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'डर के आधार पर फिल्म नहीं बनती', 'हक' के निर्देशक और लेखक सुपर्ण वर्मा का बयान

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Mumbai , 5 नवंबर . Bollywood निर्देशक और लेखक सुपर्ण वर्मा अपनी नई फिल्म ‘हक’ को लेकर चर्चा में हैं. फिल्म को लेकर दर्शक काफी उत्साहित हैं. यह फिल्म महिला अधिकारों के एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर बनी है और भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों के इतिहास में एक बड़े बदलाव को सामने लाती है. इस बीच सुपर्ण वर्मा ने बताया कि यह फिल्म क्यों बनाई और इसके पीछे उनकी प्रेरणा क्या रही.

से बात करते हुए सुपर्ण वर्मा ने बताया कि ‘हक’ एक ऐसा विषय उठाती है जो न सिर्फ India में बल्कि पूरी दुनिया में महिलाओं के अधिकारों से जुड़ा है.

उन्होंने कहा, ”India दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और यहां जो कुछ भी होता है उसका असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महसूस किया जाता है. भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई को दिखाना न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि वैश्विक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.”

उन्होंने बताया कि फिल्म का प्रेरणास्रोत शाह बानो केस है, जो India में महिलाओं के अधिकारों के लिए मील का पत्थर माना जाता है.

बता दें कि 62 साल की शाह बानो ने अपने पति से तलाक के बाद गुजारा भत्ता की मांग की थी. Supreme court ने उनका पक्ष लिया और कहा कि सेक्शन 125 के तहत गुजारा भत्ता का अधिकार सभी नागरिकों को है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो.

हालांकि, यह फैसला कुछ मुस्लिम समूहों को मंजूर नहीं हुआ. उनका तर्क था कि Supreme court का फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप कर रहा है. इसके बाद तत्कालीन Prime Minister राजीव गांधी की कांग्रेस Government ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित कर यह फैसला प्रभावित किया और मुस्लिम पर्सनल लॉ की स्वतंत्रता बहाल कर दी.

सुपर्ण वर्मा ने आगे कहा, “इस तरह के संवेदनशील और बड़े मुद्दों पर काम करना चुनौतीपूर्ण जरूर होता है, लेकिन डर के आधार पर फिल्म नहीं बनती. मेरे लिए सबसे जरूरी है कि मैं उस विषय को पूरी गहराई से समझूं ताकि दर्शकों तक सही संदेश पहुंचा सकूं.”

निर्देशक ने कहा, ”महिला अधिकार केवल India तक सीमित नहीं हैं. दुनिया भर की महिलाएं भेदभाव और कई तरह की कठिनाइयों का सामना करती हैं. इसलिए फिल्म ‘हक’ का संदेश काफी व्यापक है. यह फिल्म महिलाओं की सफलता और उनके संघर्ष की कहानी है. इसमें पुरुष पात्र भी हैं, लेकिन यह फिल्म मुख्य रूप से महिला सशक्तीकरण और समानता के इर्द-गिर्द घूमती है.”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि समाज में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत करना बहुत जरूरी है. अगर हम खुलकर इन मुद्दों पर चर्चा करें, तो न सिर्फ हमारी सोच और समझ बढ़ती है बल्कि हम एक बेहतर समाज और बेहतर दर्शक भी बनते हैं.

पीके/एबीएम

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