Mumbai , 3 अगस्त . जब भी बॉलीवुड में इमोशनल और मेलोडियस गानों की बात होती है, ‘धड़क’ का संगीत अपने आप चर्चा में आ जाता है. अब ‘धड़क 2’ के टाइटल ट्रैक ‘बस एक धड़क’ को लेकर भी कुछ ऐसी ही सुगबुगाहट देखी जा रही है. इस गाने ने न सिर्फ दर्शकों के दिलों को छुआ है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी लोकप्रिय हो रहा है.
से खास बातचीत में इस गाने के संगीतकार जावेद और मोहसिन के अलावा गीतकार विराग मिश्रा ने इसके निर्माण की प्रक्रिया और अपने अनुभव साझा किए.
जावेद और मोहसिन ने बताया कि जब उन्हें ‘धड़क 2’ का टाइटल ट्रैक बनाने का प्रस्ताव मिला, तो उन पर कोई दबाव नहीं था. उन्हें पूरी रचनात्मक आजादी दी गई थी.
जावेद ने कहा, ”हमारे म्यूजिक सुपरवाइजर अजीम दयानी और धर्मा प्रोडक्शन्स की टीम ने हमसे कहा, ‘हमें बस एक खूबसूरत, इमोशनल और उम्मीद से भरा गाना चाहिए.’ कोई दबाव नहीं था, न कोई रेफरेंस. हमने बस इस गाने को दिल से बनाया.”
मोहसिन ने कहा कि इस गाने को सिर्फ एक फिल्मी गाने की तरह नहीं, बल्कि एक म्यूजिकल एक्सपीरियंस की तरह बनाया गया है, ताकि यह दर्शकों की जिंदगी का हिस्सा बन सके.
गाने के बोल लिखने वाले विराग मिश्रा के लिए यह अनुभव थोड़ा अलग रहा. से बात करते हुए उन्होंने कहा, ”गाने की धुन में इतनी गहराई थी कि उसने मुझे अपनी सामान्य शैली से बाहर आकर लिखने के लिए प्रेरित किया. मैंने उर्दू शायरी की ओर रुख किया और कुछ इस तरह की पंक्तियां लिखीं, ”चांद का गुरूर मिट गया, तुझ पे मैं वो नज्म लिख गया.”
बता दें कि ‘धड़क’ का संगीत अजय-अतुल ने तैयार किया था और उस गाने को भी बड़ी सफलता मिली थी. इस बारे में बात करते हुए मोहसिन ने कहा, ”हमने कभी तुलना करने की कोशिश नहीं की. हमारा लक्ष्य था, एक ऐसा गाना बनाना, जो समय के साथ और भी खास होता जाए, चाहे वह जनरेशन जेड हो या आने वाली अल्फा पीढ़ी.”
क्या मेलोडियस गीतों की वापसी हो रही है? इस सवाल पर जवाब देते हुए जावेद ने कहा, ”मेलोडी कभी खत्म नहीं होती. वह एक फेज से गुजरती है, लेकिन लौटती जरूर है.”
रील्स के दौर में वायरल प्रेशर के सवाल पर मोहसिन ने कहा, ”अगर आप केवल रील्स के लिए गाने बनाते हैं तो वह सिर्फ 30 सेकंड तक सीमित रह जाता है. हमारा मानना है कि पूरा गाना खूबसूरत होना चाहिए ताकि लोग खुद अपने पसंदीदा हिस्से को चुनें.”
रिमिक्स पर आपके क्या विचार हैं? इस पर जावेद ने कहा, ”हर रिमिक्स खराब नहीं होता. अगर उसे सम्मान और क्रिएटिविटी के साथ बनाया जाए तो वह नए श्रोताओं तक पुराने क्लासिक्स को पहुंचा सकता है. जैसे हमने ‘जिहाल-ए-मिस्कीं’ को रीक्रिएट किया, जिससे युवाओं को लता-गुलजार युग से जोड़ने का मौका मिला.”
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पीके/एबीएम
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