सांसदों और विधायकों की तरह सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की संपत्ति की घोषणा सार्वजनिक करने की मांग लंबे समय से की जा रही थी. अब इस दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने अहम कदम उठाया है.
दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर में आग लगने और वहां कथित तौर पर भारी मात्रा में नक़दी मिलने की घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह फ़ैसला लिया. 14 मार्च को यह घटना हुई थी. इसके बाद पारदर्शिता को लेकर जूडिशियरी पर देशभर में बहस शुरू हो गई थी.
इसके कुछ दिन बाद, 1 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की फुल कोर्ट मीटिंग में यह तय किया गया कि सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों को अपनी संपत्ति की जानकारी भारत के चीफ़ जस्टिस को देनी होगी और यह जानकारी कोर्ट की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से पब्लिश भी की जाएगी.
अब तक जज अपनी संपत्ति की जानकारी सिर्फ़ चीफ़ जस्टिस को सौंपते थे, लेकिन उसे वेबसाइट पर डालना ज़रूरी नहीं था. हाई कोर्ट में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है यानी जज अपनी संपत्ति की जानकारी हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस को देते हैं, लेकिन वेबसाइट पर इसे तभी पब्लिश किया जाता है जब जज ख़़ुद इसकी अनुमति दें.
5 मई की रात को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर कोर्ट के 33 में से 21 जजों की संपत्ति की घोषणा सार्वजनिक कर दी गई.
कोर्ट की ओर से बताया गया कि बाक़ी जजों की जानकारी प्रक्रिया में है और वह भी वेबसाइट पर अपलोड की जाएगी.
घोषित संपत्ति ब्योरे में ज़मीन, निवेश, चल संपत्ति, क़र्ज़ और जज के जीवनसाथी और बच्चों की संपत्ति की जानकारी शामिल है.
कई सालों से लगातार होती आई है ये मांगसुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की संपत्ति को सार्वजनिक करने की मांग कोई नई नहीं है. 1997 में सुप्रीम कोर्ट की एक फुल कोर्ट मीटिंग में तय किया गया था कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों को हर साल अपनी संपत्ति की जानकारी चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया को देनी होगी. हालांकि, ये भी तय किया गया था कि इस जानकारी को गोपनीय रखा जाएगा.
बाद में, 2009 की एक और फुल कोर्ट मीटिंग में फैसला हुआ कि जज अगर चाहें तो अपनी संपत्ति की घोषणा सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर कर सकते हैं. लेकिन यह पूरी तरह उनकी सहमति पर निर्भर होगा.
हाल ही में आई संसद की स्थायी समिति (133वीं रिपोर्ट) ने बताया कि अब तक केवल 55 सुप्रीम कोर्ट जजों ने अपनी संपत्ति की घोषणा ख़ुद सार्वजनिक की है. आख़िरी बार यह घोषणा मार्च 2018 में हुई थी.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया था, "अगर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज अपनी संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा करें तो इससे न्यायपालिका की विश्वसनीयता बढ़ेगी."
इस साल 1 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की हुई फुल कोर्ट मीटिंग में जो निर्णय लिया गया, उसका आधिकारिक रेज़ोल्यूशन अब तक कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया है. इसलिए ये साफ़ नहीं है कि हाई कोर्ट के जजों पर भी यह नियम अनिवार्य होगा या नहीं.
हालांकि, परंपरा यही रही है कि हाई कोर्ट आमतौर पर वही दिशा अपनाते हैं जो सुप्रीम कोर्ट लेता है. इसलिए उम्मीद की जा रही है कि अब हाई कोर्ट के जज भी सार्वजनिक घोषणा की तरफ़ बढ़ेंगे.
2023 में द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट से पता चला था कि उस वक़्त देशभर में कुल 749 हाई कोर्ट जजों में से सिर्फ़ 98 ने ही अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक की थी.
ये भी पढ़ें-इसके साथ कोर्ट ने कुछ और जानकारियां भी सार्वजनिक कीं, जो अब तक आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं थीं. सुप्रीम कोर्ट ने एक सूची जारी की है, जिसमें बताया गया है कि नवंबर 2022 से अब तक हाई कोर्ट में नियुक्ति के लिए कितने नामों की सिफ़ारिश की गई है. इसके साथ यह भी बताया गया है कि इनमें कितनी महिलाएं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय से थे.
नवंबर 2022 से अब तक सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 221 नामों की सिफारिश हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति के लिए की है. इनमें 34 महिलाएं थीं और बाक़ी पुरुष. कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज होते हैं जो जजों की नियुक्ति से जुड़े फ़ैसले लेते हैं.
जातिगत आधार पर देखें तो 221 नामों में से आठ अनुसूचित जाति, सात अनुसूचित जनजाति, आठ अति पिछड़ा वर्ग, 32 अन्य पिछड़ा वर्ग और 167 सामान्य वर्ग से थे. 31 लोग अल्पसंख्यक समुदाय से हैं.
इस जानकारी में यह भी बताया गया है कि 221 नामों में से कितने लोग वर्तमान या पूर्व जजों के परिवार से आते हैं. इनमें 14 नाम ऐसे हैं जो किसी जज के बेटे, दामाद, भाई, बहन या दूसरे रिश्तेदार हैं.
सुप्रीम कोर्ट की इस सूची में यह भी दर्ज है कि कॉलेजियम की तरफ़ से सुझाए गए नामों में से कितने अब भी सरकार के पास मंज़ूरी के लिए लंबित हैं.
जजों की नियुक्ति को लेकर यह विवाद लंबे समय से चला आ रहा है कि नियुक्ति का अंतिम अधिकार कोर्ट के पास हो या सरकार के पास. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों के अनुसार, अगर कॉलेजियम कोई नाम भेजता है तो सरकार को उस पर नियुक्ति करनी चाहिए. लेकिन कई बार देखा गया है कि सरकार की तरफ़ से बार-बार भेजे गए नामों को भी मंज़ूरी नहीं मिलती.
इन 221 नामों में से 29 नाम ऐसे हैं जो अब भी सरकार के पास लंबित हैं.
5 मई को कोर्ट ने दो दस्तावेज़ भी सार्वजनिक किए, जिनमें हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की विस्तृत प्रक्रिया दी गई है. इसमें कई फ़ॉर्मेट्स भी शामिल हैं और यह बताया गया है कि नियुक्तियों में सरकार और कॉलेजियम की भूमिका किस तरह तय होती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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