नई दिल्ली: भारत की इकोनॉमिक ग्रोथ इस वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में मजबूत रहने की उम्मीद है। घरेलू खपत के कारण ऐसा होगा। एसबीआई कैपिटल मार्केट्स (एसबीआइकैप्स) की ताजा रिपोर्ट में यह अनुमान जाहिर किया गया है। भारत के पास घरेलू खपत सबसे मजबूत ढाल है। जब दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं अनिश्चितता और टैरिफ के भंवर में फंसी हैं तो इसी ने भारत को उबारकर रखा हुआ है। रिपोर्ट भारत की आंतरिक मांग को अर्थव्यवस्था के लिए स्थिरता का स्रोत बताती है। अमेरिका की ओर से लगाए गए 50% के भारी टैरिफ के जवाब में भारत के नीति निर्माताओं को घरेलू विकास पर ज्यादा फोकस करना पड़ रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 में पूंजीगत व्यय बढ़ाया है। इससे सकल स्थायी पूंजी निर्माण में बढ़ोतरी होने की संभावना है। घरेलू खपत के महत्व को समझते हुए जीएसटी दरों में बदलाव त्योहारी सीजन के साथ तालमेल बैठाकर किए गए हैं। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) का अनुमान है कि इस साल त्योहारी बिक्री रिकॉर्ड 4.75 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है। ऑटो खुदरा बिक्री में भी नवरात्र के दौरान मजबूत बढ़ोतरी देखी गई है। ये इस उछाल के शुरुआती संकेत हैं।
एसबीआइकैप्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता बनी हुई है। टैरिफ अब 'न्यू नॉर्मल' बन गए हैं। अगस्त 2025 में चीन से अमेरिका को होने वाले निर्यात में पिछले साल की तुलना में 33% की गिरावट आई। लेकिन, कुल शिपमेंट में 4.4% की ग्रोथ हुई। यह पूर्ण व्यवधान के बजाय सप्लाई चेन के पुनर्गठन का संकेत देता है। निर्यातकों और खुदरा विक्रेताओं ने अब तक महंगाई के दबाव को झेला है। हालांकि, उपभोक्ताओं को इसका असर महसूस होने लगा है। अमेरिका ने इलेक्ट्रॉनिक्स और जेनेरिक दवाओं जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर टैरिफ लगाने से परहेज किया है। यह व्यापार में महत्वपूर्ण संतुलन को दर्शाता है।
रिपोर्ट में दी गई है यह चेतावनी
वैश्विक स्तर पर रिपोर्ट ने अमेरिकी डॉलर से दुनिया की प्रमुख संपत्ति के रूप में साफ बदलाव देखा है। केंद्रीय बैंक अब तीन दशकों में पहली बार अमेरिकी ट्रेजरी की तुलना में अधिक सोना रख रहे हैं। हालांकि, अभी तक कोई विश्वसनीय विकल्प सामने नहीं आया है। चीनी युआन और डिजिटल मुद्राओं ने ध्यान आकर्षित किया है।
रिपोर्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि निवेश को दोबारा संतुलित करने की जल्दबाजी से संपत्ति के बुलबुले बन सकते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) निवेश का नया क्षेत्र बनकर उभरा है। इस क्षेत्र में भारी पूंजी का प्रवाह हो रहा है। फिर भले ही व्यावसायिक मॉडल अभी भी अप्रमाणित हैं। ओपनएआई का वैल्यूएशन 500 अरब डॉलर तक पहुंचना इस ट्रेंड का उदाहरण है। हालांकि, मॉनेटाइजेशन अनिश्चित बना हुआ है। रिपोर्ट ने इस सट्टा माहौल में निवेशक के विवेक को महत्वपूर्ण बताया है।
घरेलू निवेशकों का बना रहा विश्वास घरेलू स्तर पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कर्ज प्रवाह को आसान बनाने की दिशा में कदम उठाया है। बड़े उधारकर्ताओं के लिए रीजनल कैप हटाने के साथ एक्विजिशन फाइनेंस पर प्रतिबंधों को ढीला करने का प्रस्ताव करके ऐसा किया गया है। शेयरों, आरईआईटी (रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) और आईएनवीआईटी (इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) पर कर्ज सीमा भी बढ़ाई जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार, इन कदमों और नए कैपिटल स्टैंडर्ड के अधिक कार्यान्वयन से वित्त वर्ष 2025-26 में पहली बार कर्ज-जमा अनुपात 80% से ऊपर चला गया है।
2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने भारतीय शेयर बाजारों से 18 अरब डॉलर निकाले। इसके बावजूद घरेलू निवेशकों ने मजबूत विश्वास दिखाया है। यह दर्शाता है कि भारतीय बाजार में स्थानीय निवेशकों की भागीदारी बढ़ रही है, जो अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत है।
यह रिपोर्ट भारत की आर्थिक स्थिति की मिलीजुली तस्वीर पेश करती है। एक ओर, मजबूत घरेलू मांग और सरकारी नीतियों से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। दूसरी ओर, वैश्विक अनिश्चितताएं और सट्टा निवेश के जोखिम चिंता का विषय बने हुए हैं। इन चुनौतियों के बावजूद भारत अपनी आंतरिक ताकत के बल पर आगे बढ़ने की राह पर है।
एसबीआइकैप्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता बनी हुई है। टैरिफ अब 'न्यू नॉर्मल' बन गए हैं। अगस्त 2025 में चीन से अमेरिका को होने वाले निर्यात में पिछले साल की तुलना में 33% की गिरावट आई। लेकिन, कुल शिपमेंट में 4.4% की ग्रोथ हुई। यह पूर्ण व्यवधान के बजाय सप्लाई चेन के पुनर्गठन का संकेत देता है। निर्यातकों और खुदरा विक्रेताओं ने अब तक महंगाई के दबाव को झेला है। हालांकि, उपभोक्ताओं को इसका असर महसूस होने लगा है। अमेरिका ने इलेक्ट्रॉनिक्स और जेनेरिक दवाओं जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर टैरिफ लगाने से परहेज किया है। यह व्यापार में महत्वपूर्ण संतुलन को दर्शाता है।
रिपोर्ट में दी गई है यह चेतावनी
वैश्विक स्तर पर रिपोर्ट ने अमेरिकी डॉलर से दुनिया की प्रमुख संपत्ति के रूप में साफ बदलाव देखा है। केंद्रीय बैंक अब तीन दशकों में पहली बार अमेरिकी ट्रेजरी की तुलना में अधिक सोना रख रहे हैं। हालांकि, अभी तक कोई विश्वसनीय विकल्प सामने नहीं आया है। चीनी युआन और डिजिटल मुद्राओं ने ध्यान आकर्षित किया है।
रिपोर्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि निवेश को दोबारा संतुलित करने की जल्दबाजी से संपत्ति के बुलबुले बन सकते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) निवेश का नया क्षेत्र बनकर उभरा है। इस क्षेत्र में भारी पूंजी का प्रवाह हो रहा है। फिर भले ही व्यावसायिक मॉडल अभी भी अप्रमाणित हैं। ओपनएआई का वैल्यूएशन 500 अरब डॉलर तक पहुंचना इस ट्रेंड का उदाहरण है। हालांकि, मॉनेटाइजेशन अनिश्चित बना हुआ है। रिपोर्ट ने इस सट्टा माहौल में निवेशक के विवेक को महत्वपूर्ण बताया है।
घरेलू निवेशकों का बना रहा विश्वास घरेलू स्तर पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कर्ज प्रवाह को आसान बनाने की दिशा में कदम उठाया है। बड़े उधारकर्ताओं के लिए रीजनल कैप हटाने के साथ एक्विजिशन फाइनेंस पर प्रतिबंधों को ढीला करने का प्रस्ताव करके ऐसा किया गया है। शेयरों, आरईआईटी (रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) और आईएनवीआईटी (इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) पर कर्ज सीमा भी बढ़ाई जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार, इन कदमों और नए कैपिटल स्टैंडर्ड के अधिक कार्यान्वयन से वित्त वर्ष 2025-26 में पहली बार कर्ज-जमा अनुपात 80% से ऊपर चला गया है।
2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने भारतीय शेयर बाजारों से 18 अरब डॉलर निकाले। इसके बावजूद घरेलू निवेशकों ने मजबूत विश्वास दिखाया है। यह दर्शाता है कि भारतीय बाजार में स्थानीय निवेशकों की भागीदारी बढ़ रही है, जो अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत है।
यह रिपोर्ट भारत की आर्थिक स्थिति की मिलीजुली तस्वीर पेश करती है। एक ओर, मजबूत घरेलू मांग और सरकारी नीतियों से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। दूसरी ओर, वैश्विक अनिश्चितताएं और सट्टा निवेश के जोखिम चिंता का विषय बने हुए हैं। इन चुनौतियों के बावजूद भारत अपनी आंतरिक ताकत के बल पर आगे बढ़ने की राह पर है।
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