समाजवादी पार्टी (एसपी) के महासचिव और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री आज़म ख़ान की लगभग 23 महीने बाद रिहाई हो गई है. वे मंगलवार से पहले तक अपने बेटे के फ़र्ज़ी जन्म प्रमाण पत्र मामले में अक्तूबर 2023 से जेल में थे.
लेकिन जेल से उनकी रिहाई के बाद राजनीतिक गलियारे में उनके अगले क़दम की चर्चा शुरू हो चुकी है. आज़म ख़ान ने इसको लेकर अब तक कुछ नहीं कहा है लेकिन मीर तक़ी मीर की एक ग़ज़ल के ज़रिए अपना दुख ज़ाहिर किया है.
जेल में रहते हुए आपने क्या महसूस किया? इस सवाल के जवाब में उन्होंने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, "पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा, हाल हमारा जाने है." मीर के इस ग़ज़ल की अगली पंक्ति है, "जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग़ तो सारा जाने है."
शायर इस शेर में व्यंग्य और गहरी पीड़ा में ये कहने की कोशिश करता है कि उसकी तकलीफ़ इतनी जाहिर है कि प्रकृति की हर चीज़ जानती है, लेकिन जिस पर इसका सबसे ज़्यादा असर होना चाहिए, वह ही अनजान बना हुआ है.
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सवाल यह है कि रिहाई के तुरंत बाद आज़म ख़ान मीर तक़ी मीर का यह शेर किसके लिए पढ़ रहे थे?
इस पर वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम बीबीसी से कहते हैं, "मीर तक़ी मीर का यह शेर आज़म ख़ान ने पीड़ा और व्यंग्य में अखिलेश यादव के लिए ही पढ़ा है. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके जेल में रहते हुए अखिलेश यादव पार्टी स्तर पर ऐसा कुछ करते हुए नहीं दिखे, जिसे देख कर लगे कि वे आज़म ख़ान के लिए कुछ कर रहे हैं."
"अखिलेश यादव ने आज़म ख़ान की रिहाई के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके कहा कि सरकार बनने के बाद सारे मुकदमे वापस लेंगे यानी अखिलेश यादव कह रहे हैं कि वे सरकार बनने से पहले कुछ नहीं करेंगे."
कासिम आज़म ख़ान के पुराने दिनों के बारे में बताते हैं, "मैं आज़म ख़ान को 1985 से जानता हूं. उनको जज करना बहुत मुश्किल होता है. उन्हें जब लगता था कि मुलायम सिंह यादव उन्हें इग्नोर कर रहे हैं तो वो कोपभवन में बैठ जाते थे. रामपुर से लखनऊ आते ही नहीं थे. अभी तो कहानी ही पूरी बदल गई है."
वहीं आज़म ख़ान की रिहाई पर प्रतिक्रिया देते हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा,"हम सबके लिए बहुत खुशी का दिन है कि आज़म साहब जेल से बाहर आ रहे हैं. समाजवादी पार्टी की सरकार बनते ही आज़म ख़ान पर दर्ज किए गए सारे मुकदमे वापस लिए जाएंगे."
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देश के सबसे बड़े मुस्लिम आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में आज़म ख़ान की पहचान एक बड़े मुस्लिम नेता की रही है. आज़म ख़ान समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे हैं और मुलायम सिंह यादव के बाद दूसरे नंबर के सबसे ताकतवर नेता भी माने गए.
लेकिन अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनके साथ आज़म ख़ान के रिश्ते खट्टे-मीठे रहे हैं. अब सवाल ये है कि उनकी रिहाई के बाद अचानक उनके समाजवादी पार्टी से अलग होने की चर्चा क्यों तेज़ हो गई?
दरअसल इसके संकेत पहले से मिलने शुरू हो गए थे. जब इसी साल जून महीने में आज़म ख़ान की पत्नी तज़ीन फातमा सीतापुर जेल में उनसे मिलने पहुंची थीं. जब उनसे पूछा गया कि क्या सपा आज़म ख़ान का समर्थन कर रही है?
इसके जवाब में उन्होंने कहा था, "मुझे अब किसी पर भरोसा नहीं है, अब सिर्फ़ अल्लाह ही मदद कर सकता है."
तज़ीन फातमा के इस बयान के बाद से ही राजनीतिक हलकों में आज़म ख़ान के समाजवादी पार्टी से अलग होने की चर्चा तेज़ हो गई थी.
इस पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "उस परिवार में तीन लोग आज़म ख़ान, बेटा अब्दुल्लाह आज़म खान और पत्नी तज़ीन फातमा राजनीति में सक्रिय हैं. लोकसभा चुनाव 2024 में आज़म खान बाहर नहीं थे तो तज़ीन फातमा सोच रही थीं कि रामपुर से उन्हें लोकसभा का टिकट मिले, लेकिन टिकट नहीं मिला. तो सबकी अपनी अपनी इच्छाएं हैं. बाकी अल्लाह पर भरोसा जैसे सामान्य बयान को राजनीतिक बयान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए."
लेकिन समाजवादी पार्टी से अलग होने के सवाल पर सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "आज़म ख़ान का अगला कदम क्या होगा? इसमें जनता का कम भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की ज़्यादा दिलचस्पी होती है. उनके इस तरह के किसी भी कदम से बीजेपी और बीएसपी को फ़ायदा होगा इस बात को वे भी अच्छी तरह से समझते हैं."
"विधानसभा चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2024 के बाद की परिस्थितियों को देख कर साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि माइनॉरिटी का समर्थन शत प्रतिशत इंडिया गठबंधन के साथ है. भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों के सामने यह बड़ा संकट है. पश्चिम उत्तर प्रदेश में रामपुर से सटे इलाकों में आज भी जनता में आज़म ख़ान की लोकप्रियता और लगाव है. ऐसे में उनके पार्टी छोड़ने, दूसरी पार्टी में जाने और नई पार्टी बनाने की चर्चा का असर पड़ता जरूर है."
क्या होगा अगला कदम?
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी लगभग 20 प्रतिशत है और मौजूदा समय में आज़म ख़ान एकमात्र मुस्लिम नेता हैं, जिनका पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वांचल तक असर दिखता है. ऐसे में सभी गैर-भाजपाई राजनीतिक दल आज़म ख़ान की तरफ़ उम्मीद भरी नज़रों से देखते हैं.
लेकिन चुनावी आंकड़े यह भी बताते हैं कि लोकसभा 2024 चुनाव में जब आज़म ख़ान जेल में थे, तब पूरे प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं का जितना समर्थन समाजवादी पार्टी को मिला उतना समर्थन पहले कभी नहीं मिला था.
आज़म ख़ान समाजवादी पार्टी की स्थापना के समय से ही उसका हिस्सा रहे हैं. साल 2009 में भाजपा नेता कल्याण सिंह की समाजवादी पार्टी की बढ़ती नज़दीकियों और रामपुर से जया प्रदा को उम्मीदवार बनाए जाने से आज़म ख़ान नाराज चल रहे थे, उसी समय उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण समाजवादी पार्टी से छह सालों के लिए निष्कासित कर दिया गया था.
लेकिन इसके बावजूद आज़म ख़ान ने समाजवादी पार्टी को छोड़ कर किसी अन्य राजनीतिक दल का दामन नहीं थामा था. ऐसे में सवाल है, क्या अब आज़म ख़ान समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ कर किसी अन्य दल में शामिल हो सकते हैं.
मंगलवार की दोपहर रिहाई के बाद बसपा में शामिल होने के सवाल पर आज़म ख़ान ने कहा, "इस पर अभी कुछ नहीं कह सकता हूं. जेल से किसी से बात नहीं हो पाती है. अभी तो इलाज करेंगे अपना. सेहत ठीक करेंगे उसके बाद सोचेंगे क्या करना है."
बहुजन समाज पार्टी का 2012 विधानसभा चुनाव के बाद से ही प्रदर्शन ख़राब होता चला गया है. इसका एक प्रमुख कारण मुस्लिम मतदाताओं का बहुजन समाज पार्टी से दूर हो कर समाजवादी पार्टी में विश्वास करना है. जो बहुजन समाज पार्टी अकेले दम पर 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी पिछले विधानसभा चुनाव में उसके खाते में मात्र एक सीट आई है.
बहुजन समाज पार्टी में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने वाले चेहरे के रूप में नसीमुद्दीन सिद्दीकी थे, लेकिन उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि उनकी जगह बसपा प्रमुख मायावती आज़म ख़ान को ला सकती हैं.
इस सवाल के जवाब में सैय्यद कासिम कहते हैं, "आज़म ख़ान और मायावती का मिजाज एक जैसा है, तो दोनों एक साथ राजनीति में नहीं जा सकते. मायावती पांच साल में एक बार मिलेंगी तो आज़म ख़ान को यह बिलकुल पसंद नहीं आएगा. यह मामला दिल्ली और लखनऊ के बीच का है. राजनीति का नया केंद्र गंगाराम अस्पताल होगा. आज़म ख़ान ज़्यादा समय रामपुर में नहीं दिल्ली में रहेंगे.
आज़म ख़ान के इशारों में बात करने पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता फखरुल हसन चांद कहते हैं, "जो लोग आज़म ख़ान साहब को जानते हैं, वो यह भी जानते हैं कि वो इसी तरह इशारों में बात करते हैं. इसीलिए उन्होंने कहा कि मैं पांच साल से एक कोठरी में बंद था और पांच साल से दूर था, बाहर क्या चल रहा है कुछ पता नहीं था."
"समाजवादी पार्टी पूरी तरह सदन से लेकर सड़क और मंच तक आज़म ख़ान साहब के साथ खड़ी हैं. आज़म ख़ान साहब समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं, वो हमारे साथ हैं."
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी बीबीसी से कहते हैं, "आज़म ख़ान सपा में रहेंगे या बीएसपी में जाएंगे या नया दल बनाएंगे इससे फ़र्क नहीं पड़ता."
"उत्तर प्रदेश की जनता इतना ज़रूर जानती है कि आज़म ख़ान फिर जेल जाएंगे. उनके किए अपराध को जनता भूली नहीं है. उनका लगातार जेल आना-जाना लगा रहेगा. जमानत पर रिहा हुए हैं. यह अल्पविराम है. वैसे भी उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता ख़त्म हो गई है."
चंद्रशेखर आज़ाद से बढ़ती नज़दीकियों के मायनेपिछले कुछ समय में नगीना सांसद चंद्रशेखर आज़ाद और आज़म ख़ान की नजदीकियां भी बढ़ी हैं. यही कारण है कि आज़म ख़ान और चंद्रशेखर आज़ाद के साथ गठबंधन के कयास लगाए जा रहे हैं.
रिहाई के बाद आज़म ख़ान के साथ चुनाव लड़ने के सवाल पर चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा, "मेरे उनके पारिवारिक रिश्ते हैं. उन्होंने एक लंबा समय जेल में बिताया. इस सरकार ने उन पर बहुत जुल्म किया. मेरे उनके साथ राजनीतिक रिश्ते नहीं हैं. मैंने कभी भी उनके साथ राजनीतिक बातें नहीं की. वो बड़े भाई हैं. मैं हमेशा उनके साथ खड़ा रहूंगा. मुझे नहीं पता उन्हें राजनीति में क्या मिला, क्या नहीं? लेकिन नुक़सान जरूर हुआ है."
नवंबर 2024 में हरदोई की ज़िला जेल में पूर्व सपा विधायक अब्दुल्लाह आज़म ख़ान से मिलकर चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा था कि उनका आज़म ख़ान के परिवार के साथ पारिवारिक रिश्ता है और अब्दुल्लाह आज़म को अपना छोटा भाई बताया था.
इसी तरह जब चंद्रशेखर आज़ाद एक हमले में घायल हो गए थे, तब आज़म ख़ान ने मुलाकात कर कहा था कि वह हमले से हैरान नहीं हैं क्योंकि यह पहला हमला नहीं है और न आख़िरी है.
आज़म ख़ान और चंद्रशेखर आज़ाद को लेकर भविष्य में गठबंधन के कयास भी लगाए जा रहे हैं और पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुस्लिम और दलित गठजोड़ की बात की जा रही है.
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान आज़म ख़ान के चंद्रशेखर आज़ाद के साथ जाने के सवाल पर कहते हैं,"आज़म ख़ान में अब कोई फ़ोर्स नहीं बची है. आउट ऑफ़ साइट, आउट ऑफ़ माइंड वाली स्थिति हो गई है."
"मेरा मानना है कि बीएसपी में जाते हैं, तो कोई लाभ नहीं होगा उसकी अपेक्षा अगर चंद्रशेखर आज़ाद के साथ जाते हैं, तो दोनों के लिए थोड़ा अच्छा हो सकता है. वैसे भी रामपुर और आसपास की कुछ सीटों के अलावा कोई बड़ा लाभ नहीं मिलेगा."
वे कहते हैं, "यह गलत धारणा है कि समाजवादी पार्टी को मुस्लिम मतदाता आज़म ख़ान के चेहरे पर वोट करते थे. मुस्लिम मतदाता मुलायम सिंह यादव के कारण सपा को वोट करते थे. ऐसे में वे चंद्रशेखर के साथ भी जा कर कोई बड़ा करिश्मा कर पाएंगे, ऐसा नहीं लगता है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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