दिल्ली, 27 जून . आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना में शामिल ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द को बरकरार रखने पर फिर से चर्चा करने की बात कही है. इस पर शिवसेना (यूबीटी) के नेता अरविंद सावंत ने कहा है कि इन लोगों के पास गड़े मुर्दे उखाड़ने के अलावा कोई काम नहीं है.
समाचार एजेंसी से बात करते हुए अरविंद सावंत ने कहा, “इनलोगों को अपनी असफलता को छुपाने की आदत है, इसी वजह से हमेशा ये ऐसे बयान देते रहते हैं. हमेशा गड़े मुर्दे उखाड़ते रहते हैं. अगर पीछे जाना ही है तो सौ साल पीछे जाकर देखिए कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में इनका क्या योगदान है. आप अंग्रेजों के साथ थे या स्वतंत्रता आंदोलन में थे.”
आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने हाल ही में बयान दिया है कि संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के दौरान ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए. दोनों शब्द संसद में बिना चर्चा या सहमति के जोड़े गए थे. इन दोनों शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में बरकरार रखना है या नहीं इस पर देश में खुली बहस होनी चाहिए.
दत्तात्रेय होसबोले के इस बयान का कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी पार्टियों ने विरोध किया है.
आपातकाल के दौरान संविधान में बड़े बदलाव किए गए थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान में 42वां संशोधन करवाया था और प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’, ‘एकता और अखंडता’ शब्द को जोड़ा था. यह बदलाव संसद में बिना किसी चर्चा के ऐसे समय में हुआ जब विपक्ष के अधिकांश बड़े नेता जेल में थे.
संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान में संशोधन को लेकर स्पष्ट दृष्टिकोण रखा था. उन्होंने संविधान को पत्थर की लकीर नहीं माना था और जरूरत के मुताबिक बदलाव की बात भी कही थी. लेकिन, उन्होंने यह भी कहा था कि संशोधन किसी भी सरकार के फायदे के लिए नहीं होना चाहिए.
संविधान में पहला संशोधन 18 जून 1951 को तत्कालीन पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में हुआ था. अबतक संविधान में 106 बार संशोधन किया गया है. कांग्रेस नीत सरकारों ने 55 साल में 77 संशोधन किए हैं जबकि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकारों ने 16 साल में 22 संशोधन किए हैं.
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पीएके/जीकेटी