बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर 2025 को होगी। चुनाव आयोग ने इस बार वोटरों को लंबी कतार से बचाने के लिए 90,712 मतदान केंद्र बनाए हैं। इससे एक केंद्र पर 1200 से कम मतदाता ही रह गए हैं। बिहार इस प्रयोग से देश का पहला राज्य बन गया है, जहां सभी मतदान केंद्र पर 1200 से कम वोटर होंगे। चुनाव आयोग ने लोकतंत्र के महोत्सव के आयोजन के लिए कई महीनों पहले से तैयारी शुरू कर दी थी। उसी आधार पर चुनाव के लिए बजट भी तय हुआ था। एक अनुमान के मुताबिक बिहार विधानसभा चुनाव पर करीब 900 से 1100 करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
देश में हैं 4120 विधानसभा सीटें
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की चुनावी खर्च पर आई रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में करीब 4120 विधानसभा सीटें हैं। वहीं बिहार में 243 असेंबली सीट है, जिन पर 6 और 11 नवंबर को वोट पड़ेंगे। पूरे विधानसभा चुनाव के खर्च को अगर 243 विधानसभा सीटों में बांटा जाए तो एक सीट पर करीब 45 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। वहीं बिहार में करीब 7.4 करोड़ वोटर हैं। इनमें पुरुष वोटरों की संख्या 3.9 करोड़ जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 3.5 करोड़ है। अगर एक वोटर पर आने वाला खर्च निकाला जाए तो यह करीब 149 रुपये के आसपास बैठता है, वह भी तब जब 100 प्रतिशत वोटिंग हुई हो। वोट प्रतिशत के डेटा के हिसाब से वोटर पर आने वाला खर्च भी बदल जाएगा।
2015 के विधानसभा चुनाव पर आया था इतना खर्च
बता दें कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव पर राज्य सरकार ने लगभग 300 करोड़ रुपये चुनाव पर खर्च किए थे। यह खर्च स्टेट फंड से हुआ था और इसमें राजनीतिक दलों का खर्च शामिल नहीं था। चुनाव कराने से जुड़े प्रमुख खर्चों को 3 भागों में बांटा गया था। पहला-वाहन, ईंधन, बूथ लगाने, टेंट-भवन और चुनावी दस्तावेजों की छपाई आदि पर खर्च था। इस पर करीब 152 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जो 2010 विधानसभा चुनाव से डेढ़ गुना ज्यादा था। दूसरा, सुरक्षा व्यवस्था पर था। इस चुनाव में राज्य में पहली बार सभी मतदान केन्द्रों पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) तैनात हुआ था। इसमें कुल 750 कंपनियां शामिल थीं। इस सुरक्षा इंतजाम पर लगभग 78 करोड़ रुपये का खर्च आया था, जिसे होम डिपार्टमेंट ने उठाया था।
3 लाख से ज्यादा मतदान कर्मी थे ड्यूटी पर
तीसरा और महत्वपूर्ण हिस्सा था-मतदान कर्मियों को मिलने वाला अलाउंस। उस दौरान करीब 3.27 लाख मतदान कर्मी काम कर रहे थे और उनका ऑनरेरियम लगभग 63 करोड़ रुपये रहा, जबकि 2010 में यह रकम 45 करोड़ रुपये थी। आयोग ने उस दौरान हरेक बूथ पर पीने का पानी, शौचालय, बिजली और रैंप जैसी मूल सुविधाएं उपलब्ध कराई थीं। इस चुनाव में पहली बार बड़े नेताओं के खिलाफ मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट उल्लंघन के 6 नोटिस जारी हुए थे। जबकि 2010 में ऐसा नहीं हुआ था।
2020 में कई गुना बढ़ गया था चुनाव खर्च
2020 में तो बिहार विधानसभा चुनाव का खर्च कई गुना बढ़ गया था क्योंकि कोविड महामारी को लेकर चुनाव आयोग को अतिरिक्त सेफ्टी इंतजाम करने पड़े थे। राज्य निर्वाचन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, चुनाव कराने में करीब 600 करोड़ रुपये का खर्च आया, जो 2015 के 300 करोड़ रुपये की तुलना में दो गुना था। चुनाव के दौरान कुल खर्च का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा केवल सुरक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर हुआ था। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव पर राज्य सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार 535 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। लोकसभा चुनावों का खर्च केंद्र सरकार उठाती है, जबकि विधानसभा चुनाव का पूरा खर्च संबंधित राज्य सरकार को वहन करना पड़ता है।
6 लाख हो गई थी मतदान कर्मी की संख्या
अधिकारियों के अनुसार, खर्च में बढ़ोतरी मुख्य रूप से कोविड सुरक्षा उपायों की वजह से हुई थी। मसलन 6 लाख मतदानकर्मियों के लिए PPE किट, दस्ताने, मास्क और सैनिटाइजर की व्यवस्था की गई थी। मतदान केंद्रों के बाहर सोशल डिस्टेंसिंग सर्किल बनाए गए थे। वाहनों की संख्या बढ़ाने और मतगणना केंद्रों को बड़ा करने जैसे उपायों से भी खर्च में इजाफा हुआ था। सुरक्षा बलों और मतदानकर्मियों के परिवहन पर भी अतिरिक्त लागत आई थी। साथ ही, मतदाताओं की संख्या को 1000 या उससे कम रखने के लिए 45% अधिक मतदान केंद्र बनाए गए थे।
देश में हैं 4120 विधानसभा सीटें
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की चुनावी खर्च पर आई रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में करीब 4120 विधानसभा सीटें हैं। वहीं बिहार में 243 असेंबली सीट है, जिन पर 6 और 11 नवंबर को वोट पड़ेंगे। पूरे विधानसभा चुनाव के खर्च को अगर 243 विधानसभा सीटों में बांटा जाए तो एक सीट पर करीब 45 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। वहीं बिहार में करीब 7.4 करोड़ वोटर हैं। इनमें पुरुष वोटरों की संख्या 3.9 करोड़ जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 3.5 करोड़ है। अगर एक वोटर पर आने वाला खर्च निकाला जाए तो यह करीब 149 रुपये के आसपास बैठता है, वह भी तब जब 100 प्रतिशत वोटिंग हुई हो। वोट प्रतिशत के डेटा के हिसाब से वोटर पर आने वाला खर्च भी बदल जाएगा।
2015 के विधानसभा चुनाव पर आया था इतना खर्च
बता दें कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव पर राज्य सरकार ने लगभग 300 करोड़ रुपये चुनाव पर खर्च किए थे। यह खर्च स्टेट फंड से हुआ था और इसमें राजनीतिक दलों का खर्च शामिल नहीं था। चुनाव कराने से जुड़े प्रमुख खर्चों को 3 भागों में बांटा गया था। पहला-वाहन, ईंधन, बूथ लगाने, टेंट-भवन और चुनावी दस्तावेजों की छपाई आदि पर खर्च था। इस पर करीब 152 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जो 2010 विधानसभा चुनाव से डेढ़ गुना ज्यादा था। दूसरा, सुरक्षा व्यवस्था पर था। इस चुनाव में राज्य में पहली बार सभी मतदान केन्द्रों पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) तैनात हुआ था। इसमें कुल 750 कंपनियां शामिल थीं। इस सुरक्षा इंतजाम पर लगभग 78 करोड़ रुपये का खर्च आया था, जिसे होम डिपार्टमेंट ने उठाया था।
3 लाख से ज्यादा मतदान कर्मी थे ड्यूटी पर
तीसरा और महत्वपूर्ण हिस्सा था-मतदान कर्मियों को मिलने वाला अलाउंस। उस दौरान करीब 3.27 लाख मतदान कर्मी काम कर रहे थे और उनका ऑनरेरियम लगभग 63 करोड़ रुपये रहा, जबकि 2010 में यह रकम 45 करोड़ रुपये थी। आयोग ने उस दौरान हरेक बूथ पर पीने का पानी, शौचालय, बिजली और रैंप जैसी मूल सुविधाएं उपलब्ध कराई थीं। इस चुनाव में पहली बार बड़े नेताओं के खिलाफ मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट उल्लंघन के 6 नोटिस जारी हुए थे। जबकि 2010 में ऐसा नहीं हुआ था।
2020 में कई गुना बढ़ गया था चुनाव खर्च
2020 में तो बिहार विधानसभा चुनाव का खर्च कई गुना बढ़ गया था क्योंकि कोविड महामारी को लेकर चुनाव आयोग को अतिरिक्त सेफ्टी इंतजाम करने पड़े थे। राज्य निर्वाचन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, चुनाव कराने में करीब 600 करोड़ रुपये का खर्च आया, जो 2015 के 300 करोड़ रुपये की तुलना में दो गुना था। चुनाव के दौरान कुल खर्च का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा केवल सुरक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर हुआ था। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव पर राज्य सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार 535 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। लोकसभा चुनावों का खर्च केंद्र सरकार उठाती है, जबकि विधानसभा चुनाव का पूरा खर्च संबंधित राज्य सरकार को वहन करना पड़ता है।
6 लाख हो गई थी मतदान कर्मी की संख्या
अधिकारियों के अनुसार, खर्च में बढ़ोतरी मुख्य रूप से कोविड सुरक्षा उपायों की वजह से हुई थी। मसलन 6 लाख मतदानकर्मियों के लिए PPE किट, दस्ताने, मास्क और सैनिटाइजर की व्यवस्था की गई थी। मतदान केंद्रों के बाहर सोशल डिस्टेंसिंग सर्किल बनाए गए थे। वाहनों की संख्या बढ़ाने और मतगणना केंद्रों को बड़ा करने जैसे उपायों से भी खर्च में इजाफा हुआ था। सुरक्षा बलों और मतदानकर्मियों के परिवहन पर भी अतिरिक्त लागत आई थी। साथ ही, मतदाताओं की संख्या को 1000 या उससे कम रखने के लिए 45% अधिक मतदान केंद्र बनाए गए थे।
You may also like

'खुशी से झलक पड़े आंसू', पीएम मोदी के हाथों मिली घर की चाबी, सोनिया बाई बताई अब कैसी है जिंदगी

राजद-कांग्रेस वाले हिंदुओं को नकार देंगे, इसलिए इन्हें नकार देना चाहिएः मुख्यमंत्री योगी

बागेश्वर धामˈ के पंडित जी हर महीने कितनी कमाई करते हैं? धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की कुल संपत्ति जानकर दंग रह जाएंगे आप﹒

कुर्सी पर पैर, दो छात्राओं से करवाई मालिश...,आंध्र सरकार ने वीडियो पर लिया एक्शन, महिला प्रिंसिपल सस्पेंड

भारतीय महिला क्रिकेट टीम प्रधानमंत्री मोदी से मिलने रवाना




