी और भारत के खिलाफ जहरीली सोच को लेकर खास बातचीत की है। आप नवभारत टाइम्स पर उनके साथ हुई खास बातचीत को देख सकते हैं। उन्होंने इस दौरान साफ शब्दों में कहा कि पाकिस्तान तो हमारा घोषित दुश्मन है ही, लेकिन चीन और पाकिस्तान को उन्होंने फ्रेनिमीज बताया। यानि, वो जो कभी दोस्त और कभी दुश्मन की तरह, अपने हितों को देखते हुए व्यवहार करते हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि पाकिस्तान, चीन और अमेरिका दोनों के लिए महत्वपूर्ण बन जाता है, क्योंकि भौगोलिक स्थिति उसके पक्ष में होता है।
पाकिस्तान के निशाने पर भारत की इकोनॉमी क्यों?
भारतीय एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान अब शायद भारत पर सीधे सैन्य हमला करने की बजाय भारत की अर्थव्यवस्था को निशाना बनाने की तैयारी कर रहा है। दिप्रिंट में लिखते हुए सीनियर जियो-पॉलिटिकल जर्नलिस्ट आर जगन्नाथन ने भी लिखा है कि पाकिस्तान भारत की इकोनॉमी को निशाना बनाना चाहता है। उन्होंने लिखा है कि भारत के सुरक्षा और रक्षा विभाग लगातार यह अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि पाकिस्तान अगली बार कैसे हमला कर सकता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की पारंपरिक रणनीतियां नाकाम रही हैं, इसलिए अब उसके लिए बड़े आर्थिक लक्ष्यों पर हमला करना ज्यादा आसान और असरदार विकल्प बन सकता है।
गुजरात के बड़े रिफाइनरी और पोर्ट्स जैसे रिलायंस रिफाइनरी, नायरा एनर्जी और अडानी ग्रुप के बंदरगाह भारत के आर्थिक इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रमुख स्तंभ हैं। पाकिस्तान इन पर हमला करके न सिर्फ नुकसान पहुंचाना चाहता है बल्कि निवेशकों और जनता का भरोसा भी कमजोर करना चाहता है। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल असीम मुनीर लगातार भारत को धमकियां दे रहे हैं। उन्होंने पिछले दिनों अमेरिका में भी बोलते हुए भारत को 'मर्सिडीज बेंज' और पाकिस्तान को 'बजरी से भरा भारी ट्रक' कहा था। उन्होंने गुजरात के बड़े उद्योग और पोर्ट्स का भी नाम लिया था, जो संकेत है कि पाकिस्तान अब आर्थिक हमला करने की कोशिश कर सकता है। वो गुजरात पर हमला करने की कोशिश कर सकता है।
भारत भी पाकिस्तान को बख्शने के मूड में नहीं
भारत ने भी इस खतरे को समझते हुए कड़े संदेश दिए हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भुज में कहा कि अगर पाकिस्तान सर क्रीक क्षेत्र में कुछ करने की कोशिश करेगा तो उसका जवाब इतना कड़ा होगा कि इतिहास और भूगोल दोनों बदल सकते हैं। इसके बाद सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने राजस्थान में बयान दिया कि ऑपरेशन सिंदूर जैसी रियायत अगली बार नहीं होगी और पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन बंद करना होगा। ये दोनों बयान संकेत देते हैं कि भारत पूरी तरह तैयार है और पाकिस्तान को अपनी हरकतों पर रोक लगानी होगी।
आर्थिक हमलों की संभावना इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि अमेरिका और चीन के कुछ हित पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष समर्थन दे सकते हैं। अमेरिका, पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक रूप से मजबूत कर रहा है, जबकि चीन तकनीकी और युद्ध क्षेत्र की जानकारी में मदद करता है। इससे यह साफ हो जाता है कि अगर पाकिस्तान गुजरात में किसी रिफाइनरी या पोर्ट को निशाना बनाता है, तो उसे रोकने के लिए भारत को आर्थिक और सैन्य दोनों तैयारियों को मजबूत करना होगा। यह सिर्फ सीमाओं की लड़ाई नहीं, बल्कि आर्थिक युद्ध भी होगा, जिसमें निवेशकों का भरोसा और देश की आर्थिक स्थिरता पर असर पड़ेगा।
अमेरिका से रिश्ता जोड़ता पाकिस्तान
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारने और आर्थिक और सैन्य संबंध बनाने में जरा भी देर नहीं लगाई और ऐसा लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इसके लिए तैयार हैं। जिससे आशंका बनती है कि संघर्ष का अगला राउंड ज्यादा दूर नहीं है। भारत को शायद ही ज्यादा दिनों तक सीजफायर देखना पड़े, शायद ज्यादा से ज्यादा कुछ हफ्ते या कुछ महीने... उसके बाद दूसरा राउंड होना अवश्यंभावी दिखता है। अगर पाकिस्तान गुजरात में रिफाइनरियों और बुनियादी ढांचे को निशाना बनाता है, तो शायद अमेरिका को कोई एतराज नहीं होगा। इसके पीछे कुछ वजहें हैं।
संजय कुलकर्णी ने नवभारत टाइम्स से कहा कि चीन को रोकने के लिए अमेरिका फिर से पाकिस्तान पर दांव खेल रहा है। निश्चित तौर पर डोनाल्ड ट्रंप के आर्थिक हित तो हैं ही। अमेरिका, पाकिस्तान के जरिए ईरान, चीन, भारत, रूस और अफगानिस्तान पर नजर रखना चाहता है। अमेरिका दशकों से ऐसा ही करता रहा है। जबकि पाकिस्तान की मानसिकता 'घास खाएंगे लेकिन बम बनाएंगे' की रही है। वो आज भी अपनी उस मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाया है।
पाकिस्तान को क्यों अमेरिका का मौन समर्थन?
दिप्रिंट में आर जगन्नाथन ने लिखा है कि अमेरिका और यूरोप पहले से ही सोचते हैं कि रूस से सस्ते कच्चे तेल की खरीद से भारत को फ़ायदा होता है। साथ ही यूरोप को बेचे जाने वाले रिफाइंड उत्पादों से भी अच्छी कमाई होती है। अगर पाकिस्तान नयारा रिफाइनरी को निशाना बनाता है, जिसका स्वामित्व रूसी कंपनी रोसनेफ्ट (जिसपर यूरोपीय प्रतिबंध लगा है) के पास है, तो अमेरिका को एतराज नहीं होगा। अगर अमेरिका और यूरोप ने नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनों को नष्ट करने में जरा भी संकोच नहीं किया, तो वे पाकिस्तान को भारत के साथ ऐसा करने का दोष (या श्रेय) लेने से क्यों हिचकिचाएंगे?
दूसरी वजह ये है कि गुजरात न सिर्फ भारत के दो सबसे अमीर व्यापारियों, मुकेश अंबानी और गौतम अडानी का घर है, बल्कि देश के दो सबसे शक्तिशाली राजनेताओं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का राजनीतिक आधार भी है। ऐसा लगता है कि अमेरिका का मानना है कि इन दोनों व्यापारियों को कमजोर करने से मोदी सरकार कमजोर हो सकती है। तीसरा- भारतीय वायु सेना इस समय अपने सबसे कमजोर दौर से गुजर रही है और पुराने मिग विमानों के रिटायर्ड होने की वजह से वायुसेना की कुल स्क्वाड्रन संख्या घटकर 31 से भी कम रह गई है (जो पाकिस्तान की वायु सेना के लगभग बराबर है)। पाकिस्तान इसे अब असली नुकसान पहुंचाने के मौके के रूप में देख सकता है, क्योंकि उसे पता है कि कुछ और साल इंतजार करने से भारतीय वायुसेना के पास फिर से लड़ाकू विमानों की कोई कमी नहीं रहेगी।
इस स्थिति में एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत को तीन कदम तेजी से उठाने होंगे। सबसे पहले, आर्थिक मजबूती बढ़ानी होगी। निजी उद्यम, निवेश और उद्योग को तेजी से बढ़ावा देना होगा। दूसरा, सैन्य और रक्षा उत्पादन में तेजी लानी होगी, जैसे ड्रोन, मिसाइल, रडार और हथियारों के उत्पादन को बढ़ाना और सेना की पूरी कार्यप्रणाली को सुधारना होगा। इसके अलावा तीसरा, आंतरिक सुरक्षा और राजनीतिक एकजुटता बढ़ानी होगी, ताकि कोई भी आतंरिक विरोध या छोटे हमले अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर असर न डालें। अगर यह सब समय रहते किया गया तो पाकिस्तान की हर कोशिश नाकाम होती रहेगी।
जब किसी राज्य की जनता रोटी‑रोजगार और ऊर्जा की किल्लत से जूझ रही हो, तो सेना‑नेताओं की चिल्लाहट और धमकियां असल में घरेलू असंतोष को कम करने का नकाब होती हैं। पाकिस्तान में यह आर्थिक संकट, बदहाल अर्थव्यवस्था, बलूचिस्तान से लेकर खैबर पख्तूनख्वा तक लगातार होने वाले आतंकी हमले, उसे अंदर से बेचैन कर रहा है और बेचैनी का सबसे सरल इलाज भारत से दुश्मनी है। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुआ आतंकी हमला भी पाकिस्तान की इसी पॉलिसी का हिस्सा था। अगर कोई देश अपने घर में टूट रहा हो, तो वह पड़ोसी पर दाग देने की कोशिश करके अपने ही नागरिकों का ध्यान हटा देता है और पाकिस्तान यही कर रहा है।
नवभारत टाइम्स से बात करते हुए भारत के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी, जो भारतीय सेना में डीजी इन्फ्रैंट्री भी रह चुके हैं, उन्होंने असीम मुनीर की परमाणु धमकी और भारत के खिलाफ जहरीली सोच को लेकर खास बातचीत की है। आप नवभारत टाइम्स पर उनके साथ हुई खास बातचीत को देख सकते हैं। उन्होंने इस दौरान साफ शब्दों में कहा कि पाकिस्तान तो हमारा घोषित दुश्मन है ही, लेकिन चीन और पाकिस्तान को उन्होंने फ्रेनिमीज बताया। यानि, वो जो कभी दोस्त और कभी दुश्मन की तरह, अपने हितों को देखते हुए व्यवहार करते हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि पाकिस्तान, चीन और अमेरिका दोनों के लिए महत्वपूर्ण बन जाता है, क्योंकि भौगोलिक स्थिति उसके पक्ष में होता है।
पाकिस्तान के निशाने पर भारत की इकोनॉमी क्यों?
भारतीय एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान अब शायद भारत पर सीधे सैन्य हमला करने की बजाय भारत की अर्थव्यवस्था को निशाना बनाने की तैयारी कर रहा है। दिप्रिंट में लिखते हुए सीनियर जियो-पॉलिटिकल जर्नलिस्ट आर जगन्नाथन ने भी लिखा है कि पाकिस्तान भारत की इकोनॉमी को निशाना बनाना चाहता है। उन्होंने लिखा है कि भारत के सुरक्षा और रक्षा विभाग लगातार यह अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि पाकिस्तान अगली बार कैसे हमला कर सकता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की पारंपरिक रणनीतियां नाकाम रही हैं, इसलिए अब उसके लिए बड़े आर्थिक लक्ष्यों पर हमला करना ज्यादा आसान और असरदार विकल्प बन सकता है।
गुजरात के बड़े रिफाइनरी और पोर्ट्स जैसे रिलायंस रिफाइनरी, नायरा एनर्जी और अडानी ग्रुप के बंदरगाह भारत के आर्थिक इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रमुख स्तंभ हैं। पाकिस्तान इन पर हमला करके न सिर्फ नुकसान पहुंचाना चाहता है बल्कि निवेशकों और जनता का भरोसा भी कमजोर करना चाहता है। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल असीम मुनीर लगातार भारत को धमकियां दे रहे हैं। उन्होंने पिछले दिनों अमेरिका में भी बोलते हुए भारत को 'मर्सिडीज बेंज' और पाकिस्तान को 'बजरी से भरा भारी ट्रक' कहा था। उन्होंने गुजरात के बड़े उद्योग और पोर्ट्स का भी नाम लिया था, जो संकेत है कि पाकिस्तान अब आर्थिक हमला करने की कोशिश कर सकता है। वो गुजरात पर हमला करने की कोशिश कर सकता है।
भारत भी पाकिस्तान को बख्शने के मूड में नहीं
भारत ने भी इस खतरे को समझते हुए कड़े संदेश दिए हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भुज में कहा कि अगर पाकिस्तान सर क्रीक क्षेत्र में कुछ करने की कोशिश करेगा तो उसका जवाब इतना कड़ा होगा कि इतिहास और भूगोल दोनों बदल सकते हैं। इसके बाद सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने राजस्थान में बयान दिया कि ऑपरेशन सिंदूर जैसी रियायत अगली बार नहीं होगी और पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन बंद करना होगा। ये दोनों बयान संकेत देते हैं कि भारत पूरी तरह तैयार है और पाकिस्तान को अपनी हरकतों पर रोक लगानी होगी।
आर्थिक हमलों की संभावना इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि अमेरिका और चीन के कुछ हित पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष समर्थन दे सकते हैं। अमेरिका, पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक रूप से मजबूत कर रहा है, जबकि चीन तकनीकी और युद्ध क्षेत्र की जानकारी में मदद करता है। इससे यह साफ हो जाता है कि अगर पाकिस्तान गुजरात में किसी रिफाइनरी या पोर्ट को निशाना बनाता है, तो उसे रोकने के लिए भारत को आर्थिक और सैन्य दोनों तैयारियों को मजबूत करना होगा। यह सिर्फ सीमाओं की लड़ाई नहीं, बल्कि आर्थिक युद्ध भी होगा, जिसमें निवेशकों का भरोसा और देश की आर्थिक स्थिरता पर असर पड़ेगा।
अमेरिका से रिश्ता जोड़ता पाकिस्तान
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारने और आर्थिक और सैन्य संबंध बनाने में जरा भी देर नहीं लगाई और ऐसा लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इसके लिए तैयार हैं। जिससे आशंका बनती है कि संघर्ष का अगला राउंड ज्यादा दूर नहीं है। भारत को शायद ही ज्यादा दिनों तक सीजफायर देखना पड़े, शायद ज्यादा से ज्यादा कुछ हफ्ते या कुछ महीने... उसके बाद दूसरा राउंड होना अवश्यंभावी दिखता है। अगर पाकिस्तान गुजरात में रिफाइनरियों और बुनियादी ढांचे को निशाना बनाता है, तो शायद अमेरिका को कोई एतराज नहीं होगा। इसके पीछे कुछ वजहें हैं।
संजय कुलकर्णी ने नवभारत टाइम्स से कहा कि चीन को रोकने के लिए अमेरिका फिर से पाकिस्तान पर दांव खेल रहा है। निश्चित तौर पर डोनाल्ड ट्रंप के आर्थिक हित तो हैं ही। अमेरिका, पाकिस्तान के जरिए ईरान, चीन, भारत, रूस और अफगानिस्तान पर नजर रखना चाहता है। अमेरिका दशकों से ऐसा ही करता रहा है। जबकि पाकिस्तान की मानसिकता 'घास खाएंगे लेकिन बम बनाएंगे' की रही है। वो आज भी अपनी उस मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाया है।
पाकिस्तान को क्यों अमेरिका का मौन समर्थन?
दिप्रिंट में आर जगन्नाथन ने लिखा है कि अमेरिका और यूरोप पहले से ही सोचते हैं कि रूस से सस्ते कच्चे तेल की खरीद से भारत को फ़ायदा होता है। साथ ही यूरोप को बेचे जाने वाले रिफाइंड उत्पादों से भी अच्छी कमाई होती है। अगर पाकिस्तान नयारा रिफाइनरी को निशाना बनाता है, जिसका स्वामित्व रूसी कंपनी रोसनेफ्ट (जिसपर यूरोपीय प्रतिबंध लगा है) के पास है, तो अमेरिका को एतराज नहीं होगा। अगर अमेरिका और यूरोप ने नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनों को नष्ट करने में जरा भी संकोच नहीं किया, तो वे पाकिस्तान को भारत के साथ ऐसा करने का दोष (या श्रेय) लेने से क्यों हिचकिचाएंगे?
दूसरी वजह ये है कि गुजरात न सिर्फ भारत के दो सबसे अमीर व्यापारियों, मुकेश अंबानी और गौतम अडानी का घर है, बल्कि देश के दो सबसे शक्तिशाली राजनेताओं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का राजनीतिक आधार भी है। ऐसा लगता है कि अमेरिका का मानना है कि इन दोनों व्यापारियों को कमजोर करने से मोदी सरकार कमजोर हो सकती है। तीसरा- भारतीय वायु सेना इस समय अपने सबसे कमजोर दौर से गुजर रही है और पुराने मिग विमानों के रिटायर्ड होने की वजह से वायुसेना की कुल स्क्वाड्रन संख्या घटकर 31 से भी कम रह गई है (जो पाकिस्तान की वायु सेना के लगभग बराबर है)। पाकिस्तान इसे अब असली नुकसान पहुंचाने के मौके के रूप में देख सकता है, क्योंकि उसे पता है कि कुछ और साल इंतजार करने से भारतीय वायुसेना के पास फिर से लड़ाकू विमानों की कोई कमी नहीं रहेगी।
इस स्थिति में एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत को तीन कदम तेजी से उठाने होंगे। सबसे पहले, आर्थिक मजबूती बढ़ानी होगी। निजी उद्यम, निवेश और उद्योग को तेजी से बढ़ावा देना होगा। दूसरा, सैन्य और रक्षा उत्पादन में तेजी लानी होगी, जैसे ड्रोन, मिसाइल, रडार और हथियारों के उत्पादन को बढ़ाना और सेना की पूरी कार्यप्रणाली को सुधारना होगा। इसके अलावा तीसरा, आंतरिक सुरक्षा और राजनीतिक एकजुटता बढ़ानी होगी, ताकि कोई भी आतंरिक विरोध या छोटे हमले अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर असर न डालें। अगर यह सब समय रहते किया गया तो पाकिस्तान की हर कोशिश नाकाम होती रहेगी।
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