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रोहिंग्या शरणार्थियों को जबरन समंदर में उतारने का क्या है दावा जिसकी जांच करेगा यूएन

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Pankaj Nangia/Anadolu Agency via Getty Images दिल्ली के राहत कैंपों में भी रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं (सांकेतिक तस्वीर)

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि वो म्यांमार के समुद्र तट के नज़दीक भारतीय नौसेना के जहाज़ से रोहिंग्या शरणार्थियों को समुद्र में उतारने के दावों की जांच करेगा.

संयुक्त राष्ट्र ने गुरुवार को एक बयान जारी कर कहा कि पिछले सप्ताह रोहिंग्या शरणार्थियों को भारतीय नेवी के जहाज़ से अंडमान सागर में जबरन उतारे जाने की रिपोर्ट से वो चिंतित है और एक एक्सपर्ट इस तरह की "अनुचित और अस्वीकार्य घटना" की जांच शुरू कर रहे हैं.

इससे पहले मीडिया में ये ख़बर आई थी कि दिल्ली में पुलिस ने रोहिंग्या शरणार्थियों को उनके घरों से पकड़ा था.

इन रिपोर्ट्स को लेकर भारत सरकार या भारतीय नौसेना की ओर से अभी तक कोई बयान सामने नहीं आया है.

हालांकि रोहिंग्या शरणार्थियों को कथित तौर पर डिपोर्ट करने के मामले में शुक्रवार को भारत के सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई है. इस मामले में कोर्ट ने संदेह जताते हुए अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया है.

यूएन ने क्या कहा? image ANI रोहिंग्या शरणार्थियों को कथित तौर पर समुद्र में उतारने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है

म्यांमार में ख़तरनाक परिस्थितियों के बीच रोहिंग्या शरणार्थियों को डिपोर्ट करने जैसे अमानवीय और उनकी जान को ख़तरे में डालने वाला व्यवहार करने से बचने की अपील की गई है.

म्यांमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत थॉमस एन्ड्रयूज़ ने बयान में कहा है, "यह विचार कि रोहिंग्या शरणार्थियों को नेवी के जहाज़ों से समंदर में उतार दिया गया, अपमानजनक है. मैं इन घटनाक्रमों के बारे में और जानकारी और गवाह की मांग कर रहा हूं. मैं भारत सरकार से अनुरोध करता हूं कि जो कुछ हुआ उसके बारे में वो पूरा ब्योरा दे."

उन्होंने कहा, "इस तरह की क्रूर हरकतें मानवता का अपमान हैं और वापस न जाने के सिद्धांत का गंभीर उल्लंघन दर्शाती हैं, जो अंतरराष्ट्रीय क़ानून का एक मूलभूत सिद्धांत है. ये सिद्धांत ऐसे लोगों को वापस उन जगह पर भेजे जाने से रोकता है जहां उनके जीवन या स्वतंत्रता के लिए ख़तरा हो."

क्या है मामला? image YOSHIKAZU TSUNO/Gamma-Rapho via Getty Images म्यांमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत थॉमस एंड्रयूज़

इस मामले के बारे में विस्तार से बताते हुए संयुक्त राष्ट्र ने अपने बयान में लिखा है कि "बीते सप्ताह भारतीय अधिकारियों ने दिल्ली में रहने वाले ऐसे दर्जनों रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लिया था, जिनमें से कई या सभी के पास शरणार्थी पहचान से जुड़े दस्तावेज़ थे."

इसमें लिखा है, "इनमें से लगभग 40 लोगों को कथित तौर पर आंखों पर पट्टी बांधकर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ले जाया गया और फिर भारतीय नेवी के एक जहाज़ में चढ़ा दिया गया."

"अंडमान सागर पार करने के बाद शरणार्थियों को कथित तौर पर लाइफ़ जैकेट दी गई और उन्हें जबरन समुद्र में उतार दिया गया ताकि वो म्यांमार क्षेत्र के एक द्वीप की तरफ़ तैर कर जा सकें."

संयुक्त राष्ट्र ने अपने बयान में कहा है कि जिन शरणार्थियों को समंदर में उतारा गया था वो बच गए हैं.

बयान में कहा गया है, "मिली जानकारी के अनुसार ये शरणार्थी तैर कर किनारे तक पहुंच गए और बच गए, लेकिन वो अभी कहां हैं और कैसे हैं इसकी अभी कोई जानकारी नहीं है."

बयान में ये भी कहा गया है कि 'भारतीय अधिकारियों ने कथित तौर पर असम में एक डिटेन्शन सेंटर से लगभग 100 रोहिंग्या शरणार्थियों के एक ग्रुप को भी निकालकर उन्हें बांग्लादेश की सीमा से लगे एक क्षेत्र में ट्रांसफ़र कर दिया है. इस ग्रुप के ठिकाने और उनकी हालत के बारे में भी अभी कोई जानकारी नहीं है.'

थॉमस एंड्रयूज़ ने बयान में कहा, "भारत सरकार को तुरंत रोहिंग्या शरणार्थियों के ख़िलाफ़ अमानवीय क़दम की निंदा करनी चाहिए, म्यांमार को होने वाले सभी डिपोर्टेशन को रोकना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के उल्लंघनों के लिए ज़िम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए."

सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला image ARUN SANKAR/AFP via Getty Images रोहिंग्या शरणार्थियों के डिपोर्टेशन से जुड़ी एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है

ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि हाल के दिनों में असम के माटिया और गोवालपारा डिटेन्शन सेंटर्स से हिरासत में लिए गए विदेशी नागरिकों को सामूहिक रूप से हटाया जा रहा है, जिनमें रोहिंग्या शरणार्थी भी शामिल हैं.

कोर्ट मामलों को कवर करने वाली वेबसाइट और के अनुसार इस घटना से जुड़ी एक जनहित याचिका शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए आई.

याचिका में दावा किया गया है कि 43 रोहिंग्या को भारत सरकार ने जबरन म्यांमार डिपोर्ट किया और उन्हें तट से दूर अंतरराष्ट्रीय समंदर वाले इलाक़े में जहाज़ से उतार दिया. इनमें बच्चों, महिलाओं और बुज़ुर्गों के साथ-साथ ऐसे लोग भी शामिल थे जिन्हें कैंसर जैसी स्वास्थ्य समस्या थी.

याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कोटिश्वर सिंह ने याचिका में किए गए दावों पर संदेह जताया.

याचिकाकर्ता की तरफ़ से रोहिंग्या को डिपोर्ट करने पर रोक संबंधी अंतरिम आदेश की गुज़ारिश की गई थी जिससे कोर्ट ने इनकार कर दिया.

कोर्ट ने आठ मई को इसी से जुड़े एक मामले की सुनवाई का हवाला देते हुए कहा इसी तरह के एक अन्य मामले में अंतरिम राहत नहीं दी गई है.

कोर्ट ने तुरंत सुनवाई की गुज़ारिश को भी ख़ारिज कर दिया और इसकी सुनवाई 31 जुलाई के लिए तय की है.

याचिकाकर्ता की तरफ़ से पेश हुए वकील ने संयुक्त राष्ट्र के बयान का हवाला देते हुए कोर्ट से इस मामले में जल्द हस्तक्षेप करने की गुज़ारिश की, लेकिन कोर्ट ने कहा कि "तीन जजों की बेंच के बैठने पर हम संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट पर टिप्पणी करेंगे."

आठ मई की जिस याचिका का हवाला सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने दिया है, उसमें ने कोर्ट से ये समीक्षा करने की गुज़ारिश की है कि क्या मौलिक अधिकार गै़र-नागरिकों पर भी लागू होते हैं, और क्या रोहिंग्या मुसलमानों का प्रस्तावित डिपोर्टेशन अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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