राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रतापगढ़ जिले के धरियावाद क्षेत्र के 11 सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं और शिक्षकों की भारी कमी को लेकर दायर जनहित याचिका पर गंभीर रुख अपनाते हुए शिक्षा विभाग और वित्त विभाग को आड़े हाथों लिया है। अदालत ने राज्य सरकार की उदासीनता पर नाराजगी जताते हुए कहा कि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
पचास फीसदी शिक्षक पद खाली, दो साल से नहीं हुई भरती
याचिका में बताया गया था कि धरियावाद के कई स्कूलों में शिक्षकों के लगभग 50 प्रतिशत पद पिछले दो वर्षों से खाली पड़े हैं। इसके कारण छात्रों की पढ़ाई पर गंभीर असर पड़ रहा है। अदालत ने इस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि राज्य सरकार शिक्षा को लेकर संवेदनशील नहीं है, तो यह संविधान में दिए गए मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है।
अदालत की तीखी टिप्पणी – “कब तक बच्चों के अधिकारों की अनदेखी होगी?”
राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा, “बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना सरकार का कर्तव्य है। यदि शिक्षक ही नहीं होंगे, तो शिक्षा की गुणवत्ता कैसी होगी? दो साल में भी रिक्त पदों को नहीं भरना लापरवाही नहीं, बल्कि आपराधिक उदासीनता है।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह केवल धरियावाद क्षेत्र की बात नहीं है, बल्कि पूरे प्रदेश में कई स्कूलों की स्थिति चिंताजनक है। कोर्ट ने पूछा कि शिक्षा विभाग और वित्त विभाग इस ओर ध्यान क्यों नहीं दे रहे?
शिक्षा और वित्त विभाग से मांगा जवाब
हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग और वित्त विभाग को निर्देश दिया कि वे यह स्पष्ट करें कि अब तक रिक्त पद क्यों नहीं भरे गए और आगे की क्या योजना है। साथ ही अदालत ने यह भी पूछा कि स्कूलों में भवन, शौचालय, पीने के पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
अदालत ने दोनों विभागों को अगली सुनवाई में विस्तृत कार्ययोजना और समयसीमा के साथ रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए हैं। यदि रिपोर्ट संतोषजनक नहीं पाई गई, तो अदालत सख्त आदेश देने से पीछे नहीं हटेगी।
बच्चों के भविष्य पर मंडरा रहा खतरा
धरियावाद के ग्रामीण इलाकों में स्थित इन स्कूलों में पढ़ाई की स्थिति बेहद दयनीय बताई जा रही है। कहीं एक स्कूल में दो ही शिक्षक हैं और सैकड़ों छात्र, तो कहीं विज्ञान और गणित जैसे विषयों के लिए वर्षों से कोई शिक्षक ही नहीं है। परिणामस्वरूप छात्रों का भविष्य अंधकार में जा रहा है।
अब सरकार की बारी
हाईकोर्ट की सख्ती के बाद अब राज्य सरकार पर जिम्मेदारी है कि वह इस दिशा में त्वरित और ठोस कदम उठाए। शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह धरातल पर जाकर स्कूलों की स्थिति का मूल्यांकन करे और तात्कालिक रूप से रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू करे। वरना न्यायपालिका की अगली कार्यवाही और भी कड़ी हो सकती है।
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