राजस्थान की रेतीली धरती सिर्फ राजाओं की कहानियों और वीरगाथाओं के लिए नहीं जानी जाती, बल्कि यहां की हवाओं में कुछ ऐसी रहस्यमयी चीखें भी तैरती हैं जो रात के सन्नाटे को चीरती हुई रूह तक को कंपा देती हैं। ऐसा ही एक गांव है — कुलधरा, जो जैसलमेर से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित है। कहा जाता है कि यह गांव दिन में जितना शांत और वीरान लगता है, रात के अंधेरे में उतना ही ज़िंदा हो उठता है।
रहस्यमयी कुलधरा — जहां आज भी सुनाई देती हैं आवाजेंकरीब 225 साल पहले, कुलधरा एक खुशहाल और समृद्ध पालीवाल ब्राह्मणों का गांव हुआ करता था। लेकिन अचानक एक रात ऐसा कुछ हुआ कि पूरे गांव ने एक साथ इसे हमेशा के लिए छोड़ दिया, और उसके बाद से यह जगह वीरान हो गई। कहानी के अनुसार, जैसलमेर के क्रूर दीवान की नज़र गांव की एक सुंदर कन्या पर थी। जब गांववालों ने उसे देने से इनकार किया, तो दीवान ने बलपूर्वक लेने की धमकी दी। अपमान और भय के बीच, पालीवाल ब्राह्मणों ने एक ही रात में गांव खाली कर दिया और जाते-जाते गांव को श्राप दे गए कि यहां कोई दोबारा नहीं बस सकेगा।
रात में क्यों नहीं जाता कोई?आज भी सूरज ढलते ही यह गांव अजीब सी खामोशी में डूब जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि रात के समय कुलधरा की गलियों से महिलाओं के गहनों की छनछनाहट, बच्चों के हंसने और रोने की आवाजें, और कभी-कभी स्त्रियों की सिसकियां सुनाई देती हैं। कुछ लोगों ने दावा किया है कि उन्होंने सफेद साड़ी में एक महिला को हवा में तैरते देखा, जो अचानक आंखों के सामने से गायब हो गई।
कैमरों और उपकरणों की गड़बड़ीयहां पर जब भी कोई वैज्ञानिक या रिसर्च टीम आई है, उन्होंने अनुभव किया कि उनके कैमरे, मोबाइल और अन्य उपकरण अचानक काम करना बंद कर देते हैं। ऐसा मानना है कि कोई रहस्यमयी शक्ति वहां आधुनिक तकनीक को नष्ट कर देती है। कई डॉक्यूमेंट्रीज़ और यूट्यूब वीडियोज़ में भी ऐसी गतिविधियों के प्रमाण सामने आए हैं।
सरकार की चेतावनी और डरभारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने साफ निर्देश दे रखा है कि सूर्यास्त के बाद गांव में प्रवेश करना प्रतिबंधित है। जगह-जगह चेतावनी बोर्ड लगे हैं, और रात में वहां पुलिस की निगरानी भी रखी जाती है।
निष्कर्षकुलधरा सिर्फ एक खंडहर नहीं, बल्कि एक जिंदा डरावनी कहानी है, जो हर रात फिर से सांस लेने लगती है। जो लोग यहां रात बिताने का दावा करते हैं, उनमें से कई मानसिक संतुलन खो बैठे हैं, और कुछ तो लौटे ही नहीं। अगर आपको लगता है कि ‘स्त्री’ या ‘द कॉन्ज्यूरिंग’ डरावनी थीं, तो एक बार कुलधरा के अंधेरे में उतरकर देखिए — डर की असली परिभाषा वहीं मिलेगी।
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