US Tech Jobs: अमेरिका में टेक सेक्टर का सबसे बुरा हाल है, क्योंकि यहां पर लगातार छंटनी हो रही है। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि यहां नौकरियों की भी कमी हो चुकी है। यही वजह है कि बहुत से छात्र, जो अब ग्रेजुएशन कर रहे हैं या फिर जिन्हें डिग्री मिल चुकी है, वे जॉब ढूंढने में दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। इस बीच एक भारतीय छात्रा ने उन टिप्स के बारे में बताया है, जिनके जरिए आसानी से अमेरिका में कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट्स जॉब पा सकते हैं। छात्रा ने अपना सफर भी शेयर किया है।
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प्रियंका देवी ने चेन्नई में स्थित अन्ना यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग इन कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की। इसके बाद वह अमेरिका में मास्टर्स करने चली गईं। यहां उन्हें न्यूयॉर्क के बिंगहैमटन यूनिवर्सिटी में मास्टर्स इन कंप्यूटर साइंस कोर्स में दाखिला मिला। हालांकि, यहां पहुंचने पर उन्हें पता चला कि उनके कोर्स में ज्यादातर ऐसे छात्र हैं, जिनके पास पहले से ही तीन-चार साल का वर्क एक्सपीरियंस है। बिना वर्क एक्सपीरियंस की वजह से प्रियंका के लिए जॉब ढूंढना काफी ज्यादा मुश्किल हो गया।
स्टडी इंटरनेशनल से बात करते हुए उन्होंने कहा, "पहले कंप्यूटर साइंस से जुड़ी जॉब्स में विविधता के बारे में लोगों को मालूम नहीं था। बहुत से लोग डाटा साइंटिस्ट या सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग वाली पोस्ट के लिए अप्लाई करते थे। बहुत से लोग तो उन सब्जेक्ट्स में स्पेशलाइजेशन कर रहे थे, जिसमें वह पहले से ही स्पेशलिस्ट थे।" हालांकि, प्रियंका के लिए उनकी चुनौती ही उनकी ताकत बन गई। उन्होंने कोर्स खत्म किया और फिर एक विषय में स्पेशलाइजेशन करने में पूरा फोकस लगा दिया।
भारतीय छात्रा ने क्या टिप शेयर की?
प्रियंका ने बाकी लोगों की तरह एक सब्जेक्ट में स्पेशलाइजेशन कर सिर्फ जॉब के लिए अप्लाई करने के रास्ते को नहीं चुना। उन्होंने कुछ उल्टा किया, जिससे उन्हें आसानी से जॉब मिल गई। प्रियंका ने टिप शेयर करते हुए कहा कि लोगों को सिर्फ टेक इंडस्ट्री में जॉब नहीं ढूंढनी चाहिए, बल्कि अन्य जगहों पर भी अवसर तलाशने चाहिए। उदाहरण के लिए जहां लोग गूगल, माइक्रोसॉफ्ट में इंटर्नशिप करने जा रहे थे, वहीं, प्रियंका ने हेल्थकेयर कंपनी ग्लोबल हेल्थ इम्पैक्ट प्रोजेक्ट नाम में टेक्निकल इंटर्नशिप की।
भारतीय छात्रा ने बताया, "टेक इंडस्ट्री की तुलना में हेल्थकेयर इंडस्ट्री में कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट्स के लिए ज्यादा ऑप्शन हैं, इसलिए मैंने वहां अप्लाई किया।" डेढ़ साल यहां काम करने के बाद उनके सामने एक और चुनौती आ खड़ी हुई। उन्हें ग्रेजुएट होने के 90 दिनों के भीतर जॉब ढूंढनी थी। उन्होंने इंटर्नशिप में मिली नॉलेज के आधार पर हेल्थकेयर इंडस्ट्री में अप्लाई किया और यहां उन्हें जॉब मिल गई। यूनियन हॉस्पिटल ने उन्हें बिजनेस इंटेलिजेंस एनालिस्ट के तौर पर जॉब पर रख लिया।
हेल्थकेयर के एक्सपीरियंस से टेक कंपनी में मिली जॉब
वहीं, यूनियन हॉस्पिटल में काम करते हुए उन्होंने एक डैशबोर्ड बनाया, जिसने पूरे अस्पताल की जानकारी देना शुरू कर दिया। इससे मरीजों को समय पर इलाज दिया गया। यूनियन हॉस्पिटल में ढाई साल काम करने के बाद उन्हें H-1B वीजा के लिए नई कंप्यूटर साइंस जॉब भी ढूंढना था। उन्होंने कहा, "मेरा तीन साल का OPT खत्म हो चुका था और मुझे एक ऐसी कंपनी की तलाश थी, जो मुझे स्पांसर करे।"
प्रियंका ने बताया, "मेरी इंटर्नशिप के साथ मेरे पास हेल्थकेयर इंडस्ट्री में तीन साल का वर्क एक्सपीरियंस भी हो चुका था। अब मैं अलग इंडस्ट्री में एक्सपीरियंस की तलाश में थी।" तभी उन्हें अमेजन में बिजनेस इंटेलिजेंस एनालिस्ट की जॉब के बारे में मालूम चला, जो कंप्यूटर साइंस से जुड़ी हुई नौकरी थी। उन्होंने इसके लिए अप्लाई किया और उन्हें आसानी से ये नौकरी H-1B वीजा स्पांसरशिप के साथ मिल गई।
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प्रियंका देवी ने चेन्नई में स्थित अन्ना यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग इन कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की। इसके बाद वह अमेरिका में मास्टर्स करने चली गईं। यहां उन्हें न्यूयॉर्क के बिंगहैमटन यूनिवर्सिटी में मास्टर्स इन कंप्यूटर साइंस कोर्स में दाखिला मिला। हालांकि, यहां पहुंचने पर उन्हें पता चला कि उनके कोर्स में ज्यादातर ऐसे छात्र हैं, जिनके पास पहले से ही तीन-चार साल का वर्क एक्सपीरियंस है। बिना वर्क एक्सपीरियंस की वजह से प्रियंका के लिए जॉब ढूंढना काफी ज्यादा मुश्किल हो गया।
स्टडी इंटरनेशनल से बात करते हुए उन्होंने कहा, "पहले कंप्यूटर साइंस से जुड़ी जॉब्स में विविधता के बारे में लोगों को मालूम नहीं था। बहुत से लोग डाटा साइंटिस्ट या सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग वाली पोस्ट के लिए अप्लाई करते थे। बहुत से लोग तो उन सब्जेक्ट्स में स्पेशलाइजेशन कर रहे थे, जिसमें वह पहले से ही स्पेशलिस्ट थे।" हालांकि, प्रियंका के लिए उनकी चुनौती ही उनकी ताकत बन गई। उन्होंने कोर्स खत्म किया और फिर एक विषय में स्पेशलाइजेशन करने में पूरा फोकस लगा दिया।
भारतीय छात्रा ने क्या टिप शेयर की?
प्रियंका ने बाकी लोगों की तरह एक सब्जेक्ट में स्पेशलाइजेशन कर सिर्फ जॉब के लिए अप्लाई करने के रास्ते को नहीं चुना। उन्होंने कुछ उल्टा किया, जिससे उन्हें आसानी से जॉब मिल गई। प्रियंका ने टिप शेयर करते हुए कहा कि लोगों को सिर्फ टेक इंडस्ट्री में जॉब नहीं ढूंढनी चाहिए, बल्कि अन्य जगहों पर भी अवसर तलाशने चाहिए। उदाहरण के लिए जहां लोग गूगल, माइक्रोसॉफ्ट में इंटर्नशिप करने जा रहे थे, वहीं, प्रियंका ने हेल्थकेयर कंपनी ग्लोबल हेल्थ इम्पैक्ट प्रोजेक्ट नाम में टेक्निकल इंटर्नशिप की।
भारतीय छात्रा ने बताया, "टेक इंडस्ट्री की तुलना में हेल्थकेयर इंडस्ट्री में कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट्स के लिए ज्यादा ऑप्शन हैं, इसलिए मैंने वहां अप्लाई किया।" डेढ़ साल यहां काम करने के बाद उनके सामने एक और चुनौती आ खड़ी हुई। उन्हें ग्रेजुएट होने के 90 दिनों के भीतर जॉब ढूंढनी थी। उन्होंने इंटर्नशिप में मिली नॉलेज के आधार पर हेल्थकेयर इंडस्ट्री में अप्लाई किया और यहां उन्हें जॉब मिल गई। यूनियन हॉस्पिटल ने उन्हें बिजनेस इंटेलिजेंस एनालिस्ट के तौर पर जॉब पर रख लिया।
हेल्थकेयर के एक्सपीरियंस से टेक कंपनी में मिली जॉब
वहीं, यूनियन हॉस्पिटल में काम करते हुए उन्होंने एक डैशबोर्ड बनाया, जिसने पूरे अस्पताल की जानकारी देना शुरू कर दिया। इससे मरीजों को समय पर इलाज दिया गया। यूनियन हॉस्पिटल में ढाई साल काम करने के बाद उन्हें H-1B वीजा के लिए नई कंप्यूटर साइंस जॉब भी ढूंढना था। उन्होंने कहा, "मेरा तीन साल का OPT खत्म हो चुका था और मुझे एक ऐसी कंपनी की तलाश थी, जो मुझे स्पांसर करे।"
प्रियंका ने बताया, "मेरी इंटर्नशिप के साथ मेरे पास हेल्थकेयर इंडस्ट्री में तीन साल का वर्क एक्सपीरियंस भी हो चुका था। अब मैं अलग इंडस्ट्री में एक्सपीरियंस की तलाश में थी।" तभी उन्हें अमेजन में बिजनेस इंटेलिजेंस एनालिस्ट की जॉब के बारे में मालूम चला, जो कंप्यूटर साइंस से जुड़ी हुई नौकरी थी। उन्होंने इसके लिए अप्लाई किया और उन्हें आसानी से ये नौकरी H-1B वीजा स्पांसरशिप के साथ मिल गई।
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