रांचीः झारखंड को एक अलग राज्य के रूप में मांग का इतिहास लिखा जाएगा तो इनमें सबसे पहला नाम जयपाल सिंह मुंडा का लिया जाएगा। झारखंड राज्य को ले कर विधिवत मांग करने वाले जयपाल सिंह मुंडा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनकी पकड़ कलम पर जितनी थी उस से कम पकड़ हॉकी की स्टिक पर नहीं थी। ये उनके संघर्षपूर्ण जीवन का सार ही है कि उन्हें मरांग गोमके कहा जाता था। इसका मतलब ग्रेट लीडर होता है। और उन्हें यह निक नेम से जाना गया तो इसके पीछे झारखंड राज्य और देश के प्रति समर्पित जीवन का श्रेय जाता है। जानते हैं उनके जीवन के विविध पहलुओं को....।
जयपाल सिंह मुंडा और झारखंड
जयपाल सिंह छोटा नागपुर (अब झारखंड) राज्य की मुंडा जनजाति के थे। मिशनरीज की मदद से वो ऑक्सफोर्ड के सेंट जॉन्स कॉलेज में पढ़ने के लिए गए। वह असाधारण रूप से प्रतिभाशाली थे। उन्होंने पढ़ाई के अलावा खेलकूद, जिनमें हॉकी प्रमुख था, के अलावा वाद-विवाद में खूब नाम कमाया। जयपाल सिंह मुंडा का नाम आज भारतीय आदिवासियों और झारखंड आंदोलन के एक होटल सर्वोच्च नेता के रूप में लिया जाता है। 1938-39 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन कर आदिवासियों के शोषण के विरुद्ध राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई लड़ने का निश्चय किया। जयपाल सिंह मुंडा ने 1952 में अलग राज्य के मांग के साथ झारखंड पार्टी की स्थापना की। गठन के बाद हुए पहले आम चुनाव में सभी आदिवासी जिलों में यह पार्टी उभरकर सामने आई। जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना तो झारखंड की मांग तेज हुई। इसमें तत्कालीन बिहार के अलावा उड़ीसा और बंगाल के भी कुछ क्षेत्रों को मिलाकर झारखंड राज्य की स्थापना की बात भी उठी। लेकिन झारखंड में कई भाषा बोले जाने के कारण आयोग ने यह कह कर प्रस्ताव खारिज किया कि यह कोई एक आम भाषा नहीं बोली जाती।।
आईसीएस क्वालीफाई थे मुंडा
जयपाल सिंह मुंडा तब के महत्वपूर्ण परीक्षा भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) में सफल अभ्यर्थी हुए थे। लेकिन यह वही समय था जब भारत को हॉकी के खेल में गोल्ड दिलाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे थे। इसके कारण उनका आईसीएस का प्रशिक्षण जरूर प्रभावित हुआ मगर 1928 में एम्सटर्डम हुए ओलंपिक हॉकी में पहला स्वर्णपदक जीतने वाली भारतीय टीम के कप्तान में अपना नाम शुमार कराया। इस खेल के लिए वे नीदरलैंड चले गए थे। वापसी पर उनसे आईसीएस का एक वर्ष का प्रशिक्षण दोबारा पूरा करने को कहा गया, उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। जयपाल सिंह मुंडा ने हॉकी के लिए छोड़ दी थी आइसीएस की नौकरी, फिर बने थे आदिवासियों की आवाज। आदिवासियों की स्थिति देख राजनीति में आने का फैसला किया था।
जब विश्व कप भारत का हुआ
जयपाल सिंह मुंडा पढ़ाई और खेल में भी अव्वल थे। वेवएक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद भी थे। 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे। उनकी कप्तानी में 1928 के ओलंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया था।
जयपाल सिंह मुंडा और झारखंड
जयपाल सिंह छोटा नागपुर (अब झारखंड) राज्य की मुंडा जनजाति के थे। मिशनरीज की मदद से वो ऑक्सफोर्ड के सेंट जॉन्स कॉलेज में पढ़ने के लिए गए। वह असाधारण रूप से प्रतिभाशाली थे। उन्होंने पढ़ाई के अलावा खेलकूद, जिनमें हॉकी प्रमुख था, के अलावा वाद-विवाद में खूब नाम कमाया। जयपाल सिंह मुंडा का नाम आज भारतीय आदिवासियों और झारखंड आंदोलन के एक होटल सर्वोच्च नेता के रूप में लिया जाता है। 1938-39 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन कर आदिवासियों के शोषण के विरुद्ध राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई लड़ने का निश्चय किया। जयपाल सिंह मुंडा ने 1952 में अलग राज्य के मांग के साथ झारखंड पार्टी की स्थापना की। गठन के बाद हुए पहले आम चुनाव में सभी आदिवासी जिलों में यह पार्टी उभरकर सामने आई। जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना तो झारखंड की मांग तेज हुई। इसमें तत्कालीन बिहार के अलावा उड़ीसा और बंगाल के भी कुछ क्षेत्रों को मिलाकर झारखंड राज्य की स्थापना की बात भी उठी। लेकिन झारखंड में कई भाषा बोले जाने के कारण आयोग ने यह कह कर प्रस्ताव खारिज किया कि यह कोई एक आम भाषा नहीं बोली जाती।।
आईसीएस क्वालीफाई थे मुंडा
जयपाल सिंह मुंडा तब के महत्वपूर्ण परीक्षा भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) में सफल अभ्यर्थी हुए थे। लेकिन यह वही समय था जब भारत को हॉकी के खेल में गोल्ड दिलाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे थे। इसके कारण उनका आईसीएस का प्रशिक्षण जरूर प्रभावित हुआ मगर 1928 में एम्सटर्डम हुए ओलंपिक हॉकी में पहला स्वर्णपदक जीतने वाली भारतीय टीम के कप्तान में अपना नाम शुमार कराया। इस खेल के लिए वे नीदरलैंड चले गए थे। वापसी पर उनसे आईसीएस का एक वर्ष का प्रशिक्षण दोबारा पूरा करने को कहा गया, उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। जयपाल सिंह मुंडा ने हॉकी के लिए छोड़ दी थी आइसीएस की नौकरी, फिर बने थे आदिवासियों की आवाज। आदिवासियों की स्थिति देख राजनीति में आने का फैसला किया था।
जब विश्व कप भारत का हुआ
जयपाल सिंह मुंडा पढ़ाई और खेल में भी अव्वल थे। वेवएक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद भी थे। 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे। उनकी कप्तानी में 1928 के ओलंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया था।
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