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जावेद जाफरी Exclusive: 'धमाल' के मानव वाली इमेज में फंसा हुआ था, अब जाकर बाहर निकला हूं

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कभी डांस विधा को नए आयाम देने वाले तो कभी अपने कॉमिक किरदारों से लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने वाले एक्टर जावेद जाफरी पिछले चार दशकों से इंडस्ट्री में अपना सिक्का जमाए हुए हैं। यही नहीं, इन दिनों वह काफी अलग-अलग किरदारों में भी नजर आ रहे हैं। वह खुद भी इस बात को मानते हैं कि पिछले कुछ समय में उन्हें काफी विविधतापूर्ण किरदार मिल रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी पुरानी कॉमिडी वाली इमेज टूटी है। 'धमाल' के मानव वाली इमेज में फंसा हुआ थाचालीस साल लंबे करियर में खुद को वक्त के साथ बदलते और जमाने के साथ रेलवेंट रखने के सवाल पर जावेद जाफरी कहते हैं, ' बतौर एक्टर आप कामयाब ही तब हैं, जब खुद को बदल सके, डायरेक्टर की सोच के हिसाब से किरदार में ढल जाएं। जैसे, पहले हम थोड़ी लाउड एक्टिंग करते थे, अब रियलिस्टिक एक्टिंग पर जोर होता है। अब मैं कहूं कि मैं अपनी ही तरह से काम करूंगा तो एक सीमा में बंधकर रह जाऊंगा और खुद को रिपीट करता रहूंगा। एक्टर के लिए जरूरी होता है कि जिनके साथ काम करें, उनके हिसाब से ढलते जाइए। तभी नयापन आ जाता है। दूसरे, आपको ऐसे रोल मिलने चाहिए। जैसे, पिछले एक साल में अचानक से मुझे बिल्कुल अलग-अलग तरह के रोल मिल गए। 'ताजा खबर' में एकदम सीरियस और पॉलिश किस्म का विलेन बना, तो 'मोहरें' का विलेन बहुत अलग है। सीरीज 'ऊप्स अब क्या' में करियर के ढलान पर पहुंच चुके टीवी स्टार का रोल किया, जिसकी अचानक से बच्ची आ गई, उसमें इमोशनल कॉमेडी का रंग है। फिर, 'मैजिक ऑफ शीरीं' में 60 साल के बूढ़े जादूगर का रोल किया।वहीं, 'इन गलियों में' फिल्म में धर्मनिरपेक्षता की पैरोकारी करने वाले शायर का रोल है। मैं बहुत खुशनसीब हूं कि 40 साल के बाद इतने अलग रोल मिल रहे हैं। ऐसे में, ये मेरा धर्म है कि मैं इन किरदारों के साथ न्याय कर पाऊं और अच्छा लगता है कि लोग मुझे इन अलग-अलग रोल में अपना रहे हैं। वरना मैं काफी समय तक फिल्म 'धमाल' के मानव वाली इमेज फंसा हुआ था, जो अब जाकर टूटा है।'
अच्छाई-बुराई की जंग चलती रहेगी'इन गलियों में' फिल्म में जावेद का किरदार मिर्जा लोगों को धर्म के नाम पर नफरत ना करके प्यार का पैगाम देता है। यह अजीब बात नहीं है कि इतने सालों बाद भी लोगों को यह बात समझानी पड़ रही है? इस पर जावेद कहते हैं, 'बिल्कुल अजीब है, मगर अच्छाई और बुराई की जंग तो एडम और इव के जमाने से चली जा रही है। वह जंग चल रही है और पता नहीं कब तक चलती रहेगी। दोनों अपनी-अपनी चाल से चल रही हैं, देखना ये है कि आखिर में जीतता कौन है। आम तौर पर हमने ये देखा है कि सचाई और अच्छाई की जीत होती है, लेकिन कई बार इस जंग में लोगों का काफी नुकसान हो जाता है, उन्हें अपनों को कुर्बान करना पड़ता है। हमारा फर्ज यह है कि आपको अपनी साइड चुननी है कि हम इस जंग में किस तरफ हैं।'
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