नई दिल्ली : जंग के मैदान पर उसका हौसला बेहद प्रेरित करने वाला था। उन्होंने बिना अपनी हिफाजत की परवाह किए हुए बहुत बहादुरी से हमारा मुकाबला किया। दोनों तरफ बहुत से लोग मारे गए। आखिर में मैं और अरुण अकेले बचे थे। हम दोनों ने साथ-साथ एक दूसरे पर निशाना लगाया....मेरी किस्मत अच्छी थी कि मैं बच गया और अरुण को इस दुनिया से जाना पड़ा। बाद में मुझे पता चला कि वो कितना कम उम्र का था। मैं आपके बेटे को सैल्यूट करता हूं और आपको भी सैल्यूट करता हूं, क्योंकि आपकी परवरिश के बिना वो इतना बहादुर शख्स नहीं बन सकता था। ये बातें एक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ने तब कही जब 1971 की जंग के 30 साल बाद परमवीर चक्र विजेता अरुण खेत्रपाल के पिता ब्रिगेडियर एमएल खेत्रपाल 81 साल की उम्र में अपनी जन्मभूमि सरगोधा देखने के लिए लाहौर पहुंचे थे। वेडनेसडे बिग टिकट में जानते हैं परमवीर चक्र विजेता अरुण खेत्रपाल की बेमिसाल बहादुरी की कहानी, जिन पर अमिताभ बच्चन के नाती आदित्य नंदा की फिल्म आ रही है-इक्कीस।
पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ने जमकर की खातिरदारी
अरुण के भाई मुकेश खेत्रपाल ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा-जब वो लाहौर पहुंचे तो एक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ने उनका स्वागत कया और उनसे कहा कि वो उनके घर चलें और उनके साथ रहें। उस ब्रिगेडियर और उसके पूरे परिवार ने उनकी इतनी खातिरदारी की कि ब्रिगेडियर खेत्रपाल अभिभूत हो गए। अरुण पर बन रही फिल्म 25 दिसंबर को रिलीज होगी। अमिताभ बच्चन ने फिल्म 'इक्कीस' के पोस्टर शेयर करते हुए आदित्य को शुभकामनाएं दी हैं।
एक तस्वीर ने बता दी पूरी कहानी
बीबीसी की एक स्टोरी के अनुसार, जब ब्रिगेडियर खेत्रपाल भारत लौटे तो उन्हें उनकी और ब्रिगेडियर नासेर की तस्वीर मिली जिसके पीछे लिखा हुआ था-शहीद अरुण खेत्रपाल परमवीर चक्र जो 16 दिसंबर, 1971 को 13 लांसर्स के जवाबी हमले के दौरान जीत और असफलता के बीच एक चट्टान की तरह खड़ा रहा। उनके पिता ब्रिगेडियर खेत्रपाल को अत्यंत सम्मान के साथ ख्वाजा मोहम्मद नासेर, 2 मार्च, 2001, लाहौर।
21 की उम्र में सबसे 21 ही थे खेत्रपाल
अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल (बाद में ब्रिगेडियर) एमएल खेत्रपाल भारतीय सेना में कोर ऑफ इंजीनियर्स अधिकारी थे। 1971 में जब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ रहा था, तब मात्र 21 वर्षीय अरुण को विशिष्ट 17 पूना हॉर्स रेजिमेंट में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त किया गया। यह एक छोटी लेकिन गौरवशाली यात्रा की शुरुआत थी, जिसने भारतीय सैन्य इतिहास में उनका नाम हमेशा के लिए अंकित कर दिया। कहा जाता है कि अरुण 21 की उम्र में भी सबसे इक्कीस ही थे।
जब टेलीग्राम से यह दुखद खबर आई
अरुण के पिता एमएल खेत्रपाल को जब बेटे की शहादत की खबर मिली तो वह घर में दाढ़ी बना रहे थे। उन्हें यह अंदेशा हो रहा था कि कुछ तो खबर आएगी। आखिर जब दरवाजे की घंटी बजी तो दाढ़ी बनाते उनके हाथ रुक गए। वो तेजी से दरवाजे की तरफ़ दौड़े। वहां एक पोस्टमैन खड़ा था। उनकी पत्नी माहेश्वरी खेत्रपाल फर्श पर पड़ी हुई थीं। उनके हाथों में एक टेलीग्राम था, जिसमें अंग्रेजी में लिखा था-आपको यह सूचित करते हुए अत्यंत खेद हो रहा है कि आपके पुत्र आईसी25067 सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल 16 दिसंबर को युद्ध में कथित रूप से शहीद हो गए। कृपया हार्दिक संवेदना स्वीकार करें।
शकरगढ़ सेक्टर एक महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र बना
1971 का भारत-पाक युद्ध मुख्य रूप से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में मानवीय संकट के कारण शुरू हुआ था, जो पाकिस्तानी सेना द्वारा गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन के बाद हुआ था। भारत में लाखों शरणार्थियों की आमद ने संसाधनों पर भारी दबाव बनाया और एक महत्वपूर्ण मानवीय और रणनीतिक चुनौती को जन्म दिया। भारत ने मानवीय आधार पर और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप किया। पूर्वी मोर्चे पर, भारत ने बांग्लादेश को आजाद कराने में निर्णायक भूमिका निभाई। इस बीच, पश्चिमी मोर्चे पर, जम्मू और कश्मीर के पास शकरगढ़ सेक्टर एक महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र बन गया, जहां पाकिस्तान का मकसद भारत के महत्वपूर्ण सड़क और आपूर्ति संपर्क को काटना था।
लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की बहादुरी को दुश्मन भी करता था सलाम
16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना ने शकरगढ़ सेक्टर में एक बड़ा हमला किया, जिसमें अत्याधुनिक अमेरिकी पैटन टैंकों से लैस एक पूरी बख्तरबंद ब्रिगेड ने बसंतर नदी के पास भारतीय ठिकानों को निशाना बनाया। इन टैंकों ने पाकिस्तान को युद्ध के मैदान में एक महत्वपूर्ण बढ़त दिलाई। जवाब में, 17 पूना हॉर्स के एक युवा अधिकारी सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने भारतीय ठिकाने की रक्षा के लिए आगे कदम बढ़ाया। जब भारतीय टैंकों की पहली पंक्ति पर हमला हुआ, तो वह अपने सेंचुरियन टैंक में आगे बढ़े और सीधे 5 से 10 दुश्मन टैंकों का सामना किया और उन्हें नष्ट कर दिया। अपने खुद के टैंक को नुकसान पहुंचाने के बावजूद अरुण ने पीछे हटने से इनकार कर दिया। जब उन्हें कमांडर वापस लौटने का आदेश दिया, तो उन्होंने जवाब दिया-नहीं सर, मैं अपना टैंक नहीं छोड़ूंगा। तभी अचानक एक गोला खेत्रपाल के टैंक के कपोला को भेदता हुआ निकल जाता है और उस गोले ने अरुण के पेट को फाड़ दिया, जिससे आंतें बाहर निकल आईं। कुछ देर बाद ही वो शहीद हो गए।
पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ने जमकर की खातिरदारी
अरुण के भाई मुकेश खेत्रपाल ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा-जब वो लाहौर पहुंचे तो एक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ने उनका स्वागत कया और उनसे कहा कि वो उनके घर चलें और उनके साथ रहें। उस ब्रिगेडियर और उसके पूरे परिवार ने उनकी इतनी खातिरदारी की कि ब्रिगेडियर खेत्रपाल अभिभूत हो गए। अरुण पर बन रही फिल्म 25 दिसंबर को रिलीज होगी। अमिताभ बच्चन ने फिल्म 'इक्कीस' के पोस्टर शेयर करते हुए आदित्य को शुभकामनाएं दी हैं।
एक तस्वीर ने बता दी पूरी कहानी
बीबीसी की एक स्टोरी के अनुसार, जब ब्रिगेडियर खेत्रपाल भारत लौटे तो उन्हें उनकी और ब्रिगेडियर नासेर की तस्वीर मिली जिसके पीछे लिखा हुआ था-शहीद अरुण खेत्रपाल परमवीर चक्र जो 16 दिसंबर, 1971 को 13 लांसर्स के जवाबी हमले के दौरान जीत और असफलता के बीच एक चट्टान की तरह खड़ा रहा। उनके पिता ब्रिगेडियर खेत्रपाल को अत्यंत सम्मान के साथ ख्वाजा मोहम्मद नासेर, 2 मार्च, 2001, लाहौर।
21 की उम्र में सबसे 21 ही थे खेत्रपाल
अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल (बाद में ब्रिगेडियर) एमएल खेत्रपाल भारतीय सेना में कोर ऑफ इंजीनियर्स अधिकारी थे। 1971 में जब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ रहा था, तब मात्र 21 वर्षीय अरुण को विशिष्ट 17 पूना हॉर्स रेजिमेंट में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त किया गया। यह एक छोटी लेकिन गौरवशाली यात्रा की शुरुआत थी, जिसने भारतीय सैन्य इतिहास में उनका नाम हमेशा के लिए अंकित कर दिया। कहा जाता है कि अरुण 21 की उम्र में भी सबसे इक्कीस ही थे।
जब टेलीग्राम से यह दुखद खबर आई
अरुण के पिता एमएल खेत्रपाल को जब बेटे की शहादत की खबर मिली तो वह घर में दाढ़ी बना रहे थे। उन्हें यह अंदेशा हो रहा था कि कुछ तो खबर आएगी। आखिर जब दरवाजे की घंटी बजी तो दाढ़ी बनाते उनके हाथ रुक गए। वो तेजी से दरवाजे की तरफ़ दौड़े। वहां एक पोस्टमैन खड़ा था। उनकी पत्नी माहेश्वरी खेत्रपाल फर्श पर पड़ी हुई थीं। उनके हाथों में एक टेलीग्राम था, जिसमें अंग्रेजी में लिखा था-आपको यह सूचित करते हुए अत्यंत खेद हो रहा है कि आपके पुत्र आईसी25067 सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल 16 दिसंबर को युद्ध में कथित रूप से शहीद हो गए। कृपया हार्दिक संवेदना स्वीकार करें।
शकरगढ़ सेक्टर एक महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र बना
1971 का भारत-पाक युद्ध मुख्य रूप से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में मानवीय संकट के कारण शुरू हुआ था, जो पाकिस्तानी सेना द्वारा गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन के बाद हुआ था। भारत में लाखों शरणार्थियों की आमद ने संसाधनों पर भारी दबाव बनाया और एक महत्वपूर्ण मानवीय और रणनीतिक चुनौती को जन्म दिया। भारत ने मानवीय आधार पर और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप किया। पूर्वी मोर्चे पर, भारत ने बांग्लादेश को आजाद कराने में निर्णायक भूमिका निभाई। इस बीच, पश्चिमी मोर्चे पर, जम्मू और कश्मीर के पास शकरगढ़ सेक्टर एक महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र बन गया, जहां पाकिस्तान का मकसद भारत के महत्वपूर्ण सड़क और आपूर्ति संपर्क को काटना था।
लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की बहादुरी को दुश्मन भी करता था सलाम
16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना ने शकरगढ़ सेक्टर में एक बड़ा हमला किया, जिसमें अत्याधुनिक अमेरिकी पैटन टैंकों से लैस एक पूरी बख्तरबंद ब्रिगेड ने बसंतर नदी के पास भारतीय ठिकानों को निशाना बनाया। इन टैंकों ने पाकिस्तान को युद्ध के मैदान में एक महत्वपूर्ण बढ़त दिलाई। जवाब में, 17 पूना हॉर्स के एक युवा अधिकारी सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने भारतीय ठिकाने की रक्षा के लिए आगे कदम बढ़ाया। जब भारतीय टैंकों की पहली पंक्ति पर हमला हुआ, तो वह अपने सेंचुरियन टैंक में आगे बढ़े और सीधे 5 से 10 दुश्मन टैंकों का सामना किया और उन्हें नष्ट कर दिया। अपने खुद के टैंक को नुकसान पहुंचाने के बावजूद अरुण ने पीछे हटने से इनकार कर दिया। जब उन्हें कमांडर वापस लौटने का आदेश दिया, तो उन्होंने जवाब दिया-नहीं सर, मैं अपना टैंक नहीं छोड़ूंगा। तभी अचानक एक गोला खेत्रपाल के टैंक के कपोला को भेदता हुआ निकल जाता है और उस गोले ने अरुण के पेट को फाड़ दिया, जिससे आंतें बाहर निकल आईं। कुछ देर बाद ही वो शहीद हो गए।
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