आप सभी जानते हैं कि भारतीय न्याय प्रणाली कैसे कार्य करती है। अदालत में किसी भी मामले की सुनवाई तब तक नहीं होती जब तक सभी गवाह और सबूत पूरी तरह से प्रस्तुत न किए जाएं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारी न्याय व्यवस्था इतनी धीमी है कि कई बार मामलों में वर्षों तक सुनवाई नहीं होती, और न्याय की प्रतीक्षा में मुकदमा करने वाले लोग इस दुनिया को छोड़ देते हैं। ऐसा ही एक मामला गंगा देवी के साथ हुआ, जिन्होंने 41 वर्षों तक न्याय की तलाश में अदालतों के चक्कर लगाए। हाल ही में, शुक्रवार को, अदालत ने इस मामले में गड़बड़ी का पता लगाया और गंगा देवी को न्याय दिलाया।
1975 में, 37 वर्षीय गंगा देवी को जिला जज द्वारा एक संपत्ति अटैचमेंट के खिलाफ नोटिस जारी किया गया था। उन्होंने इस नोटिस के खिलाफ सिविल जज के समक्ष याचिका दायर की। 1977 में, उनके पक्ष में सुनवाई हुई, लेकिन उनकी परेशानियाँ यहीं खत्म नहीं हुईं।
जब गंगा ने अदालत में केस दर्ज कराया, तो उन्हें फीस जमा करने के लिए कहा गया। उन्होंने 312 रुपए की फीस जमा कर दी, लेकिन उन्हें फीस की रसीद नहीं मिली क्योंकि वह कहीं खो गई थी। हालांकि, गंगा ने फीस का भुगतान किया था, लेकिन अदालत में रसीद का न होना उनके लिए समस्या बन गया।
1975 में 312 रुपए एक बड़ी राशि मानी जाती थी। गंगा देवी ने फीस का भुगतान किया, लेकिन रसीद खो जाने के कारण उन्हें दोबारा फीस भरने के लिए कहा गया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। इस मामले की सुनवाई 31 अगस्त 2018 को पूरी हुई, और गंगा देवी ने जीत हासिल की। अदालत ने पाया कि प्रशासन की गलती के कारण रसीद नहीं मिली। लेकिन अब गंगा देवी को कानून पर विश्वास करना मुश्किल हो गया है। उनके वकील ने बताया कि इस मामले की फाइल 11 जजों के पास गई, लेकिन कोई भी इसे सही तरीके से नहीं देख सका।

जब मामला मिर्जापुर के सिविल जज के पास पहुंचा, तो उन्होंने जांच की और पाया कि गंगा देवी ने फीस जमा कर दी थी, लेकिन प्रशासनिक गड़बड़ी के कारण रसीद खो गई थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान गंगा देवी का कोई रिश्तेदार अदालत में मौजूद नहीं था। उनकी फीस की रसीद उनके परिवार को स्पीड पोस्ट से भेजी गई। 41 वर्षों में यह फाइल 11 जजों के पास गई, लेकिन किसी ने भी गलती नहीं पकड़ी। अंततः, गंगा देवी को राहत मिली।
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