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फेड ने ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया, 2025 में मुद्रास्फीति का जोखिम बढ़ा, भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर

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मई 2025 की फेडरल ओपन मार्केट कमिटी ( FOMC ) की बैठक में फेडरल रिजर्व ने अपनी प्रमुख ब्याज दर को अपरिवर्तित रखा। फेडरल फंड्स रेट को 4.25%-4.5% के दायरे में स्थिर रखा गया। जो दिसंबर से ही इसी स्तर पर है। ऐसा कहा जा रहा है कि फेड अभी ट्रम्प प्रशासन की व्यापार नीति के आकार लेने की प्रतीक्षा कर रहा है। लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को देख रहा है।फेड रिजर्व ने बैठक में स्थिर रखी ब्याज दरें फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने फेड की ब्याज दरों पर बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि यह निर्णय वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ प्लान और मुद्रास्फीति के बढ़ते जोखिमों के कारण लिया गया। मुद्रास्फीति अक्टूबर 2024 में 2.3% थी। जिसके अब 2.8% तक पहुंचने का अनुमान जताया जा रहा है। फेड ने मुद्रास्फीति को 2% तक लाने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए वे सतर्क रूख अपना रहे हैं। इसके अलावा फेड के निर्णय को वैश्विक व्यापार तनाव और भू राजनीतिक अनिश्चितताएं भी प्रभावित कर रहे हैं। बेरोजगारी और उच्च मुद्रास्फीति के जोखिमफेडरल रिजर्व ब्याज दरों पर हुई बैठक में चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने अस्थिरता का उल्लेख किया तथा बताया गया कि किस प्रकार यह नीतिगत निर्णयों में कारक बन रही है। उन्होंने यह भी कहा कि उच्च बेरोजगारी और उच्च मुद्रास्फीति के जोखिम बढ़ गए हैं। फेड के निर्णय का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभावफेड रिजर्व के ब्याज दरों को स्थिर रखने के फैसले का वैश्विक स्तर पर कई तरह से प्रभाव पड़ेगा। 1. स्थिर ब्याज दरों से अमेरिकी डॉलर मजबूत हो सकता है, जिससे भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ेगा। यह भारत जैसे आयातक देशों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।2. सोने की कीमतों पर भी दबाव देखने को मिल सकता है। 3. ब्याज दरें स्थिर रखने के बाद अमेरिका में लोन और क्रेडिट कार्ड की ब्याज दर स्थिर रहेंगी। जिसका उपभोक्ताओं के खर्चे पर सीमित असर होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था और निवेशकों पर प्रभावफेड के इस निर्णय का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अक्सर फेड की नीतियों को ध्यान में रखता है। 1. फेड की स्थिति दरों के कारण आरबीआई भी एमपीसी बैठक में रेपो रेट को 6.5 पर स्थिर रख सकता है। हालांकि नए गवर्नर से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद की जा रही है। 2. डॉलर की मजबूती फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट को प्रभावित करती है। जिसके कारण भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ सकता है। सही मूल्य वाले शेयरों की पहचान करके जोखिम से निवेशक बच सकते हैं। 3. सोने की कीमतों में स्थिरता या मामूली गिरावट देखी जा सकती है।
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