इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने पिछले तीन दशकों में कई मौक़ों पर यह दावा किया है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के क़रीब पहुंच गया है.
1992 में जब वो विपक्ष के सांसद थे, तब भी उन्होंने कहा था कि ईरान अब बस तीन से पांच साल में परमाणु हथियार बना लेगा.
1995 में नेतन्याहू की एक क़िताब आई थी: 'फाइटिंग टेररिज़्म'. इसमें उन्होंने लिखा था ईरान अब बस पांच-सात साल में परमाणु हथियार बना लेगा.
इसके बाद उन्होंने 1996 में दावा किया कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के बहुत क़रीब पहुंच गया है और अमेरिका को उसे रोकना चाहिए.
इसके बाद 2012 में नेतन्याहू ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से कहा कि ईरान एक साल में परमाणु हथियार बना लेगा, इसके लिए उसका 70 फ़ीसदी काम पूरा हो चुका है.
2018 में भी नेतन्याहू ने प्रजेंटेशन बनाकर ये बताया कि ईरान परमाणु हथियारों पर काम कर रहा है.
अब एक बार फिर इसराइल ने यह कहा है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है. ताज़ा संघर्ष में इसराइल ईरान के परमाणु ठिकानों को भी निशाना बना रहा है.
हाल के दिनों में अमेरिका की तरफ से आए बयानों में भी कहा गया है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के बेहद क़रीब पहुंच गया है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में ईरान से कहा कि वो 'बिना शर्त सरेंडर' कर दे.
लेकिन सवाल ये है कि क्या इस बात के पुख़्ता सबूत हैं कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है.
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क्या हथियार की बात छिपा रहा ईरान?ईरान ने 1968 में परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए थे. इसका मतलब ये कि ईरान परमाणु तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ़ शांतिपूर्ण काम के लिए करेगा और किसी को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी नहीं देगा.
साल 2003 में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी आईएईए को सबूत मिले कि ईरान अधिक मानक वाले यूरेनियम का एनरिचमेंट (यूरेनियम संवर्धन) कर रहा है. ईरान ने एजेंसी को इसकी जानकारी नहीं दी थी.
2006 में ईरान ने एक बार फिर यूरेनियम एनरिच करना शुरू कर दिया.
साल 2015 में ईरान ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन और जर्मनी के साथ ज्वाइंट कॉम्प्रहेन्सिव प्लान ऑफ़ एक्शन पर हस्ताक्षर किए. लेकिन ट्रंप अपने पहले कार्यकाल के दौरान 2018 में इससे बाहर निकल आए.
इसके बाद आईएईए ने सूचना दी कि ईरान ने अपने यहां परमाणु सामग्री होने की बात छिपाई है.
इस बीच समय-समय पर ऐसी ख़बरें आती रही कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के लिए अपनी परमाणु क्षमता बढ़ा रहा है और न्यूक्लियर एनरिचमेंट पर काम कर रहा है, लेकिन इस बात के सबूत अब तक नहीं हैं कि उसने परमाणु हथियार बना लिया है या बना रहा है.
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इसी साल आईएईए ने फिर कहा कि ईरान यूरेनियम संवर्द्धन (एनरिचमेंट) का काम कर रहा है.
इसके बाद ही इसराइल ने ये कहते हुए ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया कि उसका परमाणु कार्यक्रम इसराइल के अस्तित्व और दुनिया के लिए ख़तरा बन गया है.
हालांंकि आईएईए के डायरेक्टर जनरल राफ़ेल ग्रॉसी ने ब्लूमबर्ग टीवी से कहा, "हम सिर्फ़ निगरानी करते हैं. हम कोई राजनीतिक विश्लेषक नहीं हैं. हमारे पास इस बात को कहने के लिए पुख़्ता सबूत होना चाहिए कि परमाणु हथियार बनाने के लिए कार्यक्रम चल रहा है. वो तो हमने नहीं देखा है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि चिंता के कारण नहीं हैं."
उन्होंने कहा, "मैंने जब भी ईरान में अपने समकक्ष लोगों से बात की है, वो बताते रहे हैं कि हमारे सुप्रीम लीडर का फ़तवा है कि परमाणु हथियार होना इस्लाम के मुताबिक़ नहीं है, लेकिन मैंने भी उन्हें बताया है कि कई बड़े अधिकारी कहते हैं कि ईरान के पास इस पहेली को सुलझाने के अलग-अलग सूत्र मौजूद हैं. वैसे अभी बहुत कुछ साफ़ नहीं है."
इसराइल के पास कितने परमाणु हथियार हैं?आईसीएएन, सिपरी आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन और न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां मानती हैं कि मध्यपूर्व में इसराइल ही एक ऐसा देश है जिसके पास अनुमानित 90 से 300 तक परमाणु हथियार हो सकते हैं.
इसराइल ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर भी नहीं किए हैं, लिहाज़ा आईएईए उसकी निगरानी भी नहीं कर सकता.
2018 में इसराइल के पूर्व उप-विदेश मंत्री डैनी आयलोन से अलजज़ीरा के इंटरव्यू में पूछा गया कि इसराइल के पास कितने परमाणु हथियार हैं तो उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता, उन्होंने कभी सरकार से इस बारे में बात ही नहीं की.
डैनी आयलोन ने ये भी कहा कि अगर परमाणु हथियार हैं भी तो क्या हुआ. इसराइल को ईरान और इराक से धमकियां मिलती रही हैं कि उसे मिटा दिया जाएगा. लेकिन इसराइल किसी को धमकी नहीं देता है.
उन्होंने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ईरान के ख़िलाफ़ 16 प्रस्ताव पास किए हैं.
एक तथ्य ये भी है कि 1981 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इसराइल की भी निंदा की थी और उसके ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाया गया था.
क्योंकि इसराइल ने इराक के परमाणु संयंत्रों पर हमला किया था. इराक ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. आईएईए ने इस बात की पुष्टि की थी कि ईराक सभी सेफ़गार्ड्स लागू कर रहा है फिर भी इसराइल ने उस पर हमला किया था.
उस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इसराइल से, अपने परमाणु संयंत्रों को आईएईए की निगरानी के तहत लाने को कहा था.
रही ईरान का सवाल है तो, इसराइल ईरान को पहले भी कई बार धमकी दे चुका है.
2023 में इसराइल ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से कहा था कि ईरान को परमाणु ख़तरे का सामना करना पड़ेगा.
हालांकि बाद में उनके एक अधिकारी ने कहा कि वे मिलिट्री ख़तरे के बारे में कह रहे थे परमाणु ख़तरे के बारे में नहीं.
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संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में कहा था कि ब्रिटिश राज ख़त्म होने के बाद दो देश बना दिए जाएं. एक यहूदी देश यानी इसराइल और एक अरब देश यानी फ़लस्तीन.
इसराइल ने तो इसे मान लिया क्योंकि इससे उसे एक देश के तौर पर आधिकारिक मान्यता मिल जाती.
लेकिन फ़लस्तीन और अधिकतर अरब देशों ने इसे नहीं माना क्योंकि वे देश के तौर पर इसराइल के गठन को अवैध मानते थे.
लेकिन इसराइल ने खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया. इसके बाद अरब देशों की संयुक्त सेना और इसराइल के बीच युद्ध भी हुआ.
साल 1948 में अमेरिका और सोवियत संघ ने भी इसराइल को मान्यता दे दी.
लेकिन ईरान ने इसराइल को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी. हालांकि ईरान उन शुरुआती देशों में से एक था जिसने इसराइल के साथ कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्ते बनाए थे, पर ईरान पूरी तरह फ़लस्तीन की तरफ़ था.
फिर 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई और वहां ख़ामेनेई सत्ता में आ गए. तब से ईरान का रुख़ एकतरफ़ा यानी इसराइल-विरोधी हो गया.
ख़ामेनेई का मानना था कि इसराइल पश्चिमी देशों के सहयोग से फ़लस्तीन की ज़मीन पर कब्ज़ा बढ़ा रहा है और अमेरिका इसराइल के ज़रिये मध्यपूर्व पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस्लामिक क्रांति के बाद का ईरान दुनिया भर में इस्लामी ताक़तों की अगुआई करना चाहता था इसलिए उसने हिज़्बुल्लाह और हमास जैसे सशस्त्र चरमपंथी संगठनों को इसराइल के ख़िलाफ़ समर्थन देना शुरू किया.
वहीं, इसराइल भी अपने नियंत्रण वाले इलाक़े का लगातार विस्तार करता रहा, ख़ास तौर पर वेस्ट बैंक में.
इस बीच फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की ख़बरें सामने आती रहीं. 2007 में ग़ज़ा का नियंत्रण हमास के हाथों में आ गया. उसके बाद भी वहां इसराइल और हमास के बीच में कई बार संघर्ष हुआ.
इन संघर्षों में आम लोग मारे जाते रहे और ईरान और इसराइल के रिश्ते लगातार बिगड़ते चले गए.
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परमाणु हथियार रखने के पीछे देशों की दलील होती है- सुरक्षा. इसराइल हमेशा कहता रहा है कि वो एकमात्र यहूदी देश है, जबकि मध्यपूर्व में 12 अरब देश हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि इस इलाके़ की भू-राजनीति काफ़ी बदल चुकी है.
इसराइल को अरब देश और ईरान एक ख़तरे के तौर पर देखते हैं जिसे अमेरिका की हिमायत हासिल है और उसके पास परमाणु हथियार भी हैं.
खुद अमेरिका की खुफ़िया एजेंसी सीआईए 1974 में ये दावा कर चुकी है कि इसराइल ने परमाणु हथियार बना लिए हैं.
वहीं अभी मार्च में ही अमेरिका की डायरेक्टर ऑफ़ नेशनल इंटेलिजेंस तुलसी गबार्ड ने अमेरिकी सीनेट की इंटेलिजेंस कमेटी के सामने गवाही दी कि ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा है.
जब पत्रकारों ने ट्रंप से गबार्ड की इस गवाही के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा था मुझे इससे कोई लेना-देना नहीं है कि गबार्ड ने क्या कहा था.
हालांकि शनिवार को तुलसी गबार्ड ने अपने बयान से पटलते हुए कहा है कि ईरान कुछ ही हफ्तों में परमाणु हथियार बना सकता है. हालांकि उन्होंने अपने दावे के समर्थन में सबूत पेश नहीं किए हैं.
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2003 में अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और पोलैंड ने मिलकर इराक पर हमला बोल दिया था, तब एक इंटेलिजेंस रिपोर्ट का ही हवाला दिया गया था और ब्रिटेन के उस समय के पीएम टोनी ब्लेयर ने कहा था कि इराक 45 मिनट के भीतर महाविनाश के हथियार का इस्तेमाल कर सकता है.
लेकिन साल में 2016 में ब्रिटेन में चिलकॉट कमेटी की रिपोर्ट आई जिसमें कहा गया कि इराक के पास ऐसे हथियार होने को लेकर कोई सबूत नहीं मिले.
फ़िलहाल अमेरिका के इंटेलिजेंस विभाग ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है जिसमें कहा गया हो कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है.
आईएईए भी कह चुका है कि उसके पास यह कहने के लिए कोई पुख़्ता सबूत नहीं है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है.
नेतन्याहू भी कई सालों से ये कह रहे हैं कि ईरान ने परमाणु हथियार बना लिया लेकिन अब तक उन्होंने अपने दावे के समर्थन में कोई सबूत नहीं दिए हैं.
ऐसे में सवाल ये है कि आख़िर ये तय कौन करता है कि किस देश को परमाणु हथियार रखने की इजाज़त है और किसे नहीं और युद्ध छेड़ने के फ़ैसले आख़िर कैसे, किस आधार पर लिए जाते हैं.
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