नई दिल्ली: बुधवार दोपहर करीब 3:25 बजे। मणिपुर की नगा पहाड़ियों के बीच बसे एक गांव में नए-नए बने हेलीपैड पर एक हेलिकॉप्टर उतरा, जिससे धूल का गुबार उठता हुआ एक समूह की ओर बढ़ा, जो अपने हाथों में हल्के नीले रंग का 'नगा राष्ट्रीय ध्वज' लिए खड़ा था। धूल जमते ही सबको एक बुजुर्ग और कमजोर सा दिखने वाला एक व्यक्ति सुरक्षाकर्मियों की मदद से हेलीकॉप्टर से बाहर निकला। उसे लोग थुइंगलेंग मुइवा कहकर बुलाते हैं। मुइवा ने पांच दशकों में पहली बार मणिपुर के उखरुल जिले में अपने पैतृक गांव सोमदल में कदम रखा। पूर्वाेत्तर कथा की पहली किस्त में जानते हैं मुइवा के इस सफर के बारे में, जो अब अचानक दुनिया के सामने आए।
दक्षिण एशिया के सबसे पुराने विद्रोह का चेहरा
91 साल की उम्र में मुइवा दक्षिण एशिया के सबसे पुराने विद्रोहों में से एक का चेहरा और इन इलाकों में एक नायक बने हुए हैं। वह 1964 में नागा स्वायत्तता के लिए लड़ने के लिए नगा राष्ट्रीय परिषद में शामिल हुए। 1980 में एस एस खापलांग और इसाक चिशी स्वू (जिन दोनों का अब निधन हो चुका है) के साथ मिलकर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN) का गठन किया। तभी से केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता की कमान संभाल रहे हैं। यह ग्रुप ग्रेटर नगालैंड की डिमांड करता रहा है। थुइंगलेंग मुइवा का जन्म 3 मार्च, 1934) को हुआ था। वह एक नगा राष्ट्रवादी राजनीतिज्ञ और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (आईएम) के महासचिव हैं।
जीवन के आखिरी पड़ाव पर लौटे गांव
अब अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर, मुइवा एक सप्ताह की यात्रा पर अपने गांव लौट आए हैं, जहां सरकार ने उन्हें लंबे समय तक जाने से रोक रखा था। मुइवा अपनी पत्नी पकाहाओ के साथ उखरुल जिला मुख्यालय पहुंचे, जहां अवखरार के लिए एक स्वागत समारोह आयोजित किया गया था। अवखरार स्थानीय तंगखुल बोली में परिवार के मुखिया के लिए कहा जाता है। मुइवा के उत्तराधिकारी के रूप में नामित 'उप-प्रधानमंत्री अतो किलोंसर' या 'जनवादी गणराज्य नगालिम (GPRN) सरकार के उप-प्रधानमंत्री' वीएस अतेम ने उनकी ओर से भाषण दिया।
इतने साल कहां छिपकर रहे मुइवा
भूमिगत रहने के दौरान मुइवा चीन, म्यांमार, थाईलैंड और नीदरलैंड्स में रहे हैं। मुइवा का यह आंदोलन नगा विद्रोहियों और भारत सरकार के बीच सशस्त्र संघर्ष के रूप में जाना जाता है। यह आंदोलन कई चरणों से गुजरा है, जिसमें 1997 में भारत सरकार और NSCN के बीच हस्ताक्षरित युद्धविराम समझौता भी शामिल है।
गांव आते ही मुइवा ने क्या ऐलान किया
मुइवा ने आखिरी बार 1964 में सोमदल का दौरा किया था। उन्होंने कहा-म्यांमार, चीन और भारत के ट्राई जंक्शन पर स्थित नगालिम सर्वशक्तिमान ईश्वर द्वारा दिया गया क्षेत्र है और नागा लोग पिछले 79 वर्षों से नागालिम के संप्रभु अस्तित्व की रक्षा कर रहे हैं।
2015 में मोदी सरकार ने किया था नगा समझौता
दशकों तक भूमिगत रहने और केंद्र सरकार के साथ वर्षों से अधर में लटकी बातचीत के बाद मुइवा के संबोधन में उनकी झुंझलाहट भी झलक रही थी। उन्होंने दोहराया कि अंतिम नगा राजनीतिक समझौता नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा 2015 में नगा समूहों के साथ बड़े धूमधाम से किए गए फ्रेमवर्क समझौते के मुताबिक ही होना चाहिए और एक अलग नगा ध्वज और संविधान को मान्यता देनी होगी।
मैतेई लोगों के साथ तनावपूर्ण रिश्ता
मुइवा के स्वागत समारोह में कम से कम तीन प्रमुख मैतेई दबाव समूहों कोकोमी, अमुको और एफओसीएस के प्रतिनिधि मौजूद थे। मैतेई लोगों का नगा आंदोलन के साथ लंबे समय से तनावपूर्ण रिश्ता रहा है, क्योंकि एक ‘एकीकृत नगा मातृभूमि’ या नगालिम के विचार में मणिपुर के वे भू-भाग शामिल हैं जहां नागा लोग रहते हैं, जो उनके बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा जातीय समूह हैं।
कांग्रेस सरकार ने मुइवा को जाने से रोका था
दरअसल, 2010 में मुइवा द्वारा सोमदल जाने की आखिरी कोशिश को तत्कालीन मणिपुर की कांग्रेस की अगुवाई वाली ओकराम इबोबी सिंह की सरकार ने नाकाम कर दिया था, जिसने उन्हें राज्य में प्रवेश देने से इनकार कर दिया था। पंद्रह साल बाद, मणिपुर मैतेई और कुकी जो के बीच एक नए संघर्ष से जूझ रहा है, जबकि मुइवा की उम्र और कद का मतलब है कि उन्हें जातीय विभाजन से ऊपर, एक अलग स्थान पर रखा जा सकता है।
दक्षिण एशिया के सबसे पुराने विद्रोह का चेहरा
91 साल की उम्र में मुइवा दक्षिण एशिया के सबसे पुराने विद्रोहों में से एक का चेहरा और इन इलाकों में एक नायक बने हुए हैं। वह 1964 में नागा स्वायत्तता के लिए लड़ने के लिए नगा राष्ट्रीय परिषद में शामिल हुए। 1980 में एस एस खापलांग और इसाक चिशी स्वू (जिन दोनों का अब निधन हो चुका है) के साथ मिलकर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN) का गठन किया। तभी से केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता की कमान संभाल रहे हैं। यह ग्रुप ग्रेटर नगालैंड की डिमांड करता रहा है। थुइंगलेंग मुइवा का जन्म 3 मार्च, 1934) को हुआ था। वह एक नगा राष्ट्रवादी राजनीतिज्ञ और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (आईएम) के महासचिव हैं।
जीवन के आखिरी पड़ाव पर लौटे गांव
अब अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर, मुइवा एक सप्ताह की यात्रा पर अपने गांव लौट आए हैं, जहां सरकार ने उन्हें लंबे समय तक जाने से रोक रखा था। मुइवा अपनी पत्नी पकाहाओ के साथ उखरुल जिला मुख्यालय पहुंचे, जहां अवखरार के लिए एक स्वागत समारोह आयोजित किया गया था। अवखरार स्थानीय तंगखुल बोली में परिवार के मुखिया के लिए कहा जाता है। मुइवा के उत्तराधिकारी के रूप में नामित 'उप-प्रधानमंत्री अतो किलोंसर' या 'जनवादी गणराज्य नगालिम (GPRN) सरकार के उप-प्रधानमंत्री' वीएस अतेम ने उनकी ओर से भाषण दिया।
A historic moment unfolded in Ukhrul on Wednesday as Thuingaleng Muivah, 91, Ato Kilonser #NSCN/GPRN, returned to his hometown after over five decades.Thousands gathered #TangkhulLong Ground to welcome #Naga leader, who has long led the Naga movement from jungles and abroad. pic.twitter.com/wqyZinxo7A
— DD News Meghalaya (@ddnewsshillong) October 22, 2025
इतने साल कहां छिपकर रहे मुइवा
भूमिगत रहने के दौरान मुइवा चीन, म्यांमार, थाईलैंड और नीदरलैंड्स में रहे हैं। मुइवा का यह आंदोलन नगा विद्रोहियों और भारत सरकार के बीच सशस्त्र संघर्ष के रूप में जाना जाता है। यह आंदोलन कई चरणों से गुजरा है, जिसमें 1997 में भारत सरकार और NSCN के बीच हस्ताक्षरित युद्धविराम समझौता भी शामिल है।
गांव आते ही मुइवा ने क्या ऐलान किया
मुइवा ने आखिरी बार 1964 में सोमदल का दौरा किया था। उन्होंने कहा-म्यांमार, चीन और भारत के ट्राई जंक्शन पर स्थित नगालिम सर्वशक्तिमान ईश्वर द्वारा दिया गया क्षेत्र है और नागा लोग पिछले 79 वर्षों से नागालिम के संप्रभु अस्तित्व की रक्षा कर रहे हैं।
2015 में मोदी सरकार ने किया था नगा समझौता
दशकों तक भूमिगत रहने और केंद्र सरकार के साथ वर्षों से अधर में लटकी बातचीत के बाद मुइवा के संबोधन में उनकी झुंझलाहट भी झलक रही थी। उन्होंने दोहराया कि अंतिम नगा राजनीतिक समझौता नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा 2015 में नगा समूहों के साथ बड़े धूमधाम से किए गए फ्रेमवर्क समझौते के मुताबिक ही होना चाहिए और एक अलग नगा ध्वज और संविधान को मान्यता देनी होगी।
मैतेई लोगों के साथ तनावपूर्ण रिश्ता
मुइवा के स्वागत समारोह में कम से कम तीन प्रमुख मैतेई दबाव समूहों कोकोमी, अमुको और एफओसीएस के प्रतिनिधि मौजूद थे। मैतेई लोगों का नगा आंदोलन के साथ लंबे समय से तनावपूर्ण रिश्ता रहा है, क्योंकि एक ‘एकीकृत नगा मातृभूमि’ या नगालिम के विचार में मणिपुर के वे भू-भाग शामिल हैं जहां नागा लोग रहते हैं, जो उनके बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा जातीय समूह हैं।
कांग्रेस सरकार ने मुइवा को जाने से रोका था
दरअसल, 2010 में मुइवा द्वारा सोमदल जाने की आखिरी कोशिश को तत्कालीन मणिपुर की कांग्रेस की अगुवाई वाली ओकराम इबोबी सिंह की सरकार ने नाकाम कर दिया था, जिसने उन्हें राज्य में प्रवेश देने से इनकार कर दिया था। पंद्रह साल बाद, मणिपुर मैतेई और कुकी जो के बीच एक नए संघर्ष से जूझ रहा है, जबकि मुइवा की उम्र और कद का मतलब है कि उन्हें जातीय विभाजन से ऊपर, एक अलग स्थान पर रखा जा सकता है।
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