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यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए भारत पर प्रतिबंध लगा रहे राष्ट्रपति ट्रंप... अमेरिका का पाखंडी चेहरा आया सामने, एक्सपर्ट ने लगा दी क्लास

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वॉशिंगटन: भारत पर टैरिफ लगाकर अमेरिका ने अपना दोमुंहापन पूरी दुनिया को दिखा दिया है। एक तरफ जहां रूसी तेल खरीदने को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर भारी टैरिफ लगाया है, तो दूसरी तरफ रूस के सबसे बड़े ऊर्जा खरीदार चीन को बख्श दिया है। अमेरिकी के इस दोहरे रवैये को लेकर अमेरिका में ही सवाल उठ रहे हैं, जिसके बाद ट्रंप प्रशासन अजीब तर्क दे रहा है। अब वॉइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी ने इसे यूक्रेन में युद्ध रोकने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति की कोशिश बताया है।



वॉइट हाउस प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट ने मंगलवार को मीडिया से कहा कि 'राष्ट्रपति (ट्रंप) ने इस युद्ध (यूक्रेन में) को खत्म करने के लिए भारी दबाव डाला है। आपने देखा है कि उन्होंने एक्शन लिया है, भारत पर प्रतिबंध लगाया है। उन्होंने साफ किया है कि वह इस युद्ध को खत्म करना चाहते हैं।'



अमेरिकी वित्त मंत्री ने दिया अजीब तर्क

इसके पहले मंगलवार को ही अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने और चीन को छूट देने के पीछे अजीब तर्क दिया था। बेसेंट ने कहा कि चीन रूसी कच्चे तेल पर निर्भरता मामूली रूप से बढ़ी है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन पर रूसी हमले के पहले चीन मॉस्को से 13 प्रतिशत तेल खरीद रहा था, जो अब बढ़कर 16 प्रतिशत हो गया है। वहीं, भारत का आयात 1 प्रतिशत से 40 प्रतिशत पहुंच गया।



रूस से तेल खरीदकर मुनाफा कमा रहा भारत

बेसेंट ने कहा कि भारत रूस से तेल खरीदकर मुनाफा कमा रहा है। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि भारत के अमीर इस तेल को खरीदकर मुनाफा कमा रहे हैं। इसे फिर से बेचा जा रहा है, जो अस्वीकार्य है। ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है, जिसमें 25 प्रतिशत रूस से तेल खरीदने के लिए लगाया गया है, जो 27 अगस्त से लागू होगा।



भारत पर टैरिफ अमेरिका का पाखंड

अमेरिका के वित्त मंत्री के बयान की अमेरिकी विश्लेषक इवान ए फेगनबॉम ने निंदा की है और पाखंड बताया है। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में पूछा, क्या अमेरिकी राष्ट्रपति ने व्लादिमीर पुतिन की मेजबानी नहीं की? क्या विदेश मंत्री ने अभी-अभी नहीं कहा कि अब और प्रतिबंध नहीं। क्या अमेरिका कीव से मॉस्को की कुछ मांगों को मानने के लिए नहीं कह रहा है? और आपको आश्चर्य हो रहा है कि दिल्ली में इसे पाखंड और अजीब समय पर उठाया गया कदम क्यों माना जा रहा है?

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