राम त्रिपाठी, नई दिल्लीः चिड़ियाघर में अफ्रीकी हाथी शंकर की मौत ने एक बार फिर कई सवाल खड़े कर दिए है। वन्यजीव संरक्षण से जुड़े कई महत्वपूर्ण पदों का लंबे समय से खाली होना इसका प्रमुख कारण माना जा रहा है। कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए लोगों के सहारे ही जू में एनिमल कीपिंग का काम चलाया जा रहा है। समय पर वन्यजीवों की तबीयत खराब होने की सूचना जू प्रशासन को नहीं मिल पा रही है। शंकर की हालत खराब होने की जानकारी समय पर जू प्रशासन को नहीं मिल पाई थी। डायरेक्टर डॉ संजीत कुमार ने बताया कि कम से कम 3 डॉक्टरों की जरूरत है। उनमें से एक डॉक्टर सर्जन होना चाहिए। इसके अलावा दो कंपाउंडर और न्यू बॉर्न बेबी सेंटर के लिए प्रशिक्षित केयरिंग स्टाफ की आवश्यकता है।
11 महीनों में हुई दो दर्जन से अधिक मौतेंपिछले 11 महीने में गैंडा, हिमालय भालू, टाइगर और उनके शावकों से लेकर एकमात्र अफ्रीकन हाथी शंकर सहित करीब दो दर्जन से अधिक जानवरों की हुई मौत ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शंकर की तरह उन वन्यजीवों की असामान्य गतिविधियां, तबीयत खराब होने की सूचना तुरंत नहीं मिल पाने के कारण उनका मामूली इलाज भी नहीं हो पाया था। बिना इलाज के उनकी मौत हुई है। वन्यजीवों के संरक्षण की प्रमुख जिम्मेदारी रेंजर की होती है। लापरवाही से मौत के मामले में जवाबदेही भी उन्हीं की होती है। मगर जनवरी से एक रेंजर को गुजरात भेजा गया है। दूसरा पद कई साल पहले से खाली पड़ा हुआ है। करीब 200 एकड़ में फैले चिड़ियाघर की 2 रेंज में 75 से अधिक बाड़ों, तालाब आदि में 1200 से अधिक वन्यजीव और पक्षी हैं। रेंजर का काम चिड़ियाघर क्यूरेटर कामचलाऊ तरीके से संभाले हुए हैं।
महावत हैं पर उनकी जवाबदेही नहींशंकर सहित 2 देसी हाथियों की कमान कुछ महीने पहले तक 3 महावत संभाले हुए थे। अब उनकी संख्या 5 हो गई है, लेकिन सभी कॉन्ट्रैक्ट पर है। हाथियों की तबीयत के बारे में वे लगातार जानकारी नहीं देते हैं। उनकी जवाबदेही भी नहीं है। चिड़ियाघर के एक अधिकारी में बताया कि इन्हीं हालातों का नतीजा है कि शंकर की गंभीर बीमारी का बिल्कुल पता नहीं लग पाया था। इसी कारण 17 सितंबर को वह एकदम से गिर गया और फिर उठा नहीं। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ही खुलासा हुआ है कि दिमाग और दिल की मांसपेशियों में आई सूजन के कारण उसकी मौत हुई थी।
97 पदों पर काम कॉन्ट्रैक्ट लेबर के सहारेजू के 203 स्वीकृत पदों में से केवल 106 पदों पर ही नियुक्तियां हो पाई हैं। 97 पदों का काम कॉन्ट्रैक्ट लेबर के सहारे चलाया जा रहा है। वे एनिमल कीपिंग के काम में प्रशिक्षित नहीं होते हैं। चिड़ियाघर के एक अधिकारी ने बताया कि अगर समय पर बीमारी का पता भी लग जाए, तो भी हर मामले में कोई बड़ा फायदा नहीं मिलेगा। मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर इस लायक नहीं है कि सभी बीमारियों का इलाज तुरंत शुरू किया जा सके। चिड़ियाघर की OT में आधुनिक हाइड्रोलिक टेबल तक नहीं है। बहुत जरूरी हैगिंग लाइट सिस्टम तक नहीं है। इसके अलावा हेमोटोलॉजी लैब नहीं है। एनालाइजर भी पूरे नहीं हैं। गंभीर रूप से पीड़ित वन्यजीवों के सैंपल जांच के लिए इमरजेंसी में बाहर भेजने पड़ रहे हैं। इसके अलावा एनेस्थीसिया, रिकवरी/स्टेबलाइजेशन, सीटी स्कैन, कर मेडिसिन रूम आदि की सुविधा भी नहीं है।
11 महीनों में हुई दो दर्जन से अधिक मौतेंपिछले 11 महीने में गैंडा, हिमालय भालू, टाइगर और उनके शावकों से लेकर एकमात्र अफ्रीकन हाथी शंकर सहित करीब दो दर्जन से अधिक जानवरों की हुई मौत ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शंकर की तरह उन वन्यजीवों की असामान्य गतिविधियां, तबीयत खराब होने की सूचना तुरंत नहीं मिल पाने के कारण उनका मामूली इलाज भी नहीं हो पाया था। बिना इलाज के उनकी मौत हुई है। वन्यजीवों के संरक्षण की प्रमुख जिम्मेदारी रेंजर की होती है। लापरवाही से मौत के मामले में जवाबदेही भी उन्हीं की होती है। मगर जनवरी से एक रेंजर को गुजरात भेजा गया है। दूसरा पद कई साल पहले से खाली पड़ा हुआ है। करीब 200 एकड़ में फैले चिड़ियाघर की 2 रेंज में 75 से अधिक बाड़ों, तालाब आदि में 1200 से अधिक वन्यजीव और पक्षी हैं। रेंजर का काम चिड़ियाघर क्यूरेटर कामचलाऊ तरीके से संभाले हुए हैं।
महावत हैं पर उनकी जवाबदेही नहींशंकर सहित 2 देसी हाथियों की कमान कुछ महीने पहले तक 3 महावत संभाले हुए थे। अब उनकी संख्या 5 हो गई है, लेकिन सभी कॉन्ट्रैक्ट पर है। हाथियों की तबीयत के बारे में वे लगातार जानकारी नहीं देते हैं। उनकी जवाबदेही भी नहीं है। चिड़ियाघर के एक अधिकारी में बताया कि इन्हीं हालातों का नतीजा है कि शंकर की गंभीर बीमारी का बिल्कुल पता नहीं लग पाया था। इसी कारण 17 सितंबर को वह एकदम से गिर गया और फिर उठा नहीं। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ही खुलासा हुआ है कि दिमाग और दिल की मांसपेशियों में आई सूजन के कारण उसकी मौत हुई थी।
97 पदों पर काम कॉन्ट्रैक्ट लेबर के सहारेजू के 203 स्वीकृत पदों में से केवल 106 पदों पर ही नियुक्तियां हो पाई हैं। 97 पदों का काम कॉन्ट्रैक्ट लेबर के सहारे चलाया जा रहा है। वे एनिमल कीपिंग के काम में प्रशिक्षित नहीं होते हैं। चिड़ियाघर के एक अधिकारी ने बताया कि अगर समय पर बीमारी का पता भी लग जाए, तो भी हर मामले में कोई बड़ा फायदा नहीं मिलेगा। मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर इस लायक नहीं है कि सभी बीमारियों का इलाज तुरंत शुरू किया जा सके। चिड़ियाघर की OT में आधुनिक हाइड्रोलिक टेबल तक नहीं है। बहुत जरूरी हैगिंग लाइट सिस्टम तक नहीं है। इसके अलावा हेमोटोलॉजी लैब नहीं है। एनालाइजर भी पूरे नहीं हैं। गंभीर रूप से पीड़ित वन्यजीवों के सैंपल जांच के लिए इमरजेंसी में बाहर भेजने पड़ रहे हैं। इसके अलावा एनेस्थीसिया, रिकवरी/स्टेबलाइजेशन, सीटी स्कैन, कर मेडिसिन रूम आदि की सुविधा भी नहीं है।
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