भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने केंद्रीय रिजर्व बैंक (RBI) से डिमांड की है कि बैंकों को कंपनियों के एक्विजिशन के लिए फाइनेंसिंग की अनुमति दी जाए। एसबीआई की मांग है कि कंपनियों के विलय और अधिग्रहण के लिए बैंकों के द्वारा लोन देने पर लगे प्रतिबंध को हटाया जाए। क्योंकि कंपनियां अभी या तो बॉन्ड इश्यू करके या फिर नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों के माध्यम से फंड एकत्रित करती हैं।
हाल ही में एक इंडस्ट्री इवेंट में भारतीय स्टेट बैंक के डायरेक्टर चल्ला श्रीनिवासुलू शेट्टी ने आरबीएसई रिक्वेस्ट की कि वे विलय और अधिग्रहण के लिए लगने वाली लागत के लिए फाइनेंसिंग यानी लोन देने पर लगे प्रतिबंध को हटाने पर विचार करें। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इसकी शुरुआत बड़ी और पब्लिक लिस्टेड कंपनियों से की जानी चाहिए। ऐसी कंपनियां जो स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड है उनके लिए इस नियम को लागू किया जाए, उसके बाद अन्य कंपनियों के लिए प्रतिबंध हटाया जाए। इससे आरबीआई का भी भरोसा बना रहेगा।
कंपनियों को होती है परेशानीआरबीआई के मौजूदा नियम के अनुसार कंपनियों के अधिग्रहण और विलय की लागत के लिए बैंकों के द्वारा फंड नहीं दिया जा सकता। इसीलिए कंपनियों को एनबीएफसी के पास जाना पड़ता है या वे अपने बॉन्ड इश्यू करके फंड एकत्रित करती है। यदि आरबीआई के द्वारा यह डिमांड मान ली जाती है तो कंपनियों को आसानी से लोन का विकल्प मिल जाएगा। इससे बैंकों के साथ-साथ कॉरपोरेट सेक्टर को भी लाभ मिलेगा।
हालांकि एसबीआई की इस डिमांड पर अभी तक आरबीआई की तरफ से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है लेकिन यह कहा जा सकता है कि भारतीय बैंकिंग सेक्टर के लिए आरबीआई की परमिशन काफी मायने रखती है। इसे कॉरपोरेट वर्ल्ड और बैंकिंग सेक्टर के बीच में एक नया बॉन्ड भी बन सकता है। क्योंकि इससे बैंकों के लिए नए विकल्प खुलेंगे और कंपनियों को भी फाइनेंसिंग के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।
हाल ही में एक इंडस्ट्री इवेंट में भारतीय स्टेट बैंक के डायरेक्टर चल्ला श्रीनिवासुलू शेट्टी ने आरबीएसई रिक्वेस्ट की कि वे विलय और अधिग्रहण के लिए लगने वाली लागत के लिए फाइनेंसिंग यानी लोन देने पर लगे प्रतिबंध को हटाने पर विचार करें। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इसकी शुरुआत बड़ी और पब्लिक लिस्टेड कंपनियों से की जानी चाहिए। ऐसी कंपनियां जो स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड है उनके लिए इस नियम को लागू किया जाए, उसके बाद अन्य कंपनियों के लिए प्रतिबंध हटाया जाए। इससे आरबीआई का भी भरोसा बना रहेगा।
कंपनियों को होती है परेशानीआरबीआई के मौजूदा नियम के अनुसार कंपनियों के अधिग्रहण और विलय की लागत के लिए बैंकों के द्वारा फंड नहीं दिया जा सकता। इसीलिए कंपनियों को एनबीएफसी के पास जाना पड़ता है या वे अपने बॉन्ड इश्यू करके फंड एकत्रित करती है। यदि आरबीआई के द्वारा यह डिमांड मान ली जाती है तो कंपनियों को आसानी से लोन का विकल्प मिल जाएगा। इससे बैंकों के साथ-साथ कॉरपोरेट सेक्टर को भी लाभ मिलेगा।
हालांकि एसबीआई की इस डिमांड पर अभी तक आरबीआई की तरफ से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है लेकिन यह कहा जा सकता है कि भारतीय बैंकिंग सेक्टर के लिए आरबीआई की परमिशन काफी मायने रखती है। इसे कॉरपोरेट वर्ल्ड और बैंकिंग सेक्टर के बीच में एक नया बॉन्ड भी बन सकता है। क्योंकि इससे बैंकों के लिए नए विकल्प खुलेंगे और कंपनियों को भी फाइनेंसिंग के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।
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