चंडीगढ़ : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी सैनिक की सैन्य अभियान के दौरान अपने ही साथी सैनिक द्वारा गोली लगने से मौत हो जाती है, तो उसे युद्ध में मारे गए सैनिकों को मिलने वाले लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस आपत्ति को भी खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा पेंशन के लिए 25 साल की देरी से अदालत में आने की बात कही गई थी। कोर्ट ने कहा कि पेंशन एक निरंतर कार्रवाई का कारण है और यह समय से बाधित नहीं है। खासकर तब, जब पेंशन एक सैनिक के परिवार के सदस्य के लिए हो, जिसकी ड्यूटी के दौरान मौत हो गई हो।
मंत्रालय के वकील ने क्या कहा
जस्टिस अनूपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस दीपक मनचंदा की खंडपीठ ने यह आदेश रक्षा मंत्रालय की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। मंत्रालय ने आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (AFT), चंडीगढ़ के 22 फरवरी, 2022 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मृत सैनिक की मां रुकमणी देवी के उदार पारिवारिक पेंशन के दावे पर विचार करने के लिए कहा गया था। यह पेंशन सामान्य पारिवारिक पेंशन से अधिक होती है। मंत्रालय के वकील ने तर्क दिया कि सैनिक की मृत्यु 21 अक्टूबर, 1991 को हुई थी। AFT में 2018 में आवेदन दाखिल करने में 25 साल से अधिक की असाधारण देरी हुई है। इसके अलावा, वह ऑपरेशन पराक्रम के लिए तैनात नहीं थे।
कोर्ट ने सुनाया ये फैसला
सभी पक्षों को सुनने और रिकॉर्ड की जांच करने के बाद, बेंच ने कहा कि रुकमणी देवी का बेटा जम्मू और कश्मीर में ऑपरेशन रक्षक में तैनात था। ड्यूटी के दौरान एक साथी सैनिक ने उसे गोली मार दी थी। कोर्ट ने कहा कि इसे युद्ध हताहत माना जाना चाहिए, जैसा कि आर्मी एयर डिफेंस रिकॉर्ड्स में है। क्योंकि मृत्यु ऑपरेशन के दौरान हुई थी और इसमें कोई विवाद नहीं है कि रुकमणी देवी का बेटा वास्तव में अपनी मृत्यु के समय ऑपरेशन रक्षक में तैनात था। कोर्ट ने मंत्रालय को रुकमणी देवी के दावे पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने और उन्हें उदार पारिवारिक पेंशन देने का निर्देश दिया। यह फैसला उन सभी सैनिकों और उनके परिवारों के लिए एक बड़ी जीत है जो ड्यूटी के दौरान अपनी जान गंवा देते हैं।
मंत्रालय के वकील ने क्या कहा
जस्टिस अनूपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस दीपक मनचंदा की खंडपीठ ने यह आदेश रक्षा मंत्रालय की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। मंत्रालय ने आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (AFT), चंडीगढ़ के 22 फरवरी, 2022 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मृत सैनिक की मां रुकमणी देवी के उदार पारिवारिक पेंशन के दावे पर विचार करने के लिए कहा गया था। यह पेंशन सामान्य पारिवारिक पेंशन से अधिक होती है। मंत्रालय के वकील ने तर्क दिया कि सैनिक की मृत्यु 21 अक्टूबर, 1991 को हुई थी। AFT में 2018 में आवेदन दाखिल करने में 25 साल से अधिक की असाधारण देरी हुई है। इसके अलावा, वह ऑपरेशन पराक्रम के लिए तैनात नहीं थे।
कोर्ट ने सुनाया ये फैसला
सभी पक्षों को सुनने और रिकॉर्ड की जांच करने के बाद, बेंच ने कहा कि रुकमणी देवी का बेटा जम्मू और कश्मीर में ऑपरेशन रक्षक में तैनात था। ड्यूटी के दौरान एक साथी सैनिक ने उसे गोली मार दी थी। कोर्ट ने कहा कि इसे युद्ध हताहत माना जाना चाहिए, जैसा कि आर्मी एयर डिफेंस रिकॉर्ड्स में है। क्योंकि मृत्यु ऑपरेशन के दौरान हुई थी और इसमें कोई विवाद नहीं है कि रुकमणी देवी का बेटा वास्तव में अपनी मृत्यु के समय ऑपरेशन रक्षक में तैनात था। कोर्ट ने मंत्रालय को रुकमणी देवी के दावे पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने और उन्हें उदार पारिवारिक पेंशन देने का निर्देश दिया। यह फैसला उन सभी सैनिकों और उनके परिवारों के लिए एक बड़ी जीत है जो ड्यूटी के दौरान अपनी जान गंवा देते हैं।
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