मिर्जापुर, 18 अक्टूबर . जब पूरे देश में दीपावली की जगमगाहट फैली होती है, लोग नए कपड़े पहनकर पटाखे फोड़ते हैं, तब उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के कुछ गांवों में सन्नाटा पसरा होता है. इन गांवों में न रंगोली बनती है, न दिये जलते हैं और न ही कोई उत्सव होता है. यहां के लोग इस दिन दीवाली नहीं, बल्कि शोक मनाते हैं.
जी हां, राजगढ़ क्षेत्र के भांवा, अटारी और आसपास के कई गांवों में रहने वाले चौहान वंश के क्षत्रिय परिवार दीपावली के दिन कोई जश्न नहीं मनाते. इन लोगों का मानना है कि इसी दिन मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की हत्या की थी. पृथ्वीराज चौहान को ये लोग अपने पूर्वज और महान योद्धा मानते हैं. इसलिए इस दिन को खुशियों के बजाय गहरे शोक और सम्मान के रूप में मनाया जाता है.
इन गांवों में दीपावली की रात घर अंधेरे में रहते हैं; कोई बिजली की लाइट या तेल का दीया नहीं जलाता. पूजा-पाठ जरूर होती है. एक दीया जलाकर लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है, लेकिन फिर उस दीये को बुझा दिया जाता है और परिवार के लोग चुपचाप दिन गुजारते हैं.
इन गांवों में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. ये लोग अपने वीर राजा की शहादत वाले दिन कोई उत्सव नहीं मनाते.
हालांकि, दीपावली की पूरी खुशी ये लोग त्यौहार के 4-5 दिन बाद एकादशी के दिन मनाते हैं. उस दिन इनके घरों में दीये जलते हैं, मिठाइयां बनती हैं और सभी मिलकर खुशियां बांटते हैं. इसे ये लोग अपनी दीपावली कहते हैं.
इस अलग-सी परंपरा ने इन गांवों को बाकियों से बिल्कुल अलग बना दिया है. जहां एक ओर बाकी देश रोशनी और रंगों में डूबा होता है, वहीं यहां के लोग शौर्य, बलिदान और इतिहास को याद करते हैं. यह परंपरा ना सिर्फ श्रद्धांजलि, बल्कि भावी पीढ़ी को अपने इतिहास से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम भी है.
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पीआईएस/पीएसके
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