दक्षिण-पश्चिम मानसून राजस्थान समेत भारत के राज्यों के लिए सबसे ज्यादा प्रभावी है, जिसके चलते महाराष्ट्र से लेकर मध्य प्रदेश और राजस्थान में जमकर बारिश हो रही है। राजस्थान के अंदर प्री-मानसून का दौर चल रहा है। दक्षिण-पश्चिम मानसून धीरे-धीरे राजस्थान की ओर बढ़ रहा है। उम्मीद है कि 20 जून तक बांसवाड़ा जिले के जरिए मानसून राजस्थान के अंदर दस्तक देगा। 4 जून तक मानसून की बात करें तो यह आधे से ज्यादा महाराष्ट्र को कवर कर चुका है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) की वेबसाइट द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक 15 जून तक मानसून मध्य प्रदेश में प्रवेश कर जाएगा।
5 दिन में मध्य प्रदेश को पार कर राजस्थान में प्रवेश करेगा मानसून
मध्य प्रदेश में प्रवेश करते ही मानसून की रफ्तार बढ़ जाएगी और 5 दिन के अंदर यानी 20 जून तक यह राजस्थान के बांसवाड़ा जिले को छू लेगा। वहीं, 25 जून तक उदयपुर और कोटा में भी मानसून की बारिश शुरू हो जाएगी। 30 जून तक मानसून जोधपुर, जयपुर और अजमेर में प्रवेश कर जाएगा।
5 जुलाई तक पूरे राजस्थान में पहुँच जाएगा मानसून
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 5 जुलाई तक मानसून जैसलमेर, बीकानेर और झुंझुनू को पार कर पाकिस्तान की ओर बढ़ जाएगा। उम्मीद है कि 8 जुलाई तक मानसून पूरी तरह राजस्थान को अपनी गिरफ्त में ले लेगा और भारी बारिश होगी। इस बार मौसम विभाग ने भारी बारिश की चेतावनी दी है।
औसत से अधिक बारिश की संभावना
मौसम विज्ञानियों का मानना है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून एक प्रमुख मौसमी प्रणाली है, जो जून से सितंबर के बीच भारतीय उपमहाद्वीप में भारी बारिश लाती है। देश की कृषि, जल संसाधन और अर्थव्यवस्था में इसका योगदान महत्वपूर्ण है। इस बार अनुमान है कि राजस्थान के अंदर औसत से 115 प्रतिशत तक अधिक बारिश हो सकती है, जो कृषि प्रधान राज्य के लिए अच्छी खबर है।
समुद्र से पानी लाती हैं हवाएं
दक्षिण-पश्चिम मानसून भूमि और समुद्र के बीच तापमान के अंतर से उत्पन्न होता है, जो नमी से भरी हवाओं को भारत की ओर खींचता है और ये हवाएं पर्वतीय अवरोधों के कारण ऊपर उठती हैं और बारिश का कारण बनती हैं। दक्षिण-पश्चिम मानसून हिंद महासागर से नमी से भरी हवाएं लाता है। जबकि पूर्वोत्तर मानसून दक्षिण-पूर्व भारत को प्रभावित करता है।
इस तरह से बढ़ता है मानसून
उत्तर भारत में कम दबाव और गर्मियों में महासागरों में उच्च दबाव के कारण, समुद्र से नम दक्षिण-पश्चिमी हवाएँ भारत की ओर आती हैं। ये हवाएँ बादल बनाती हैं और बारिश का कारण बनती हैं।
कोरिओलिस प्रभाव क्या है
जब ये हवाएँ भूमध्य रेखा को पार करके भारत की ओर आती हैं, तो पृथ्वी के घूमने (कोरिओलिस प्रभाव) के कारण, वे दक्षिण-पूर्व से आती हैं और दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़ जाती हैं, इसलिए उन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून कहा जाता है।
मानसूनी हवाएँ दो भागों में विभाजित होती हैं
भारत में प्रवेश करते ही, दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाएँ दो मुख्य भागों में विभाजित हो जाती हैं। पहली अरब सागर शाखा है, जो पश्चिमी घाट से टकराती है और पश्चिमी तट पर बारिश करती है। दूसरी बंगाल की खाड़ी शाखा है, जो पूर्वोत्तर भारत और हिमालय से टकराती है और शेष भारत में बारिश करती है।
भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था की रीढ़
देश की लगभग 55-60% कृषि मानसून पर निर्भर है। खरीफ की फसलें जैसे चावल, मक्का, कपास आदि मानसून पर निर्भर हैं। अच्छा मानसून फसल, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास लाता है, जबकि कमजोर मानसून सूखा, मुद्रास्फीति, फसल की हानि और किसानों की आय में गिरावट लाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
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