नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत को अपनी गीदड़भभकी से नहीं झुका पाए तो उन्होंने पाकिस्तान को चने के झाड़ पर चढ़ा दिया। भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने के कुछ ही घंटों बाद ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ एक ऊर्जा साझेदारी का ऐलान किया। ट्रंप ने दावा किया पाकिस्तान भविष्य में भारत को तेल निर्यात कर सकता है। उनका यह बयान भारत की रूसी तेल पर बढ़ती निर्भरता पर परोक्ष कटाक्ष माना जा रहा है। हालांकि, उनके इस ऐलान के बाद पाकिस्तान की वास्तविक तेल क्षमता को लेकर चर्चा तेज हो गई। आइए, यहां इस दावे की हकीकत, पाकिस्तान के ऊर्जा भंडार की स्थिति और इस तरह की परियोजना की व्यवहार्यता के बारे में जानते हैं।
पाकिस्तान की ऊर्जा स्थिति को करीब से देखने पर पता लगता है कि ट्रंप जो कह रहे हैं, वैसा होना अभी मुमकिन नहीं है। न तो पाकिस्तान के पास इतना बड़ा तेल भंडार है, न इन्फ्रास्ट्रक्चर। आगे व्यावसायिक व्यवहार्यता पर भी सवाल हैं। ट्रंप ने लिखा, 'हम उस तेल कंपनी को चुनने की प्रक्रिया में हैं जो इस साझेदारी का नेतृत्व करेगी। कौन जानता है, शायद वे एक दिन भारत को तेल बेचेंगे!' इसके उलट पाकिस्तान की तेल क्षमता अलग ही कहानी बयां करती है। अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार, 2016 तक पाकिस्तान के पास करीब 35.35 करोड़ बैरल तेल का भंडार था। वो दुनिया में 52वें स्थान पर था।
अपनी जरूरत पूरी करने का भी रिजर्व नहीं
वर्तमान में पाकिस्तान की दैनिक खपत लगभग 5,50,000 बैरल है। इस हिसाब से यह भंडार दो साल से भी कम समय तक चल पाएगा। पाकिस्तान रोजाना लगभग 88,000 बैरल तेल का उत्पादन करता है। यह उसकी घरेलू जरूरतों का छोटा सा हिस्सा ही पूरा करता है। अपनी खपत का लगभग 85% हिस्सा वह आयात करता है। ट्रंप का दावा पाकिस्तान के अपतटीय सिंधु बेसिन में किए गए हालिया भूकंपीय सर्वे का उल्लेख करती है। इन सर्वे में कुछ ऐसी भूवैज्ञानिक संरचनाएं मिली हैं जिनमें हाइड्रोकार्बन हो सकते हैं। 2024 में अंतरराष्ट्रीय समर्थन के साथ किए गए एक सर्वे में आशाजनक संरचनाओं का वर्णन किया गया है। हालांकि, अभी तक किसी भी खोजपूर्ण ड्रिलिंग से संसाधनों के आकार, गुणवत्ता या पुनर्प्राप्ति की पुष्टि नहीं हुई है।
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसी संरचनाएं वैश्विक पेट्रोलियम मानकों के तहत 'भंडार' के रूप में योग्य नहीं हैं। किसी संसाधन को भंडार के रूप में कैटेगराइज करने के लिए ड्रिलिंग के जरिये इसे साबित करना होगा। यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य होना चाहिए। इसे एक परिभाषित विकास योजना का हिस्सा होना चाहिए। आगे बढ़ने के लिए वित्तीय और तकनीकी जरूरतें बहुत ज्यादा हैं।
पाकिस्तान के पास न पैसा, न इन्फ्रास्ट्रक्चर
अनुमान बताते हैं कि खोजपूर्ण कुओं से अनुकूल परिणाम मिलने पर भी कमर्शियल डेवलपमेंट शुरू करने में कम से कम 5 अरब डॉलर और चार से पांच साल लगेंगे। रिफाइनरियों, पाइपलाइनों और निर्यात बुनियादी ढांचे के लिए अतिरिक्त निवेश की जरूरत होगी। वर्तमान में पाकिस्तान के पास इनमें से कुछ भी नहीं है।
भू-राजनीतिक रूप से प्रस्तावित अमेरिका-पाकिस्तान साझेदारी मौजूदा रणनीतिक हितों के साथ जुड़ सकती है। चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के जरिये ऊर्जा और परिवहन बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है। यह निवेश विशेष रूप से बलूचिस्तान में किया गया है। जो स्थानीय विद्रोह और राजनीतिक संवेदनशीलता से प्रभावित क्षेत्र है। किसी भी समानांतर अमेरिका-समर्थित परियोजना के लिए सावधानीपूर्वक समन्वय और जोखिम प्रबंधन की जरूरत होगी।
क्यों झूठी उम्मीद बंधा रहा अमेरिका?
ट्रंप का बयान पाकिस्तान को तेल उत्पादक और निर्यातक के रूप में स्थापित करने की काल्पनिक तस्वीर पेश करता है। जमीनी हकीकत इसके बिलकुल उलट है। आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान के पास प्रमाणित तेल भंडार बहुत कम है। यह उसके वर्तमान घरेलू खपत के लिए भी अपर्याप्त है। यह एक बड़ा अंतर है। इसे ट्रंप जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं। इससे पाकिस्तान को यह गलतफहमी हो सकती है कि उसके पास वास्तव में बड़े संसाधन हैं।
ट्रंप का बयान भारत की रूसी तेल पर निर्भरता पर परोक्ष कटाक्ष है। यह भारत पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है। पाकिस्तान को संभावित तेल निर्यातक के रूप में पेश करके ट्रंप एक ही समय में भारत को परेशान कर रहे हैं और पाकिस्तान को यह महसूस करा रहे हैं कि अमेरिका उसका महत्वपूर्ण साझेदार है। यह पाकिस्तान को रणनीतिक मोहरे के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश है ताकि वह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए उत्साहित हो।
पाकिस्तान की ऊर्जा स्थिति को करीब से देखने पर पता लगता है कि ट्रंप जो कह रहे हैं, वैसा होना अभी मुमकिन नहीं है। न तो पाकिस्तान के पास इतना बड़ा तेल भंडार है, न इन्फ्रास्ट्रक्चर। आगे व्यावसायिक व्यवहार्यता पर भी सवाल हैं। ट्रंप ने लिखा, 'हम उस तेल कंपनी को चुनने की प्रक्रिया में हैं जो इस साझेदारी का नेतृत्व करेगी। कौन जानता है, शायद वे एक दिन भारत को तेल बेचेंगे!' इसके उलट पाकिस्तान की तेल क्षमता अलग ही कहानी बयां करती है। अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार, 2016 तक पाकिस्तान के पास करीब 35.35 करोड़ बैरल तेल का भंडार था। वो दुनिया में 52वें स्थान पर था।
अपनी जरूरत पूरी करने का भी रिजर्व नहीं
वर्तमान में पाकिस्तान की दैनिक खपत लगभग 5,50,000 बैरल है। इस हिसाब से यह भंडार दो साल से भी कम समय तक चल पाएगा। पाकिस्तान रोजाना लगभग 88,000 बैरल तेल का उत्पादन करता है। यह उसकी घरेलू जरूरतों का छोटा सा हिस्सा ही पूरा करता है। अपनी खपत का लगभग 85% हिस्सा वह आयात करता है। ट्रंप का दावा पाकिस्तान के अपतटीय सिंधु बेसिन में किए गए हालिया भूकंपीय सर्वे का उल्लेख करती है। इन सर्वे में कुछ ऐसी भूवैज्ञानिक संरचनाएं मिली हैं जिनमें हाइड्रोकार्बन हो सकते हैं। 2024 में अंतरराष्ट्रीय समर्थन के साथ किए गए एक सर्वे में आशाजनक संरचनाओं का वर्णन किया गया है। हालांकि, अभी तक किसी भी खोजपूर्ण ड्रिलिंग से संसाधनों के आकार, गुणवत्ता या पुनर्प्राप्ति की पुष्टि नहीं हुई है।
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसी संरचनाएं वैश्विक पेट्रोलियम मानकों के तहत 'भंडार' के रूप में योग्य नहीं हैं। किसी संसाधन को भंडार के रूप में कैटेगराइज करने के लिए ड्रिलिंग के जरिये इसे साबित करना होगा। यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य होना चाहिए। इसे एक परिभाषित विकास योजना का हिस्सा होना चाहिए। आगे बढ़ने के लिए वित्तीय और तकनीकी जरूरतें बहुत ज्यादा हैं।
पाकिस्तान के पास न पैसा, न इन्फ्रास्ट्रक्चर
अनुमान बताते हैं कि खोजपूर्ण कुओं से अनुकूल परिणाम मिलने पर भी कमर्शियल डेवलपमेंट शुरू करने में कम से कम 5 अरब डॉलर और चार से पांच साल लगेंगे। रिफाइनरियों, पाइपलाइनों और निर्यात बुनियादी ढांचे के लिए अतिरिक्त निवेश की जरूरत होगी। वर्तमान में पाकिस्तान के पास इनमें से कुछ भी नहीं है।
भू-राजनीतिक रूप से प्रस्तावित अमेरिका-पाकिस्तान साझेदारी मौजूदा रणनीतिक हितों के साथ जुड़ सकती है। चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के जरिये ऊर्जा और परिवहन बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है। यह निवेश विशेष रूप से बलूचिस्तान में किया गया है। जो स्थानीय विद्रोह और राजनीतिक संवेदनशीलता से प्रभावित क्षेत्र है। किसी भी समानांतर अमेरिका-समर्थित परियोजना के लिए सावधानीपूर्वक समन्वय और जोखिम प्रबंधन की जरूरत होगी।
क्यों झूठी उम्मीद बंधा रहा अमेरिका?
ट्रंप का बयान पाकिस्तान को तेल उत्पादक और निर्यातक के रूप में स्थापित करने की काल्पनिक तस्वीर पेश करता है। जमीनी हकीकत इसके बिलकुल उलट है। आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान के पास प्रमाणित तेल भंडार बहुत कम है। यह उसके वर्तमान घरेलू खपत के लिए भी अपर्याप्त है। यह एक बड़ा अंतर है। इसे ट्रंप जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं। इससे पाकिस्तान को यह गलतफहमी हो सकती है कि उसके पास वास्तव में बड़े संसाधन हैं।
ट्रंप का बयान भारत की रूसी तेल पर निर्भरता पर परोक्ष कटाक्ष है। यह भारत पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है। पाकिस्तान को संभावित तेल निर्यातक के रूप में पेश करके ट्रंप एक ही समय में भारत को परेशान कर रहे हैं और पाकिस्तान को यह महसूस करा रहे हैं कि अमेरिका उसका महत्वपूर्ण साझेदार है। यह पाकिस्तान को रणनीतिक मोहरे के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश है ताकि वह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए उत्साहित हो।
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