तालिबान ने 2021 में सत्ता में आने के बाद 12 साल से अधिक उम्र की लड़कियों की शिक्षा और नौकरी पर रोक ला दी.
इसके कारण कई युवतियों और महिलाओं को कालीन बुनने जैसे काम करने पड़ रहे हैं. कालीन बुनना उन कामों में शामिल जिन्हें तालिबान के शासन में महिलाओं को करने दिया जाता है.
22 साल की शकीला कभी छात्रा थीं और वह वकील बनने का सपना देखती थीं लेकिन अब वह अपने परिवार के कालीन व्यवसाय को चला रही हैं
शकीला ने मुझे बताया, "हम कालीन बुनने के अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं और हमारे पास कोई और काम नहीं है."
शकीला और उनकी दो बहनों के बनाए एक कालीन को पिछले साल कज़ाकिस्तान की एक प्रदर्शनी में रखा गया था.
13 वर्ग मीटर का यह बेहतरीन रेशमी कालीन 18 हजार डॉलर में बिका था.
लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के भीतर कालीन बहुत कम कीमत पर बिकते हैं. इसके कामगार कम वेतन वाली मज़दूरी में फंस जाते हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में हाथ से बुने हुए कालीन की औसतन कीमत 100-150 डॉलर प्रति वर्ग मीटर होती है.

ये बहनें काबुल के पश्चिमी बाहरी इलाके में स्थित गरीब दश्त-ए-बरची इलाके में अपने बुजुर्ग माता-पिता और तीन भाइयों के साथ एक साधारण दो बेडरूम वाले किराए के मकान में रहती हैं.
इनमें से एक कमरे को कालीन बनाने के कारखाने में बदल दिया गया है.
शकीला बताती हैं, "मैंने 10 साल की उम्र में बुनाई सीखी थी. मेरे पिता ने मुझे यह तब सिखाया जब वह एक कार दुर्घटना से उबर रहे थे."
कठिनाई के समय में जो कौशल आवश्यक था, वह अब परिवार की जीवन रेखा बन गया है.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार करीब 1.2 से 1.5 मिलियन अफ़ग़ानों की आजीविका कालीन बुनाई उद्योग पर निर्भर करती है. इसमें करीब 90 फीसदी महिलाएं कार्य कर रही हैं.
शकीला की बहन समीरा 18 साल की हैं और वह पत्रकार बनना चाहती थी. मरियम 13 साल की हैं. वह करियर का सपना देख पातीं उसके पहले ही उनका स्कूल जाना बंद हो गया.
तालिबान की वापसी से पहले ये तीनों बहनें सईद अल-शुहादा हाई स्कूल की छात्रा थीं लेकिन 2021 में स्कूल में हुए घातक विस्फोट के बाद उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया.
इस विस्फोट में 90 लोग मारे गए थे. इसमें से ज़्यादातर युवा लड़कियां थीं. इसमें 300 से अधिक लोग घायल हो गए थे.
इस घटना को देखते हुए किसी त्रासदी के डर से उनके पिता ने स्कूल से निकालने का निर्णय लिया.
इस विस्फोट के समय समीरा स्कूल में ही थी. इस सदमें से अभी तक वह उबर नहीं पाई हैं. वह अपनी बात कहने के लिए संघर्ष करती हैं और हकलाती हैं. फिर भी वह औपचारिक शिक्षा में वापस लौटने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं.
वह कहती हैं, "मैं वास्तव में अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी. अब सुरक्षा स्थिति में सुधार हुआ है और आत्मघाती बम विस्फोट कम हुए हैं लेकिन स्कूल अभी भी बंद हैं. ऐसे में हमें काम करना पड़ रहा है."
पिछली सरकार ने इस हमले के लिए तालिबान को दोषी ठहराया था. यह अलग बात है कि तालिबान ने इसमें अपनी संलिप्तता से इनकार किया था.
लड़कियों की शिक्षा का दुश्मन है तालिबानशकीला, समीरा और मरियम का मानना है कि वर्तमान शासक 'लड़कियों की शिक्षा के दुश्मन हैं.'
तालिबान ने बार-बार कहा है कि लड़कियों को स्कूल लौटने की अनुमति तभी दी जाएगी जब पाठ्यक्रम इस्लामी मूल्यों के अनुरूप तैयार कर लिया जाएगा. हालांकि अभी तक ऐसा करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं.
काबुल स्थित एल्मक बाफ्ट कारखानें में दमघोंटू हवा के बीच 300 महिलाएं और लड़कियां तंग जगह में कालीन बुन रही हैं. एक और कारखाने में 126 युवा लड़कियां 23 करघों पर काम कर रही हैं.
सालेह हस्सानी 19 वर्ष की हैं. 17 साल की आयु तक वह पूरी तरह से समर्पित छात्रा थी. उन्होंने दो वर्ष तक पढ़ाया और तीन महीने तक पत्रकारिता का भी अध्ययन किया.
वह हल्की मुस्कान के साथ कहती हैं, "अब हम लड़कियों को पढ़ने का मौका नहीं मिलता है. इन्हें हालात ने हमसे वह छीन लिया है और इसलिए हमें कारखाने का रुख करना पड़ा."
तालिबान के उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय ने बताया कि 2024 के पहले छह महीनों में 2.4 मिलियन किलोग्राम से अधिक कालीन पाकिस्तान, भारत, ऑस्ट्रिया और अमेरिका जैसे देशों को निर्यात किए गए. इनकी कीमत 8.7 मिलियन डॉलर है.

इस निर्यात में उछाल के पीछे एक चिंताजनक विसंगति छिपी हुई है.
कालीन बुनने वालों का कहना है कि वे प्रत्येक वर्ग मीटर कालीन पर वह करीब 27 डॉलर ही कमाते हैं. आमतौर पर एक कालीन बनाने में करीब एक महीने का समय लगता है.
10 से 12 घंटे तक चलने वाली लंबी और थकाऊ शिफ्ट के बावजूद वह एक दिन में एक डॉलर से भी कम कमा पाते हैं.
एल्मक बाफ्ट कंपनी के प्रमुख निसार अहमद हसीनी ने मुझे बताया कि वे अपने कर्मचारियों को 39 से 42 डॉलर प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भुगतान करते हैं.
उनका यह भी दावा है कि उन्हें हर दो सप्ताह में भुगतान किया जाता है. उन्हें दिन में 8 घंटे काम करना होता है.
उन्होंने कहा कि तालिबान सरकार के आने के बाद उनके संगठन ने स्कूलों के बंद होने से पीछे छूट गए लोगों की सहायता करना अपना मिशन बना लिया.
वह कहते हैं, "हमने कालीन बुनाई और ऊन कताई के लिए तीन कारखानें लगाए. यहां से करीब 50 से 60 फीसदी कालीन पाकिस्तान को निर्यात किया जाता है. इसके अलावा चीन, अमेरिका, तुर्की, फ्रांस और रूस भेजा जाता है."
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अनुसार अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई है. साल 2020 से अब तक यह 29 फीसदी तक सिकुड़ गई है और महिलाओं पर प्रतिबंधों के कारण एक बिलियन डॉलर तक का नुकसान हुआ है.
कालीन उद्योग में महिलाओं की भागेदारीसाल 2020 में केवल 19 फीसदी महिलाएं ही नौकरी करती थीं. यह संख्या पुरुषों की तुलना में चार गुना कम थी. तालिबान के आने के बाद यह संख्या और भी कम हो गई है.
इन चुनौतियों के बावजूद युवा महिलाओं का उत्साह बना हुआ है. कालीन के कारखानें में उड़ती धूल से बचकर मैंने खुद को ऊर्जा और रचनात्मकता से भरी लड़कियों के बीच पाया.
उम्मीदों से भरी सलेहा ने बताया कि उन्होंने अंग्रेजी अध्ययन के लिए तीन साल खर्च किए हैं.
वह कहती हैं, "हालांकि स्कूल और विश्वविद्यालय बंद हैं, फिर भी हम अपनी शिक्षा बंद नहीं करना चाहते हैं."
उन्होंने कहा कि उनकी योजना है कि एक दिन वह डॉक्टर बनेंगी. वह अफ़ग़ानिस्तान में सबसे अच्छा अस्पताल भी बनवाना चाहती हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
You may also like
Hydrogen Gas Clouds Could Solve the Mystery of the Universe's Missing Matter, New Study Suggests
Google Offers Free Gemini Advanced for US Students Until Spring 2026 — Includes 2TB Storage, NotebookLM Plus, and More
GT vs DC: Jos Buttler's 97 Powers Record Chase, But His Praise for Rahul Tewatia Steals the Spotlight*
IPL 2025 Thriller: Lucknow Super Giants Edge Rajasthan Royals by 2 Runs in Nail-Biting Finish
'तुम्हारे नंबर से गाली दी जाती है', लेकिन बात करते-करते ही पहुंच गए ऐसी जगह जहां खुल गया सारा राज