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शंकर शर्मा बोले- लेन्सकार्ट IPO के खिलाफ चल रहा संगठित अभियान, निवेशकों के लिए बताया शानदार मौका

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पॉपुलर निवेशक शंकर शर्मा ने लेन्सकार्ट के आने वाले IPO को लेकर चर्चा में अपनी राय दी है। उनका कहना है कि eyewear कंपनी का वैल्यूएशन लोगों की आलोचना के केंद्र में अनजाने में आ गया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा - 'मैंने कभी चश्मा नहीं खरीदा, क्योंकि मैं चश्मा नहीं पहनता - लेकिन मेरे नजरिए से एक बात तो साफ है: लेन्सकार्ट के खिलाफ एक संगठित अभियान चल रहा है। लगभग 10 गुना सेल्स पर यह एक शानदार मौका है। तुलना के लिए देखें, Paytm, Nykaa, Zomato, PB, CarTrade जैसी कंपनियों के IPO में 25-50 गुना उनकी बिक्री के हिसाब से कीमत तय हुई थी और वे भी नुकसान में थीं।'



लेन्सकार्ट का IPO और शंकर शर्मा की राय

लेन्सकार्ट अपने IPO के लिए लगभग 70,000 करोड़ रुपए (लगभग 7.9 बिलियन डॉलर) के वैल्यूएशन का लक्ष्य रख रही है। कंपनी ने अपने IPO का इश्यू प्राइस ₹382 से ₹402 प्रति शेयर तय किया है। शंकर शर्मा ने इस समय अपनी राय दी है जब IPO को लेकर काफी चर्चा और बहस हो रही है। लोग इसके वैल्यूएशन को लेकर अलग-अलग बातें कर रहे हैं। IPO के बाद की बातचीत में शर्मा ने कहा कि लेन्सकार्ट की तुलना उन बड़ी टेक कंपनियों से करना, जिनका IPO 25-50 गुना सालाना बिक्री पर हुआ था, सही नहीं है। उनका मानना है कि लेन्सकार्ट का लगभग 10 गुना सेल्स पर वैल्यूएशन निवेशकों के लिए काफी सुरक्षित और संतुलित मौका देता है। यानी इसमें निवेश करना ज्यादा जोखिम भरा नहीं लगता।



लेंसकार्ट IPO पर निवेशकों की प्रतिक्रिया

शर्मा ने कहा कि उनके पास लेंसकार्ट या किसी अन्य 'कार्ट' कंपनी के कोई शेयर नहीं हैं। उन्होंने यह बात इसलिए बताई ताकि सभी को पता चले कि उनका नजरिया पूरी तरह से स्वतंत्र है और इसमें किसी प्रकार हित नहीं जुड़ा हुआ है। दूसरी तरफ, कुछ लोग लेंसकार्ट के बारे में थोड़ा सतर्क हैं। एक X यूजर ने लिखा कि लेंसकार्ट का मार्केट जोमैटो, नायका या पेटीएम के मुकाबले छोटा है। इन कंपनियों के प्रोडक्ट रोजमर्रा में ज्यादा इस्तेमाल होते हैं, जबकि चश्मा लो-फ्रीक्वेंसी और खासतौर पर बदलने पर खरीदा जाता है। अब यह देखना बाकी है कि शर्मा का यह बचाव निवेशकों के फैसले पर कितना असर डालता है और IPO के समय निवेशक कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।



डिस्क्लेमर : जो राय और सुझाव एक्सपर्ट/ब्रोकरेज देते हैं, वे उनकी अपनी सोच हैं। ये इकोनॉमिक टाइम्स हिदीं की राय नहीं होती।

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