नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जमानत पाने के लिए पहले स्वेच्छा से बड़ी रकम जमा करने का प्रस्ताव देने और बाद में उसी से पलटने की रणनीति को न्यायिक प्रक्रिया के साथ धोखा करार दिया। जस्टिस के.वी. विश्वनाथन और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस चलन की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यह अब आम हो गया है और इससे अदालतें मामलों की गुण-दोष के आधार पर सुनवाई करने से वंचित रह जाती हैं।
न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता के प्रति सजग हैं
अदालत ने कहा कि हम न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता के प्रति सजग हैं। जमानत के आदेश के लिए अपनाई गई किसी चालबाजी को हम स्वीकार नहीं करेंगे। पीठ ने जोर देकर कहा कि जमानत की शर्तों की कठोरता को लेकर शिकायत करना तब अनुचित है, जब खुद ही उसकी पेशकश की गई हो।
सुप्रीम कोर्ट में क्या दावा किया?
बता दें कि यह टिप्पणी 13.7 करोड़ रुपये की कर चोरी के एक आरोपी की याचिका पर सुनवाई के दौरान आई, जिसने हाईकोर्ट में पहले 2.5 करोड़ रुपये अतिरिक्त जमा करने की स्वेच्छा से पेशकश की थी और जमानत पा ली थी। बाद में उसने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि उसके वकील को यह पेशकश करने का अधिकार नहीं था।
एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण का दिया निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने शुरू में हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण का निर्देश दिया। मामला गुण-दोष पर विचार के लिए वापस हाईकोर्ट भेज दिया। लेकिन पत्नी की गर्भावस्था और पिता की देखभाल जैसी मानवीय परिस्थितियों को देखते हुए राशि जमा करने की शर्त पर अंतरिम जमानत दे दी।
न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता के प्रति सजग हैं
अदालत ने कहा कि हम न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता के प्रति सजग हैं। जमानत के आदेश के लिए अपनाई गई किसी चालबाजी को हम स्वीकार नहीं करेंगे। पीठ ने जोर देकर कहा कि जमानत की शर्तों की कठोरता को लेकर शिकायत करना तब अनुचित है, जब खुद ही उसकी पेशकश की गई हो।
सुप्रीम कोर्ट में क्या दावा किया?
बता दें कि यह टिप्पणी 13.7 करोड़ रुपये की कर चोरी के एक आरोपी की याचिका पर सुनवाई के दौरान आई, जिसने हाईकोर्ट में पहले 2.5 करोड़ रुपये अतिरिक्त जमा करने की स्वेच्छा से पेशकश की थी और जमानत पा ली थी। बाद में उसने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि उसके वकील को यह पेशकश करने का अधिकार नहीं था।
एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण का दिया निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने शुरू में हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण का निर्देश दिया। मामला गुण-दोष पर विचार के लिए वापस हाईकोर्ट भेज दिया। लेकिन पत्नी की गर्भावस्था और पिता की देखभाल जैसी मानवीय परिस्थितियों को देखते हुए राशि जमा करने की शर्त पर अंतरिम जमानत दे दी।
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