नई दिल्ली: अगर आप या आपके परिवार को कोई सदस्य पायलट बनना चाहता है तो यह खबर आपके काम की है। नागरिक उड्डयन नियामक (DGCA) ने पायलट ट्रेनिंग स्कूलों की एक नई रैंकिंग जारी की है। इस रैंकिंग से पता चला है कि देश के 63% पायलट ट्रेनिंग स्कूलों को अपने प्रदर्शन में सुधार करने की बहुत जरूरत है।
इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार डीजीसीए ने कुल 35 संस्थानों की जांच की और उन्हें रैंक दी। इनमें से 22 स्कूलों को 'C' रैंकिंग मिली है। 'C' रैंकिंग का मतलब है कि इन स्कूलों ने तय किए गए मापदंडों में 50% से भी कम अंक हासिल किए हैं। उन्हें अपना प्रदर्शन तुरंत सुधारना होगा। वहीं, 13 स्कूलों को 'B' रैंकिंग मिली है। यह हैरान करने वाली बात है कि किसी भी स्कूल को सबसे अच्छी 'A+' या 'A' रेटिंग नहीं मिल पाई है। यह दिखाता है कि देश में पायलट ट्रेनिंग की गुणवत्ता में अभी काफी सुधार की गुंजाइश है।
सरकारी संस्थान को 25वां नंबरइस रैंकिंग में प्राइवेट कंपनी Chimes Aviation Academy को सबसे ऊपर रखा गया है। उसने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है। वहीं, सरकारी संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकेडमी (IGRUA) को 25वां स्थान मिला है। यह सरकारी संस्थान के लिए एक चिंताजनक बात है, क्योंकि इससे उसकी गुणवत्ता पर सवाल उठ सकते हैं।
किन आधार पर हुई रैंकिंग?डीजीसीए ने स्कूलों की रैंकिंग के लिए कुछ खास बातों को देखा है। इनमें सुरक्षा के नियम, स्कूलों का कामकाज, नियमों का पालन, छात्रों को मिलने वाली मदद और उनका कुल प्रदर्शन शामिल हैं। डीजीसीए ने यह भी बताया कि ऐसी रैंकिंग हर छह महीने में जारी की जाएंगी। आमतौर पर ये रैंकिंग अक्टूबर और अप्रैल के महीनों में आएंगी।
इन रैंकिंग का दोहरा मकसद है। पहला, पायलट बनने की चाह रखने वाले छात्रों के हितों की रक्षा करना। दूसरा, यह सुनिश्चित करना कि देश को हमेशा अच्छे और प्रशिक्षित पायलट मिलते रहें। यह कदम देश की उड्डयन सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
रेटिंग देने का क्या है मकसद?यह पहली बार है जब डीजीसीए ने फ्लाइंग स्कूलों को इस तरह से ग्रेड दिए हैं। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि इन संस्थानों में पारदर्शिता बढ़े। खासकर उन छात्रों के लिए जो पायलट बनने का सपना देखते हैं।
हाल के सालों में इन स्कूलों और उनके ट्रेनिंग विमानों से जुड़े कई हादसे और गंभीर घटनाएं हुई हैं। इन हादसों को देखते हुए डीजीसीए ने यह बड़ा कदम उठाया है। डीजीसीए ने यह कार्रवाई इसलिए की क्योंकि पिछले कुछ सालों में फ्लाइंग स्कूलों में दुर्घटनाएं और गंभीर घटनाएं लगातार बढ़ रही थीं। इन घटनाओं की मुख्य वजह अक्सर विमानों का सही रखरखाव न होना या सुरक्षा नियमों का ठीक से पालन न करना बताया गया था। यह स्थिति देश की हवाई सुरक्षा के लिए ठीक नहीं थी।
डीजीसीए पर भी उठे सवालकई फ्लाइंग स्कूलों के अधिकारियों ने इस रैंकिंग पर अपनी राय दी है। उन्होंने बताया कि डीजीसीए का काम तो यह देखना है कि स्कूल नियमों का पालन करें और सुरक्षित रहें। इसलिए उन्हें स्कूलों की रैंकिंग नहीं करनी चाहिए। एक अधिकारी ने साफ तौर पर कहा कि डीजीसीए स्कूलों को प्रमाणित करता है। अगर वे नियमों का पालन नहीं करते, तो डीजीसीए उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है या उन्हें बंद भी कर सकता है।
एक अन्य अधिकारी ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि एक ऐसी व्यवस्था, जहां डीजीसीए खुद स्कूलों को ग्रेड दे रहा है, इससे डीजीसीए के अधिकारियों के मन में स्कूलों के साथ व्यवहार करते समय निश्चित रूप से पक्षपात पैदा होगा। इससे उनके साथ असमान व्यवहार होगा। अधिकारियों का मानना है कि यह स्थिति निष्पक्षता के लिए ठीक नहीं है।
इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार डीजीसीए ने कुल 35 संस्थानों की जांच की और उन्हें रैंक दी। इनमें से 22 स्कूलों को 'C' रैंकिंग मिली है। 'C' रैंकिंग का मतलब है कि इन स्कूलों ने तय किए गए मापदंडों में 50% से भी कम अंक हासिल किए हैं। उन्हें अपना प्रदर्शन तुरंत सुधारना होगा। वहीं, 13 स्कूलों को 'B' रैंकिंग मिली है। यह हैरान करने वाली बात है कि किसी भी स्कूल को सबसे अच्छी 'A+' या 'A' रेटिंग नहीं मिल पाई है। यह दिखाता है कि देश में पायलट ट्रेनिंग की गुणवत्ता में अभी काफी सुधार की गुंजाइश है।
सरकारी संस्थान को 25वां नंबरइस रैंकिंग में प्राइवेट कंपनी Chimes Aviation Academy को सबसे ऊपर रखा गया है। उसने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है। वहीं, सरकारी संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकेडमी (IGRUA) को 25वां स्थान मिला है। यह सरकारी संस्थान के लिए एक चिंताजनक बात है, क्योंकि इससे उसकी गुणवत्ता पर सवाल उठ सकते हैं।
किन आधार पर हुई रैंकिंग?डीजीसीए ने स्कूलों की रैंकिंग के लिए कुछ खास बातों को देखा है। इनमें सुरक्षा के नियम, स्कूलों का कामकाज, नियमों का पालन, छात्रों को मिलने वाली मदद और उनका कुल प्रदर्शन शामिल हैं। डीजीसीए ने यह भी बताया कि ऐसी रैंकिंग हर छह महीने में जारी की जाएंगी। आमतौर पर ये रैंकिंग अक्टूबर और अप्रैल के महीनों में आएंगी।
इन रैंकिंग का दोहरा मकसद है। पहला, पायलट बनने की चाह रखने वाले छात्रों के हितों की रक्षा करना। दूसरा, यह सुनिश्चित करना कि देश को हमेशा अच्छे और प्रशिक्षित पायलट मिलते रहें। यह कदम देश की उड्डयन सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
रेटिंग देने का क्या है मकसद?यह पहली बार है जब डीजीसीए ने फ्लाइंग स्कूलों को इस तरह से ग्रेड दिए हैं। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि इन संस्थानों में पारदर्शिता बढ़े। खासकर उन छात्रों के लिए जो पायलट बनने का सपना देखते हैं।
हाल के सालों में इन स्कूलों और उनके ट्रेनिंग विमानों से जुड़े कई हादसे और गंभीर घटनाएं हुई हैं। इन हादसों को देखते हुए डीजीसीए ने यह बड़ा कदम उठाया है। डीजीसीए ने यह कार्रवाई इसलिए की क्योंकि पिछले कुछ सालों में फ्लाइंग स्कूलों में दुर्घटनाएं और गंभीर घटनाएं लगातार बढ़ रही थीं। इन घटनाओं की मुख्य वजह अक्सर विमानों का सही रखरखाव न होना या सुरक्षा नियमों का ठीक से पालन न करना बताया गया था। यह स्थिति देश की हवाई सुरक्षा के लिए ठीक नहीं थी।
डीजीसीए पर भी उठे सवालकई फ्लाइंग स्कूलों के अधिकारियों ने इस रैंकिंग पर अपनी राय दी है। उन्होंने बताया कि डीजीसीए का काम तो यह देखना है कि स्कूल नियमों का पालन करें और सुरक्षित रहें। इसलिए उन्हें स्कूलों की रैंकिंग नहीं करनी चाहिए। एक अधिकारी ने साफ तौर पर कहा कि डीजीसीए स्कूलों को प्रमाणित करता है। अगर वे नियमों का पालन नहीं करते, तो डीजीसीए उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है या उन्हें बंद भी कर सकता है।
एक अन्य अधिकारी ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि एक ऐसी व्यवस्था, जहां डीजीसीए खुद स्कूलों को ग्रेड दे रहा है, इससे डीजीसीए के अधिकारियों के मन में स्कूलों के साथ व्यवहार करते समय निश्चित रूप से पक्षपात पैदा होगा। इससे उनके साथ असमान व्यवहार होगा। अधिकारियों का मानना है कि यह स्थिति निष्पक्षता के लिए ठीक नहीं है।
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